IIT रिसर्चर्स ने गन्ने के कचरे से बनाई ‘जैविक ईंटें’ CO2 को भी करती हैं अवशोषित
प्रदूषण ने हमारे पर्यावरण पर भारी असर डाला है और पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं। इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए सभी सेक्टर तेजी से सलूशन तैयार कर रहे हैं, जिनमें कपड़े के थैलों का उपयोग करने से लेकर सार्वजनिक परिवहन या इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करना आदि शामिल है। पर्यावरण के अनुकूल समाधानों में बायो-ईंटें भी शामिल हैं, जो निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली पारंपरिक मिट्टी की ईंट का विकल्प हो सकती हैं।
इन ईंटों की खासियत यह है कि इन्हें गन्ने के कचरे (sugarcane bagasse) से बनाया जाता है। दरअसल गन्ने से कुचलकर रस निकाल लेने के बाद जो सूखे गूदे वाला रेशेदार अवशेष बचता है उससे इन ईंटों को तैयार किया जाता है। इन ईंटों को पहली बार IIT-Hyderabad के डिजाइन विभाग में पीएचडी स्कॉलर प्रियब्रत राउत्रे ने भुवनेश्वर के KIIT स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में सहायक प्रोफेसर अविक रॉय के साथ मिलकर बनाया था।
इस परियोजना को वर्तमान में प्रोफेसर दीपक जॉन मैथ्यू, हेड-डिजाइन विभाग, IIT-Hyderabad, और डॉ. बोरिस आइसेनबार्ट, स्वाइनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, ऑस्ट्रेलिया के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।
प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए, अविक ने कहा,
"बायो-ईंटें न केवल मिट्टी की ईंटों की तुलना में अधिक टिकाऊ होती हैं, बल्कि कार्बन सिंक के रूप में भी काम करती हैं क्योंकि वे अपने लाइफ-साइकल के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड प्रोड्यूस करने की तुलना में अधिक अवशोषित करती हैं।"
आईआईटी हैदराबाद में विकसित एक सिंगल बायो-ईंट में 900 ग्राम तक गन्ने का अवशेष इस्तेमाल किया गया। वहीं अगर इसे जलाया जाए, तो यह 639 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करेगा। इसलिए इन ईंट को जो चीज खास बनाती है वो यह है कि यह वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को भी अवशोषित कर सकती हैं। टीम की गणना के अनुसार, एक सिंगल ब्लॉक में 322.2 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड की खपत होती है।
NDTV के अनुसार, ‘जैविक ईंटें’ बनाने की प्रक्रिया धान के पुआल, गेहूं के भूसे, सूखे गन्ने और कपास के पौधे जैसे सूखे हुए कृषि अपशिष्टों के चयन से शुरू होती है। बायो-ईंट के पहले नमूने के लिए, टीम ने सूखे गन्ने के अवशेष का इस्तेमाल करने का फैसला किया। गन्ने का कचरा पहले से ही कटा हुआ होता है, फिर इसे एक अच्छे चूने के घोल में मिलाया जाता है, और अच्छी तरह एक दूसरे में इसको घोलते हैं। इसे या तो हाथ से या एक यांत्रिक मिक्सर से एक समरूप मिश्रण बनाने के लिए घोला जाता है।
एक बार तैयार होने के बाद, मिश्रण को लकड़ी के सांचों में डाला जाता है ताकि अपनी इच्छानुसार ईंट के साइज और शेप को तैयार किया जा सके। इन ईंटों को सांचे में ही एक या दो दिन सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसके बाद इन्हें निकाल लिया जाता है और अगले 15-20 दिनों के लिए धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसकी कार्य शक्ति प्राप्त करने में एक और महीना लगता है, इस दौरान ईंटों को हवा में सुखाया जाता है।
पारंपरिक ईंटों के विपरीत, इन जैव ईंटों का उपयोग केवल लकड़ी या धातु संरचनाओं के संयोजन के साथ कम लागत वाले आवास के लिए किया जा सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के अलावा, यह गर्मी और ध्वनि से अच्छा इन्सुलेशन भी प्रदान करती हैं, और घर के तापमान को बनाए रखने में भी मदद करती हैं।
प्रियब्रत ने NDTV को बताया,
“बायो-ईंटों के अलावा, कच्चे माल का उपयोग पैनल बोर्ड या इन्सुलेशन बोर्ड के रूप में किया जा सकता है। डिजाइनरों के रूप में, हम इस टिकाऊ सामग्री के लिए ऐसे अनुप्रयोगों का पता लगा सकते हैं।”
हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायती राज (NIRDPR), हैदराबाद द्वारा आयोजित इनोवेटिव बायो-ईंट को रूरल इनोवेटर्स स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव 2019 में सम्मानित किया गया।