अनिल अंबानी की कर्ज़ में डूबी एक कंपनी खरीद सकते हैं कुमार मंगलम बिड़ला!
भारी कर्ज में डूबे अनिल अंबानी (Anil Ambani) की एक कंपनी को खरीदने के लिए कुमार मंगलम बिड़ला (Kumar Manglam Birla) आगे आए हैं. रिलायंस कैपिटल इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया से गुजर रही है क्योंकि कंपनी भारी कर्ज में डूबी है. इसके लिए नॉन-बाइंडिंग बिड्स जमा करने की अंतिम तारीख 29 अगस्त थी लेकिन रिलायंस निप्पन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को खरीदने के लिए कोई आगे नहीं आया था. रिलायंस कैपिटल की बाकी कंपनियों के लिए बोली मिली थी. इस बीच कुमार मंगलम बिड़ला रिलायंस निप्पॉन को खरीदने के लिए आगे आए हैं. रिलायंस निप्पॉन, रिलायंस कैपिटल की सहयोगी कंपनी है. रिलायंस निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस रिलायंस कैपिटल की एकमात्र सहायक कंपनी थी, जिसे नॉन बाइंडिंग बिड्स जमा करने की समय सीमा 29 अगस्त को समाप्त होने पर कोई बोली नहीं मिली थी जबकि रिलायंस कैपिटल लिमिटेड (आरसीएल) को अपने कई बिजनेस के लिए 14 नॉन बाइंडिंग बिड्स मिली थी. इसके लिए रिजॉल्यूशन सबमिट करने की अंतिम तारीख 29 अगस्त थी. इनमें पीरामल ग्रुप (Piramal Group) की अगुवाई वाला कंसोर्टियम भी शामिल है. इसके अलावा ओकट्री कैपिटल, टॉरेंट इनवेस्टमेंट्स, इंडसइंड इंटरनेशनल और कॉस्मी फाइनेंशियल सर्विसेज ने भी बोली लगाई है. इन कंपनियों ने पूरी कंपनी या कुछ क्लस्टर्स खरीदने के लिए बोली लगाई है.
सूत्रों के मुताबिक़, RNLIC की कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) ने आदित्य बिड़ला कैपिटल लिमिटेड को बोली लगाने की मंजूरी दे दी है. इस कंपनी में रिलायंस कैपिटल की 51 फीसदी और निप्पन लाइफ ऑफ जापान की 49 फीसदी हिस्सेदारी है. बोलियां जमा करने की अंतिम तिथि 31 अक्टूबर है. बोली लगाने वालों के लिए दो विकल्प उपलब्ध हैं. पहले के तहत, बिडर्स को पूरे आरसीएल के लिए बोलियां जमा करने की जरूरत होती है और दूसरे में, उनके पास कंपनी के खास काम के क्षेत्रों के लिए बोली लगाने का विकल्प होता है.
कितना है कर्ज
रिलायंस कैपिटल में करीब 20 फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनियां हैं. इनमें सिक्योरिटीज ब्रोकिंग, इंश्योरेंस और एक एआरसी शामिल है. आरबीआई ने भारी कर्ज में डूबी रिलायंस कैपिटल के बोर्ड को 30 नवंबर 2021 को भंग कर दिया था और इसके खिलाफ इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग शुरू की थी. सेंट्रल बैंक ने नागेश्वर राव को कंपनी का एडमिनिस्ट्रेटर बनाया था. राव ने बोलीकर्ताओं को पूरी कंपनी या अलग-अलग कंपनियों के लिए बोली लगाने का विकल्प दिया था. एडमिनिस्ट्रेटर ने फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के 23,666 करोड़ रुपये के दावों को वेरिफाई किया है. एलआईसी (LIC) ने 3400 करोड़ रुपये का दावा किया है.
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Edited by Prerna Bhardwaj