सड़कें बोल उठीं : पीएम मोदी की बात निकली तो दूर तक दिखने लगा असर
पीएम की मुहिम का असर, प्लास्टिक की सड़कें...
"पीएम ने सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ आवाज़ क्या लगाई कि उसका दूर तक असर दिख रहा है। चेन्नई, पुणे, जमशेदपुर, इंदौर के बाद अब फरीदाबाद, दिल्ली, लखनऊ, शिमला, बेंगलुरु, कानपुर में भी प्लास्टिक से सड़कें बन रही हैं। इस बीच केम्ब्रिज के वैज्ञानिक ने प्लास्टिक हजम करने वाला एक कीड़ा भी खोज निकाला है।"
पीएम नरेंद्र मोदी ने सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ आवाज़ क्या लगाई कि उसका दूर तक कई रूपों में असर दिखने लगा है। इसकी और कोई नहीं, बल्कि कई राज्यों में बिछने लगीं प्लास्टिक की सड़कें गवाही दे रही हैं। बेंगलुरु से हरियाणा, हिमाचल और दिल्ली से लखनऊ, पटना, झारखंड, चेन्नई तक ये सड़कें अपने नए कलेवर में पीएम की ही मुहिम की सफलता की तस्दीक कर रही हैं। फरीदाबाद (हरियाणा) में इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने डामर (बिटुमिन) कंक्रीट में 1.6 करोड़ टन सिंगल यूज प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल कर रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट फेसिलिटी के निकट 850 मीटर का रोड तैयार कर दिया है। फिलहाल, पहले इस सड़की की ताकत और टिकाऊपन परखा जा रहा है।
अनुमान है, तीन प्रतिशत प्लास्टिक कचरे से एक किमी रोड बनाने में 2 लाख रुपये की बचत होगी। प्रयोग सफल रहा तो मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपॉर्ट ऐंड हाइवेज से ऐसी पॉलिसी बनाने की सिफारिश की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले, केंद्र सरकार ने नवंबर 2015 में ही रोड डेवलपर्स को प्लास्टिक का कचरा इस्तेमाल करने का आदेश दिया था। उसके बाद अगस्त 2018 में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल सड़कों के निर्माण में अनिवार्य करने की योजना बनाई। इस पर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय भी सहमत हो गए लेकिन मामला फिर ठंडा पड़ गया।
अब दिल्ली में रोजाना पैदा हो रहे 690 टन प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल राजधानी में सड़क निर्माण और मौजूदा सड़कों की मरम्मत में करने की प्लॉनिंग बन रही है। केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रो. सतीश चंद्रा ने इस संबंध में दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर इस प्लास्टिक सड़क निर्माण में हर तरह की जरूरी सहायता उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है।
इस बीच पीएम की सिंगल यूज प्लास्टिक मुहिम का सड़क निर्माण में कई राज्यों में साफ साफ असर सामने आ चुका है। यूपी में पहली बार पॉलिथीन के वेस्ट से पुलिस भवन के पास गोमती नगर विस्तार में सड़क बन रही है। चेन्नई, पुणे, जमशेदपुर और इंदौर के बाद अब लखनऊ उन शहरों में शामिल हो गया है, जो प्लास्टिक कचरे से सड़कें बना रहे हैं। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कानपुर नगर निगम ने भी प्लास्टिक से दो सड़कों का निर्माण कराने जा रहा है। बेंगलुरु में भी प्लास्टिक के कचरे से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के दूसरे टर्मिनल के सामने सड़क बन रही है। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस हिदायत के साथ प्लास्टिक कचरे से ग्रामीण सड़कें बनाने का संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इसके लिए प्लास्टिक कचरा राज्य के बाहर से नहीं मंगवाने की व्यवस्था सुनिश्चित कर लें।
हिमाचल प्रदेश ने प्लास्टिक के कचरे से निबटने की दो मुख्य तरकीबें निकाली हैं, सड़क बनाने के साथ ही उसका सीमेंट की भट्टियों में इस्तेमाल करना। राज्य सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट को सड़क निर्माण में इस्तेमाल करने के लिए बाक़ायदा नीति बनाकर इसे लागू भी कर दिया है। अब तक राज्य में ऐसी कई प्लास्टिक सड़कें बना भी ली हैं। अब शिमला के पास प्लास्टिक वेस्ट से 10 किलोमीटर लंबी सड़क बनने जा रही है। इंजीनियर कचरा कम पड़ने के अंदेशे में दूसरे राज्यों से प्लास्टिक वेस्ट खरीदने की भी हिमाचल सरकार को हिदायत दे चुके हैं।
हर साल दुनिया भर में आठ करोड़ टन प्लास्टिक पॉलीथिन का उत्पादन हो रहा है। प्रदूषण का कारगर इलाज ढूंढ निकालने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ केम्ब्रिज के बायोकेमिस्ट वैज्ञानिक डॉक्टर पाओलो बॉम्बेली ने खुलासा किया है कि मधुमक्खी का छत्ता खाने वाला कैटरपिलर कीड़ा गैलेरिया मेलोनेला प्लास्टिक भी खा सकता है। वह प्लास्टिक की केमिकल संरचना को उसी तरह तोड़ देता है, जैसे मधुमक्खी के छत्ते को पचा लेता है।
यद्यपि सबसे पहले 2012 में मदुरै के त्यागराजन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के प्राध्यापक आर वासुदेवन ने प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने की तकनीक खोजी थी। उन्होंने बेकार प्लास्टिक से डेढ़ किलोमीटर सड़क बनवाकर भविष्य में बड़े खतरे के खिलाफ लोगों को आगाह किया था। केके प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नामक कंपनी ने अपने नेटवर्क के जरिये देश भर में लगभग आठ हजार किलोमीटर प्लास्टिक की सड़कें बनवाई हैं।
तमिलनाडु को इसमें महारत हासिल है लेकिन बेंगलुरु शहर में रह रहे अहमद खान बता रहे हैं कि 1990 के दशक में उन्होंने प्लास्टिक का कारखाना लगाया लेकिन कुछ समय बाद उनको लगा कि इससे पर्यावरण के आघात लगेगा। इस समस्या का हल ढूंढने के लिए उन्होंने 2002 में उस कचरे से सड़कें बनाने का तरीका इजाद किया। उन्होंने सबसे पहले कर्नाटक में अपने फार्मूले को लागू करने की पहल की।
सरकार ने भी इस नई तकनीक पर अपनी मुहर लगा दी और बेंगलुरु मुनिसिपल कॉर्पोरेशन के जरिए अहमद ने सड़कें बनाने का काम शुरू किया। दावा है कि अब तक वह अलग-अलग जगहों पर 2000 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सड़कें बना चुके हैं। उन्होंने दिल्ली, हैदराबाद में भी अपना प्रोजेक्ट पेश किया लेकिन नौकरशाही आड़े आ रही है।