इसरो की नौकरी छोड़कर खेती के आधुनिक उपकरण बना रहे साइंटिस्ट नितिन गुप्ता
राजस्थान के गांव श्रीकरणपुर के साइंटिस्ट नितिन गुप्ता इसरो की नौकरी छोड़कर पिछले आठ वर्षों से किसानों की मुश्किलें आसान करने के लिए अपना 'Sickle Innovations' स्टार्टअप चला रहे हैं। वह कॉटन पिक, खुबानी पिकर, सोलर इनसेक्ट ट्रैप, सी बकथॉर्न पिकर, मार्केट लिंकेज ग्रेडिंग मशीनों का आविष्कार कर चुके हैं।
श्रीगंगानगर (राजस्थान) के गांव श्रीकरणपुर के रहने वाले साइंटिस्ट नितिन गुप्ता इसरो की नौकरी छोड़कर पिछले आठ वर्षों से Sickle Innovations नाम से अपना स्टार्टअप चला रहे हैं। अपने आधुनिक कृषि-आविष्कार के लिए इनके स्टार्टअप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अमेरिका की सिलिकॉन वैली में इनोवेटिव कंपनी का अवॉर्ड, फिक्की का बिजनेस इनोवेशन अवॉर्ड, सीआईआई टेक्निकल इनोवेशन इन एग्रीकल्चर अवॉर्ड, आईसीएफए का फूड एंड एग्रीकल्चर में बेस्ट फार्म टेक स्टार्टअप अवॉर्ड मिल चुका है। वह किसानों के लिए ऐसे उपकरण ईजाद कर रहे हैं, जिनके मैकेनिज्म एकदम नए-नए होते हैं।
इन उपकरणों की वह बहुत कम कीमत रखते हैं, ताकि उनके आविष्कार और निर्माण की लागत आसानी से कवर हो सके। अभी हाल ही में नीतिन ने भारत में निर्मित पहली मार्केट लिंकेज वेजिटेबल फ्रूट ग्रेडिंग मशीन बनाई है। इससे फल-सब्जियां छंटते ही आसपास के आढ़तियों के पास कलर, साइज, क्वालिटी की डिटेल्स के साथ मैसेज पहुंच जाता है और वे जरूरत के अनुसार किसानों से संपर्क कर लेते हैं।
भारत के पहले मंगलयान प्रोजेक्ट के लिए रिसर्च कर चुके नितिन गुप्ता बेंगलुरु से मास्टर ऑफ डिजाइन की डिग्री लेने के बाद वर्ष 2011 में नौकरी छोड़ कर अपने स्टार्टअप पर काम करने लगे। अब तक वह कॉटन पिक, खुबानी पिकर, सोलर इनसेक्ट ट्रैप, सी बकथॉर्न पिकर और मार्केट लिंकेज ग्रेडिंग मशीनों का आविष्कार कर चुके हैं।
वर्ष 2015 में केंद्र सरकार की ओर से उनकी कंपनी का देश के टॉप-35 स्टार्टअप में चयन हो चुका है।
नितिन गुप्ता की शुरुआती पढ़ाई श्रीगंगानगर के अपने गांव श्रीकरणपुर में हुई।
उसके बाद उन्होंने चेन्नई से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। वर्ष 2008 में वह इसरो के साइंटिस्ट बन गए।
कुछ साल वहां बिताने के बाद वह नौकरी छोड़कर अपने गांव लौट आए।
उस समय दरअसल, उनका मकसद किसान बनना नहीं, बल्कि किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए खेती के आधुनिक यत्र ईजाद करना था। नितिन के इस बदलाव में उनके उन सहपाठियों की प्रेरणा रही, जो गांव में खेती करने लगे थे और जब नितिन इसरो से छुट्टी पर घर आते तो खेत-खलिहान की मुश्किलों के बारे में वे उनसे तरह-तरह की जानकारियां साझा करते थे।
सुनते-सुनाते नितिन अपने गुजरे जमाने, छात्र जीवन के सहपाठी किसानों को खेती की मुश्किलों पर तमाम तरह की बातें सुझाते रहते लेकिन उन्हे लगा कि इस तरह के निठल्ले चिंतन से किसानों का कोई भला नहीं होने वाला है। एक दिन उन्होंने संकल्प ले लिया कि अब वह नौकरी छोड़कर आगे का अपना पूरा वक्त किसानों की मुश्किलें आसान करने में बिताएंगे।
उसके बाद इसरो की नौकरी छोड़कर नीतिन अपने दोस्त विनय रेड्डी के साथ पहला कॉटन पिकर कृषि उपकरण बनाने लगे लेकिन दो वर्ष गुजर गए, उन्हे कामयाबी नहीं मिली तो हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर से लेह-लद्दाख की रिसर्च में जुटे रहे।
आखिरकार, चार महीने बाद उन्हेपिकर बनाने में सफलता मिल गई और यह उपकरण किसानों के बड़े काम का साबित हुआ।
इसके बाद नितिन ने पांच और भी अलग-अलग तरह के उपकरण ईजाद कर डाले।
इस समय उनके इन कृषि उपकरणों की ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इजरायल तक से डिमांड है।
उन्होंने कश्मीर के केसर उत्पादक किसानों के लिए आधुनिक ड्रायर ईजाद किया है।
इसी तरह मैदानी इलाके के किसानों के लिए उन्होंने एक ऐसी मशीन बनाई है, जो कैमरे से फसलों की स्कैनिंग के साथ ही प्रति घंटे एक टन की रफ्तार से सब्जियां खेत से निकाल लेती है।