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कभी रेलवे स्टॉल पर काम करता था ये शख्स, अब एनजीओ और चेंजमेकर्स के लिए बनाया ये खास कॉम्युनिटी प्लेटफॉर्म

कभी रेलवे स्टॉल पर काम करता था ये शख्स, अब एनजीओ और चेंजमेकर्स के लिए बनाया ये खास कॉम्युनिटी प्लेटफॉर्म

Friday October 25, 2019 , 7 min Read

14 साल की उम्र में, अधिकांश बच्चे इस बारे में सोचते हैं कि उन्हें किस गेम या एक्टिविटी पर अपना फोकस करना चाहिए। लेकिन इस उम्र में मनोज पचौरी जीवनयापन के लिए टॉप-अप कार्ड बेच रहे थे, अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे और अपनी शिक्षा का खर्च भी खुद ही उठा रहे थे। मनोज अलीगढ़ जिले के एक छोटे से गांव पोहिना से हैं। उनका बचपन काफी टफ रहा। वह चाहते थे कि वे अपने परिवार की मदद करें और साथ ही अपनी शिक्षा भी पूरी करें। हालांकि मनोज के लिए अंग्रेजी में बोलना एक असंभव सपना जैसा लग रहा था।


27 साल के मनोज कहते हैं,

''अंग्रेजी को भूल जाइए, एक समय था जब मैं यह भी नहीं सोच पाता था कि मैं हिंदी बोल पाऊंगा या नहीं।''


वह तब से एक लंबा सफर तय कर रहे हैं। 2018 में, मनोज ने सोशियो स्टोरी (Socio Story) की स्थापना की, जो एक सामाजिक समुदाय मंच है और सामाजिक प्रभाव पैदा करने वाले लोगों, कहानियों और विचारों को एक आवाज और मंच प्रदान करता है।


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मनोज पचौरी

दुनिया को बेहतर जगह बनाने के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों की यात्रा के बारे में बताने के अलावा, सोशियो स्टोरी का यह मंच उन्हें अपने विचारों को निष्पादित करने के लिए विशेषज्ञों और अन्य सामाजिक प्रभाव निर्माताओं के साथ भी जोड़ता है। अब तक, सोशियो स्टोरी ने आठ एनजीओ को मेंटॉर किया है और 1,000 से अधिक लोगों को प्रभावित किया है। वर्तमान में, संगठन आरोग्या (Aaroogya) को मेंटॉर कर रहा है। आरोग्या दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में 5,00,000 महिलाओं की मदद करने वाली डोर-टू-डोर हेल्थ केयर फैसिलिटी है।

शुरुआत

हालांकि, मनोज के लिए यह आसान नहीं था, क्योंकि वे आर्थिक रूप से मजबूत पृष्ठभूमि से नहीं थे। वे कहते हैं,

“यह मेरे और मेरे परिवार के काफी मुश्किल था। मेरे पिता एक किसान और मजदूर के रूप में काम करते थे। मेरी मां भी यह सुनिश्चित करने के लिए हर दिन काम करती थी कि मेरी थाली में भोजन कम न हो।”


जब मनोज 14 साल हुए और नौवीं कक्षा में पहुंचे, तो उन्होंने इन समस्याओं को अपने हाथों में लेने का फैसला किया। वह 5 और 10 रुपये के टॉप-अप कार्ड खरीदने के लिए पास के शहर में गए, और वापस लाकर उन्होंने अपने गांव में उन टॉप-अप कार्ड्स को 6 रुपये और 11 रुपये में बेचा। इससे उन्हें महीने में लगभग 5,000 कमाने में मदद मिली। इन पैसों के जरिए वे अपनी शिक्षा और अपने परिवार को सपोर्ट करने में सफल रहे।


उन्होंने अपने स्टेट बोर्ड एग्जाम भी क्लियर किए, और 2008 में, पास के कॉलेज, मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन कोर्स में ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन लिया। अब उनके लिए अगली बड़ी बाधा थी सेमेस्टर फीस।


वे कहते हैं,

“मेरे माता-पिता मेरे सेमेस्टर की फीस चुकाने के लिए लोगों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेते थे। पैसा लौटाने के लिए; मेरे माता-पिता महीनों तक खेतों में काम करते थे। मेरे स्नातक होने तक यह इसी तरह चलता रहा और मैं अपने चाचा के घर पर रहा करता था।"



स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, 2011 में, मनोज ने नौकरी की तलाश शुरू की, और इंटरव्यू के लिए 25 से अधिक कंपनियों में गए, लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया। कुछ संघर्षों के बाद, वह नोएडा गए और एक फील्ड बॉय के रूप में नौकरी की, जहां उन्हें प्रति माह 2,000 रुपये की कमाई होती थी। यह वो काम नहीं था जिसे मनोज करना चाहते थे।


वह याद करते हुए कहते हैं,

“मैं रेलवे स्टेशन पर था और मेरे पास पैसे नहीं थे। इसलिए, मैंने स्टॉल मालिकों के लिए काम किया। मैं उनके स्टॉक को भरने के लिए माल की डिलीवरी करके थोड़े पैसे कमाने लगा। कुछ दिनों के बाद, जब मेरे पास कुछ पैसे जमा हो गए, तो मैंने एक बेहतर जीवन यापन करने और अपने परिवार का समर्थन करने के लिए एमबीए करने का मन बनाया।”

