2 साल की उम्र में पोलियो को मात देकर IRS बनने वालीं सारिका जैन कोरोना से जंग में यूं कर रहीं सरकार की मदद
कोरोना वायरस (COVID-19) से लड़ने के लिए पूरा देश एकजुट है। हर कोई सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। फिर चाहे 'जनता कर्फ्यू' का समर्थन करने की बात हो या फिर अपने स्तर पर सहयोग करने की। इस महामारी से निपटने के लिए देश की जनता सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है।
हर शख्स और संस्था अपने स्तर पर छोटी या बड़ी हेल्प कर रहे हैं। जहां एक मेडिकल स्टोर वाला लोगों को 2 रुपये में मास्क उपलब्ध करवा रहा है तो वहीं देश के नामी बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को अस्थाई वेंटिलेटर में बदलने के लिए तैयार हैं।
कोरोना के दौर में ऐसी ही मदद की कई तस्वीरें सामने आ रही हैं। भारतीय रेवेन्यू सर्विस (आईआरएस) अधिकारी सारिका जैन भी कोरोना से लड़ने में अपना योगदान दे रही हैं जिनकी हर कोई तारीफ कर रहा है। रविवार को 'जनता कर्फ्यू' के दिन जहां अधिकतर लोग फिल्में देखने और बाकी घर के कामों में बिता रहे थे। उस दिन सारिका जैन ने घर पर रहकर मास्क तैयार किए जिन्हें वे अपने आसपास के इलाके के लोगों में बांटेंगी।
इस बारे में उनके पति सीए विराग शाह ने ट्वीट कर जानकारी दी। ट्वीट में उन्होंने एक विडियो पोस्ट किया। साथ में लिखा,
'इस जनता कर्फ्यू के दिन मेरी माता जी और मेरी पत्नी घर पर ही मास्क बना रही हैं। मेरी पत्नी आईआरएस सारिका जैन, डेप्युटी कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स, मुंबई में पोस्टेड हैं। हम ये मास्क हमारे इलाके के जरूरतमंद लोगों में बाटेंगे।'
आप भी देखिए विडियो...
यह विडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया यूजर्स ने उनकी तारीफ की। उनके फोटो को आईपीएस अरुण बोथरा ने भी ट्वीट किया। अरुण बोथरा ने लिखा,
'लॉकडाउन के दौरान क्या किया जाए? सारिका जैन अपने समय का उपयोग मास्क बनाने में कर रही हैं जिन्हें वे बांद्रा में अपने जरूरतमंद पड़ोसियों में बांटेंगी। सारिका एक आईआरएस ऑफिसर हैं जो मुंबई में डेप्युटी कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स हैं। वह ओडिशा के कांताबंजी से ताल्लुक रखती हैं।'
2 साल की उम्र में हो गया था पोलियो, समाज से लड़ते हुए सीए के बाद आईआरएस बनीं सारिका जैन
सारिका जैन ओडिशा के एक छोटे से गांव काटावांझी में एक संयुक्त परिवार में जन्मीं। 2 साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया था। इसके बाद घरवालों ने उनका डॉक्टर से इलाज करवाया। डॉक्टर को लगा कि उन्हें मलेरिया है तो उसने मलेरिया का इंजेक्शन लगा दिया और इस कारण उनकी हालत और बिगड़ गई। उनके 50% शरीर ने काम करना बंद कर दिया। वह 1.5 साल तक कोमा की सिचुएशन में बेड पर पड़ी रहीं। उन्होंने 4 साल की उम्र में चलना शुरू किया। आसपास में कोई भी स्कूल उन्हें एडमिशन नहीं देना चाहता था।
कैसे जैसे करके एक स्कूल में एडमिशन मिला। हाल ऐसा कि स्कूल वापस आते वक्त कई बच्चे उन्हें चिढ़ाते और पत्थर तक मारते थे। वह कहती हैं कि मेरे शरीर में पोलिया था लेकिन मेरे मन में नहीं। उनकी इच्छा डॉक्टर बनने की थी लेकिन घरवालों ने वित्तीय हालत का हवाला देकर बाहर जाने से मना कर दिया। उन्होंने पास के कॉलेज से कॉमर्स से ग्रेजुएशन की। धीरे-धीरे कई मुश्किलों और परेशानियों का सामना करते हुए उन्होंने पढ़ाई पूरी की और सीए की तैयारियां शुरू कीं। उनकी मेहनत का ही परिणाम था कि वह सीए में सफल हो गईं।
एक टॉक शो में उन्होंने बताया कि एक बार ट्रेन में किसी ने उन्हें बताया कि आईएएस नाम का भी पद होता है। वहीं से मन हुआ और उन्होंने घर पर जाकर बताया कि आईएएस की पढ़ाई करनी है। घरवालों को भरोसा नहीं हुआ। घरवालों ने समझाया कि आईएएस बहुत ऊंचे लेवल की चीज है, हम जैसे लोग नहीं कर सकते लेकिन सारिका के आगे वे सभी झुक गए। घरवालों ने उन्हें 1.5 साल का समय दिया। फिर वहां से वह दिल्ली आईं। सिर्फ एक साल में ही उन्होंने पहले अटेंप्ट में यूपीएससी का एग्जाम पास कर लिया।
वह मारियो गेम का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि बिना चैलेंज वाली लाइफ में मजा नहीं रहता है। वह युवाओं से कहती हैं कि किताबें सभी के लिए समान होती हैं। असली फर्क डालती है आपकी शिद्दत और आपके पढ़ने का तरीका। उनका मानना है कि शिक्षा ही ऐसी चीज है जो आपको और समाज को बदल सकती है।
वह कहती हैं,
'अगर रास्ते हैं तो ख्वाब हैं, ख्वाब हैं तो मंजिलें हैं, मंजिलें हैं तो फासले हैं, फासले हैं तो हौसलें हैं और हौसले हैं तो विश्वास है।'