सब्जियों और फल के कचरे से शुरू किया पशुआहार बनाने का स्टार्टअप
पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन भारत में होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2018 में भारत में 176 मिलियन मीट्रिक टन दूध का उत्पादन हुआ। भारत में 12 करोड़ से अधिक किसानों की आजीविका डेयरी पर ही निर्भर है। लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाले चारे की अनुपलब्धता और पशु चारा की उच्च लागत के कारण किसान आजीविका कमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इससे गायों और भैंसों के स्वास्थ्य के साथ-साथ दूध की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।
इंडियन ग्रासलैंड एंड फॉडर रिसर्च इंस्टीट्यूट (IGFRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्तमान में हरे चारे के लिए 35.6 प्रतिशत, सूखे फसल अवशेष चारे के लिए 11 प्रतिशत, और अन्य चारा की 44 प्रतिशत की कमी का सामना कर रहा है।
इस परिदृश्य को बदलने के प्रयास में, 31 वर्षीय निखिल बोहरा ने 2015 में कृमांषि की स्थापना की, ताकि डेयरी किसानों के लिए भोजन और कृषि अपशिष्ट को कम लागत वाले चारे को अच्छे चारे में परिवर्तित किया जा सके। पिछले चार वर्षों में जोधपुर स्थित उनके स्टार्टअप ने राजस्थान में 500 से अधिक किसान परिवारों को दूध उत्पादन बढ़ाने और पशु चिकित्सा लागत को कम करने में मदद की है। इतना ही नहीं कृमांषि ने अब तक 100 टन कचरे को चारा में बदल कर पर्यावरण को भी बचाने की कोशिश की है।
कैसे हुई कृमांषि की शुरुआत
वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बायोटेक्नोलॉजी में अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, निखिल ने स्थिरता, पोषण और स्वास्थ्य, और स्वच्छता जैसे विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ काम करना शुरू कर दिया। एनजीओ से जुड़कर ही उन्हें पशु चारे के उत्पादन का विचार आया। हालांकि शुरुआत में उनकी योजना सूखे पत्तों, फली और झाड़ियों जैसे एग्रो फॉरेस्ट्री संसाधनों का उपयोग करके चारा बनाने की थी। बाद में, उन्होंने पशु चारा बनाने के लिए फल और सब्जी के कचरे और कृषि अवशेषों का उपयोग किया।
कृमांषि के संस्थापक और सीईओ निखिल बोहरा ने योरस्टोरी से बात करते हुए कहा, "भारत में हर साल लगभग 440 बिलियन रुपये की सब्जियां, फल और अनाज बर्बाद होते हैं। जब मैंने इसके बारे में पढ़ा तो चौंक गया। मैं इसके बारे में कुछ करना चाहता था। मैंने एक प्रयोग करने का फैसला किया। मैंने जोधपुर में गोदामों और मंडियों से गाजर, पपीता, और मौसमी जैसे फलों के अपशिष्ट को एकत्र किया और फिर उसे पशु चारा बनाने के लिए संसाधित किया। क्षेत्र के डेयरी किसानों में से एक ने अपने मवेशियों को इसे खिलाया और उत्पादित दूध की गुणवत्ता में सुधार देखा। परिणाम अच्छे मिले तो मैं आगे बढ़ा और इस ऑपरेशन को बढ़ाने के लिए एक योजना तैयार की।"
शुरू में इस स्टार्टअप को खुद के पैसों से शुरू किया गया था। बाद में INVENT प्रोग्राम के जरिए इसे बढ़ावा मिला। INVENT एक ऐसा प्लैटफॉर्म है जिसे भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग और यूनाइटेड किंगडम की सरकार द्वारा सहायता दी जाती है ताकि समावेशी और अभिनव समाधान खोजे जा सकें। कृमांषि को यस स्केल एक्सलेरेटर और राजस्थान सरकार से भी सहायता मिली। अभी सामाजिक उद्यम इनक्यूबेटर विलग्रो स्टार्टअप के संचालन की देखरेख कर रहा है।
इस स्टार्टअप में 8 पूर्णकालिक और 15 अंशकालिक कर्मचारी काम कर रहे हैं। कंपनी ने बीते कुछ सालों में अच्छी गुणवत्ता के पोषाहार की सुविधा उपलब्ध कराई है। देश में पशुओं की बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए कम लागत में पोषाहार मुहैया कराने के लिए निखिल ने जोधपुर में जूस की दुकानों में औ र स्थानीय बाजारों में मामूली पैसों में फल और सब्जियों के कचरे को इकट्ठा करने के लिए एक सिस्टम विकसित कर लिया है।
इस कचरे को जोधपुर या जयपुर में कृमान्षि की प्रसंस्करण इकाइयों में ले जाया जाता है। फिर इस कचरे को प्रसंस्कृत करने के लिए और सारी नमी को अवशोषित करने के लिए कुछ रसायन मिलाए जाते हैं। बाद में इसे चूर्णित करके पाउडर का रूप दिया जाता है। इस पाउडर को छोटी गोली या छर्रे में बनाकर के बाजार में बेचा जाता है। तैयार पशुआहार को राजस्थान के स्थानीय वितरकों को भेजा जाता है जो किसानों को बाकी पशुआहार के मुकाबले कम दाम में उपलब्ध कराते हैं।
निखिल कहते हैं, 'अभी हमारा छोटा लक्ष्य राजस्थान में अपनी उपस्थिति का विस्तार करना है। हम बेंगलुरु में 10 टन क्षमता वाले यूनिट को शुरू कर रहे हैं इसलिए आने वाले वक्त में कर्नाटक समेत अन्य राज्यों में भी अपना विस्ता करेंगे। हम गोदरेज एग्रोवेट के साथ एक पायलट प्रॉजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो हम भविष्य में इन प्रयासों को बढ़ाते रहेंगे। अब निखिल की योजना मुर्गी और मत्स्य पालन की तरफ भी विस्तार करने की है।
उद्देश्य है डेयरी किसानों के कल्याण को बढ़ावा देना
औद्योगिक विकास के कारण मवेशियों के लिए चराई क्षेत्र की उपलब्धता में भारी कमी आई है। इसलिए डेयरी किसान अपने मवेशियों के पोषण के लिए पशुआहार पर अत्यधिक निर्भर हैं। लेकिन, गुणवत्ता की कमी जानवरों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है और इससे दूध के उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है। कृमान्षि कम कीमत में पोषक तत्वों से भरपूर पशु आहार बेचने के साथ इस कमी को पूरा कर रहे हैं।