तो क्या वैश्विक मंदी की शुरुआत हो चुकी है? 2008 में भी तो ऐसा ही हुआ था... मिल रहे हैं ये इशारे
2008 में भी एक के बाद एक बैंकों के डूबने का सिलसिला चल रहा था, जैसा अभी हो रहा है. अमेरिका में ब्याज दरें जो अभी हैं, उसी लेवल पर 2007 में भी पहुंच गई थीं. इसी वजह से लेहमन ब्रदर्स बैंक देखते ही देखते टूटकर बिखर गया और डूब गया.
हाइलाइट्स
2008 में भी एक के बाद एक बैंकों के डूबने का सिलसिला चल रहा था, जैसा अभी हो रहा है.
अमेरिका में ब्याज दरें जो अभी हैं, उसी लेवल पर 2007 में भी पहुंच गई थीं.
इसी वजह से लेहमन ब्रदर्स बैंक देखते ही देखते टूटकर बिखर गया और डूब गया.
लंबे वक्त से अनुमान लगाया जा रहा था कि दुनिया भर में भयानक मंदी (Recession) आ सकती है. पिछले कुछ दिनों से जैसी खबरें आ रही हैं और जैसे हालात पैदा होते जा रहे हैं, उन्हें देखकर यूं लग रहा है कि मंदी की शुरुआत हो चुकी है. इसका अंदाजा लगाया जा रहा है तेजी से डूबते बैंक (Bank Collapse) और उसके बावजूद फेडरल रिजर्व का ब्याज दरें (Fed Hike Interest Rates) बढ़ाना ना रोकना देखकर. आइए जानते इसे मंदी का इशारा क्यों समझा जा रहा है.
एक के बाद एक डूबते जा रहे हैं बैंक
बैंकों के डूबने का सिलसिल शुरू हुआ सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका से. अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया, जिसमें दुनिया भर के तमाम स्टार्टअप्स का बहुत सारा पैसा लगा हुआ था. उसके बाद अमेरिका का ही सिग्नेचर बैंक डूबा. वहीं फर्स्ट रिपब्लिक बैंक भी डूबने के कगार पर था, लेकिन 11 बैंकों ने 30 अरब डॉलर की मदद देकर उसे डूबने से बचा लिया. वहीं स्विटजरलैंड का क्रेडिट सुईस भी डूबने के कगार पर है, जिसे बचाने के लिए यूबीएस बैंक सामने आया है. अब यूरोप के एक बड़े बैंक डॉयशे पर भी डूबने का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि इसमें भी क्रेडिट डिफॉल्ट शुरू हो गया है.
बढ़ती ब्याज दरें हैं वजह
एक के बाद एक बैंकों के डूबने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है तेजी से बढ़ती जा रही है ब्याज दरें. जब ब्याज दरें सस्ती थीं तो बैंकों ने सस्ती दरें पर लोन दिए थे, जो अब बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं और क्रेडिट डिफॉल्ट हो रहे हैं. वहीं दूसरी ओर बैंकों ने जिन लंबी अवधि के बॉन्ड्स में पैसे लगाए थे, ब्याज दरें बहुत ज्यादा हो जाने की वजह से उनकी वैल्यू ना के बराबर हो गई है. वहीं फेडरल रिजर्व ने फिर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है, जिससे ब्याज दरों का ये संकट और गहरा गया है. फेडरल रिजर्व की ब्याज दरें अब 4.75 से 5 फीसदी के बीच पहुंच गई हैं. यह साल 2007 के बाद से सर्वोच्च स्तर है. अनुमान लगाया जा रहा है अभी कई और बैंक डूब सकते हैं.
186 बैंक हैं डूबने के कगार पर!