चीजों को घुमाते हुए

इस बार, मनोज को अपने लिए कॉलेज की फीस खुद जमा करनी थी, इसलिए उन्होंने एक-दो बैंकों से संपर्क किया। वे कहते हैं, "शुरुआत में मैनेजर इसे अप्रूव नहीं कर रहा था, लेकिन मुझे लगातार एक महीने बैंक आते देख मैनेजर मान गया और उसने मेरे एजुकेशन लोन की मंजूरी दे दी। जिसके लिए मैंने अपने परिवार की जमीन को कॉलैटरल के रूप में जमा किया।" 2014 में एमबीए पूरा करने के बाद, उन्हें कैंपस प्लेसमेंट के माध्यम से नौकरी मिली। सेल्स और मार्केटिंग के क्षेत्र में उनकी जॉब के अच्छी कमाई हुई लेकिन मनोज इससे संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने कुछ नौकरियां बदलीं लीं और 2016 में दिल्ली चले गए।


उनकी नौकरियों और अनुभव ने उन्हें एहसास दिलाया कि बहुत से लोग अच्छा करना चाहते हैं और समाज को कुछ देना चाहते हैं। दुर्भाग्य से, बिना किसी संसाधन और समर्थन के, कई व्यक्ति और गैर-सरकारी संगठन अपने विचारों को आगे नहीं बढ़ा पाते।


वह कहते हैं,

“जब भी मैं अपने गाँव वापस जाता था, तो मैं कई ऐसे युवाओं को देखता, जिनके पास जुनून तो था लेकिन कोई सपोर्ट नहीं। यहां तक कि बुनियादी शिक्षा भी संभव नहीं है क्योंकि उनके माता-पिता हर दिन पेट भरने के लिए संघर्ष करते हैं।”

मददगार हाथ

मनोज ने देखा कि जैविक खेती और अन्य स्थायी परियोजनाओं के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की मदद करने की जरूरत है। 2017 में, उन्होंने नोएडा में कार्यक्रम आयोजित करने शुरू किए, जहां समाज के लिए कुछ अच्छा काम करने वाले लोग मंच पर आते और अपनी कहानियां साझा करते। वे इसके साथ-साथ अपनी जॉब भी कर रहे थे, और स्थानीय एनजीओ और व्यक्तियों के लिए छोटे पैमाने पर कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे थे।


वे कहते हैं,

“यह अनौपचारिक था। मुझे कोई आइडिया नहीं था कि इसे कैसे तैयार किया जाए। हालांकि 2018 में चीजें शुरू हुईं जब मैंने सीखा कि कैसे अपने आइडियाज को कैसे लागू किया जाए।”

मनोज ने लगातार सात से आठ कार्यक्रम आयोजित किए, और इंडस्ट्री में अपने कॉन्टैक्ट के जरिए उन्होंने सीएसआर प्रमुखों को बुलाना शुरू किया। और इसी के चलते सोशियो स्टोरी का जन्म हुआ। सोशियो स्टोरी के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से भाग लेने वाले एनजीओ में क्लाउनसेलर्स, आरोग्य, लव हील्स, और अन्य शामिल हैं। मनोज ने जल्द ही अपनी नौकरी छोड़ दी और सोशियो स्टोरी बिल्ड करने का फैसला किया।


वे कहते हैं,

''हम सीएसआर प्रोजेक्ट्स को हासिल करने, या अपनी वेबसाइट बनाने या मामूली शुल्क पर कुछ कानूनी सहायता देने के मामले में गैर-सरकारी संगठनों को प्रारंभिक चरण की सहायता प्रदान करते हैं।''



सोशियो स्टोरी का एक वर्टिकल भी है जिसे सोशियोस्टोरी एकेडमी कहा जाता है, जहाँ मनोज चेंजमेकर्स को सामाजिक क्षेत्र के उद्यमों में ज्ञान और कौशल के बीच की खाई को पाटने और सफल होने में मदद करते हैं। वह प्रशिक्षक के नेतृत्व वाली कार्यशालाएं और वेबिनार प्रदान करते हैं जो सामाजिक क्षेत्र में क्षमताओं को बढ़ाता है। इन सभी एक्टिविटीज को स्पॉन्सरशिप के माध्यम से फंड किया जाता है।


सोशियो स्टोरी पर कहानी साझा करने के लिए, आपको एक रजिस्ट्रेशन करना होगा। प्रत्येक तिमाही में लगभग 500 रजिस्ट्रेशन प्राप्त होते हैं, और एक विशेषज्ञ पैनल द्वारा इनकी समीक्षा की जाती है, जिसमें अशोका विश्वविद्यालय के सदस्य, TEDx स्पीकर्स, कम्युनिटी लीडर और कई अन्य शामिल होते हैं। समीक्षा के बाद, पांच प्रतियोगियों को उनकी कहानियों को साझा करने के लिए चुना जाता है। विजेता को अपने आइडिया को पेश करने और CSR लीडर्स के साथ बातचीत करने का अवसर मिलता है। अब तक, सोशियो स्टोरी के जरिए 2,400 कहानियों को साझा किया जा चुका है, और इसने पांच आइडियाज को एग्जीक्यूट करने में मदद की है।

आगे का रास्ता

मनोज अब एक निवेशक पैनल (investor’s panel) बनाने के इच्छुक है। उनका उद्देश्य पूरे भारत के गैर-सरकारी संगठनों को जोड़ने और उन्हें अपने कार्यों को बढ़ाने के लिए फंड या वैकल्पिक सहायता दिलाना है। वह उन कई नायाब नायकों की कहानियों को भी दुनिया के सामने रखना चाहते हैं जो दुनिया भर में समाज के लिए कुछ अच्छा कर रहे हैं। मनोज का उद्देश्य उन्हें पर्याप्त सहायता देना है, जिससे उन्हें एक प्रभावी उद्यम बनाने में मदद मिल सके और उन्हें सही निवेशक और मीडिया एक्सपोजर मिल सके।