मुंबई में जंगल उजाड़ने के हठ का सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान
मुंबई की आरे कॉलोनी में हजारों पेड़ काटने की हठधर्मिता को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। ऐसे में सोचा जा रहा है कि जलवायु आपदा पर हमारी प्रतिबद्धता कितनी खाटी है। एक ओर पर्यावरण बचाओ मुहिम चल रही है, दूसरी तरफ महाराष्ट्र, यूपी, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड में जंगल उजाड़े जा रहे हैं।
तो ये है हमारे देश में जलवायु आपदा के खिलाफ खड़े होने की हकीकत। यह प्रकृति के प्रथम पुत्र आदिवासियों के ठिकाने डंके की चोट पर मुंबई में ही उजाड़ने की मनमानी नहीं है, इस जघन्यता का ओर-छोर उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, ओडिशा, प.बंगाल, बिहार तक है। पलटकर पन्ने पलटिए तो एक-एक कर सारे ऐसे अपराधों के अध्याय सिलसिलेवार खुलते चले जाएंगे। आरे में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर बहुत अच्छा किया है कि वे सारे घाव हरे हो जाने वाले हैं, जो जलवायु आपदा के विरोध का अभिनय करते हुए देश की आदिवासी आबादी को अबतक दिए गए हैं।
देश में आधुनिक विकास के नाम पर किस तरह प्राकृतिक संपत्तियों को नष्ट किया जा रहा है, यह वाकया उसका भी एक जीता-जागता सुबूत है। महाराष्ट्र में ऐन चुनाव के मौके पर इस मामले की आंच से बच निकलना राजनीतिक दलों के लिए भी अब आसान नहीं होगा। राजनीतिक दलीले दी जा रही हैं कि विकास भी और पर्यावरण सुरक्षा भी, दोनों साथ-साथ, ये तो वही बात हुई कि 'हंसब ठठाइ फुलाइब गालू।'
उल्लेखनीय है कि मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई के विरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर सुनवाई का फैसला किया है। कोर्ट ने लॉ स्टूडेंट् ऋषभ रंजन की ओर से पेड़ों को काटने के विरोध में लिखे गए लेटर को जनहित याचिका मानते हुए सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच का गठन भी कर दिया है। पिछले काफी दिनों से पर्यावरण प्रेमी मेट्रो शेड के लिए सैकड़ों की संख्या में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं। ऋषभ रंजन ने देश के सर्वोच्च न्यायाधीश को बताया है कि किस तरह लाख विरोध के बावजूद टारगेट किए गए कुल 2700 पेड़ों में से 1,500 पेड़ों को काट भी दिया गया है। सोमवार सुबह सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करने जा रहा है।
गौरतलब है कि इससे पूर्व बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में दाखिल अर्जी को खारिज कर दिया था। मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने भी पर्यावरण कार्यकर्ताओं के दावे को खारिज कर दिया। पुलिस ने कई छह महिलाओं सहित 29 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। पेड़ इसलिए काटे जा रहे हैं कि मेट्रो कॉरिडोर के रास्ते में आरे कॉलोनी के 2,500 पेड़ आ रहे हैं। आरे कॉलोनी को मुंबई का फेफड़ा कहा जाता है क्योंकि पेड़ों से ढका 3166 एकड़ क्षेत्रफल वाला यह यह इलाका मुंबई वासियों की सांसों में जहर घुलने से बचाता आ रहा है। 4 मार्च 1951 को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पौधारोपण के साथ आरे कॉलोनी की नींव रखी थी।
यह तो रही मुंबई की बात। उत्तराखण्ड जैसे हिमालयन राज्य में चल रहे निर्माण कार्यों जैसे बड़े बाँधों का निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, ऑल वेदर रोड, भव्य भवन निर्माण और अब रेल लाइन निर्माण आदि कार्यों में विकास के नाम पर विनाश के दरवाजे खोले जा रहे हैं। ऑल वेदर रोड के अन्तर्गत 30 हजार से अधिक वृक्षों की कटाई हो रही है। कृत्रिम टिहरी झील का निर्माण उत्तराखंडियों के दिल में पहले ही गहरा घाव कर चुका है। इसमें भी हजारों वृक्ष आहुति दे चुके हैं। इसी बीच महाकाली नदी पर प्रस्तावित एशिया के सबसे बड़े पंचेश्वर बाँध के लिए 1,583 हेक्टेयर वन भूमि का संभावित विनाश उत्तराखण्ड का पर्यावरण लीलने को मुंह खोले बैठा है।
उधर, गुजरात सरकार सौराष्ट्र ट्री कटिंग एक्ट 1951 में परिवर्तन कर वृक्षों की कटाई में किसी भी तरह की अनुमति की अनिवार्यता को खत्म कर चुकी है। छत्तीसगढ़ सरकार भी इस साल मई में उसी दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। राज्य में बैलाडीला खदान के नाम पर 25 हजार पेड़ों की बलि चढ़ाने की प्रक्रिया जून से शुरू हो चुकी है। नंदराज पहाड़ पर पहुंच रोड के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है।
मध्य प्रदेश में पिछले तीन दशकों में 70 हजार हेक्टेयर जंगल नष्ट किया जा चुका है। वन अधिकारी कानून की आड़ में 8 हजार से ज्यादा लोगों ने 40 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जंगल पर कब्जा जमा लिया है। एक ओर देश भर में पर्यावरण बचाने की मुहिम चल रही है, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में वन विभाग ने सिर्फ चार प्रजाति के पेड़ों को छोड़ कर बाकी सभी को काटने पर लगी रोक हटा ली है। नेशनल हाईवे के किनारे वाराणसी से गोरखपुर तक और बलिया से लखनऊ तक सारे पेड़ कट चुके हैं। बिहार की राजधानी पटना में सरकार की नाक के नीचे सड़क किनारे के पेड़ लगातार काटे जा रहे हैं, जबकि बिहार हाईकोर्ट कह चुका है कि पेड़ को काटना उसका मर्डर करना है।
रांची (झारखंड) में पिछले तीन वर्षों में सड़क निर्माण सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए करीब 80 हजार पेड़ काटे जा चुके हैं। दूसरी तरफ राज्य के वन माफिया पेड़ों को काटकर जंगल खाली करने में जुटे हुए हैं। इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में विकास कार्य के लिए वन क्षेत्रों में पेड़ों के काटने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है लेकिन वहां भी व्यापक स्तर पर वनों की अवैध कटाई जारी है। वन विभाग के पास पेड़ों की अवैध कटाई के 3714 मामले लंबित हैं।