Social Scienc e Research Network पर पोस्ट की गई एक रिसर्च में यह दावा किया गया है कि करीब 186 ऐसे बैंक हैं जो डूबने के कगार पर हैं. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर सरकारें या बड़े बैंक किन-किन बैंकों को डूबने से बचाएंगे. वहीं बैंकों के डूबने के इस डर की वजह से लोग भी अपना पैसा बैंकों से निकाल रहे हैं. बैंक डूबने की सबसे बड़ी वजह यही होती कि लोग तेजी से अपना पैसा निकालने लगते हैं, वहीं जिन्होंने कर्ज लिया है वह पैसे नहीं चुकाते. नतीजा ये होता है कि बैंक घुटनों पर आ जाता है. वैसे तो भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि भारत का बैंकिंग सिस्टम बहुत मजबूत है. हालांकि, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि जब बैंक रन आता है और लोग तेजी से पैसे निकालने लगते हैं तो बैंकों का डूबना लगभग तय होता है.
2008 की मंदी में भी तो ऐसा ही हुआ था
साल 2008 में भी इसी तरह एक के बाद एक तमाम बैंक डूबना शुरू हो गए थे और कई देश मंदी की चपेट में आ गए. जब लेहमन ब्रदर्स बैंक डूबा था, उस वक्त अमेरिका में ब्याज दरें उसी लेवल पर थीं, जिस लेवल पर आज हैं. उस वक्त जब एक के बाद एक बैंक डूबना शुरू हुए थे, तो मंदी को काबू करना मुश्किल हो गया था.
अभी मंदी को काबू करने के लिए क्या कर रही सरकार?
देश में मंदी ना आए, इसी वजह से तेजी से ब्याज दरें बढ़ाई जा रही थीं. दरअसल, ब्याज दरें बढ़ाकर सरकारें बाजार में सर्कुलेशन के पैसों को कम करने की कोशिश करती है. इससे लोगों की पर्चेडजिंग पावर घट जाती है और डिमांड कम होने लगती है. इस तरह धीरे-धीरे महंगाई नीचे आने लगती है और देश मंदी में जाने से बच जाता है. हालांकि, ब्याज दरें बढ़ाना इस बार भारी पड़ता नजर आ रहा है. वहीं फेडरल रिजर्व अभी भी ब्याज दरें बढ़ाता ही जा रहा है. जब अमेरिकी बैंक डूबने लगे तो अनुमान लगाया जा रहा था कि अब फेडरल रिजर्व ब्याज दरें बढ़ाना रोक देगा, क्योंकि ब्याज दरें बढ़ती रहने की वजह से ही बैंक डूब रहे हैं. हालांकि, फेड ने ऐसा नहीं किया और उसकी तरफ से दरें बढ़ाया जाना अभी भी जारी है.
भारत के बैंकों का अब क्या होगा?
फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें बढ़ाए जाने के बाद अब अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार फिर से भारतीय रिजर्व बैंक भी ब्याज दर बढ़ाएगा. मौजूदा वक्त में रेपो रेट 6.50 फीसदी पर है और इसमें 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है. इस बढ़ोतरी के बाद नया रेपो रेट 6.75 फीसदी हो जाएगा. तो क्या भारत के बैंकों पर इसका बुरा असर दिखेगा? भारत के बैंकों पर इसका असर जो भी हो, लेकिन एक बात तय है कि 3 भारतीय बैंक किसी हालत में नहीं डूबेंगे. भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले ही कहा है कि इन बैंकों को किसी भी हालत में डूबने नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि यह भारत के सबसे बड़े बैंक हैं. ऐसे बैंकों को D-SIB कहा जाता है, जिसमें SBI, ICICI और HDFC बैंक शामिल हैं. अगर किसी वजह से इनमें से एक भी बैंक डूबा तो बहुत बड़ा आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा. D-SIB यानी डोमेस्टिक सिस्टमेटिकली इम्पॉर्टेंट बैंक की लिस्ट 2008 की मंदी के बाद ही बनाई गई थी, ताकि देश के सबसे बड़े बैंकों को किसी भी हालत में डूबने से बचाया जा सके.