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मिलिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, नेटफ्लिक्स और ऐप्पल जैसी कंपनियों को चलाने वाले डाटाबेस सिस्टम कैसंड्रा को बनाने वाले प्रशांत मलिक से

इस भारतीय के बनाए हुए डाटाबेस सिस्टम कैसंड्रा पर चलती हैं फेसबुक, इंस्टाग्राम, नेटफ्लिक्स और ऐप्पल जैसी कंपनियां, जानिए कैसी रही फेसबुक के निर्माण से लेकर अब तक की जर्नी

मिलिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, नेटफ्लिक्स और ऐप्पल जैसी कंपनियों को चलाने वाले डाटाबेस सिस्टम कैसंड्रा को बनाने वाले प्रशांत मलिक से

Wednesday November 06, 2019 , 15 min Read

साल था 2006, उस समय फेसबुक किसी नए बच्चे की तरह था जो हार्वर्ड और येल जैसे विश्वविद्यालयों में अपनी पकड़ बनाने में लगा था। धीरे-धीरे इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया, लेकिन ये अपने प्लेटफॉर्म पर अधिक से अधिक यूजर्स हासिल करना चाह रहा था। हालांकि इस दौरान इसे एक बड़ी बाधा का सामना करना पड़ा। समस्या थी अधिक यूजर्स को समायोजित करने के लिए सॉफ्टवेयर डेटाबेस को अपग्रेड करने की आवश्यकता। यह चुनौती काफी आकर्षक थी और यही वजह रही कि माइक्रोसॉफ्ट विंडोज कोड डेवलपर्स की टीम के एक प्रमुख सदस्य प्रशांत मलिक ने फेसबुक ज्वाइन करने का मन बनाया।


फेसबुक के सर्च इंजन को डेवलप करने के काम से लेकर, प्रशांत ने जल्द ही बड़ी मात्रा में डेटा को संभालने के लिए डिजाइन किए गए NoSQL डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम कैसेंड्रा (Cassandra) का निर्माण किया। बता दें कि कैसेंड्रा ही वह कोर सिस्टम है जिस पर फेसबुक, इंस्टाग्राम, नेटफ्लिक्स और ऐप्पल आज भी चलते हैं।


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प्रशांत मलिक

एक बैंकर और अकाउंटेंट के बेटे प्रशांत के परिवार में कोई भी सदस्य इंजीनियर नहीं था। हालांकि, उनका कहना है कि उन्होंने कक्षा 9 में कोडिंग को लेकर अपने जुनून को जान लिया था। BASIC में कोड राइटिंग के साथ शुरुआत करते हुए, प्रशांत कहते हैं कि वह कुछ ही सेकंड में एल्गोरिदम को क्रैक कर लेते थे। वह सिंपल पेजेस को प्रोग्राम करते थे और इसी तरह उन्हें अपने इस जुनून के बारे में पता चला।


जब वे आईआईटी दिल्ली पहुंचे, तो उन्होंने कंप्यूटर साइंस को चुनने में कोई देरी नहीं की। हालांकि उनके पास इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन को चुनने का विकल्प था, लेकिन प्रशांत जानते थे कि उन्हें कोडिंग करनी है।


प्रशांत कहते हैं,

“मुझे क्लास ज्यादा पसंद नहीं थी, लेकिन मुझे लैब में काम करना पसंद था। जिस सब्जेक्ट पर मैंने सबसे अधिक अंक हासिल किए थे, वह तब था जब मुझे कोड करना था और उसमें कोई थ्योरी नहीं थी। चीजों को हासिल करना और उनमें डूबे रहना व चीजों का निर्माण करना मुझे वास्तव में पसंद है।"

1995 में IIT दिल्ली से पास होने के बाद, उन्होंने भारत में काम किया। वे कहते हैं,

“एक कंपनी थी जो दूरसंचार नेटवर्क में थी। वे नेटवर्क का निर्माण कर रहे थे और उनके पास सिस्टम थे जो क्लाइंट सर्वर-बेस्ड आर्किटेक्चर था। मुझे इसमें काम करना पसंद था और बेंगलुरु में जॉब देख रहा था। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मेरी लगभग पूरी क्लास अमेरिका जा चुकी है। इसलिए लगभग तीन साल बाद, मैं भी Microsoft में काम करने के लिए अमेरिका चला गया।”

माइक्रोसॉफ्ट से लेकर फेसबुक तक

प्रशांत के लिए, माइक्रोसॉफ्ट के बाद फेसबुक में जाना एक बड़ा बदलाव था। माइक्रोसॉफ्ट में रहते हुए, प्रशांत को पहले से ही क्लाइंट आर्किटेक्चर और सिक्योरिटी सिस्टम में कई पेटेंट अवॉर्ड किए गए थे। कंपनी ने उन्हें एक निजी क्यूबिकल और रेडमंड, सिएटल के पहाड़ों का शानदार नजारा पेश कराता एक आलीशान घर भी दिया था।


हालाँकि चीजें सुचारू रूप से चल रही थीं, लेकिन फेसबुक की ओर से यह पेशकश अपने आप में काफी चुनौतीपूर्ण थी। लेकिन उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट की तुलना में 30 प्रतिशत कम सैलरी पर भी फेसबुक ज्वाइन कर लिया। तब यह एक भारतीय रेस्तरां के ऊपर एक मंजिल का ओपन ऑफिस था। उनके सर्कल में कई लोगों को लगा कि यह स्टार्टअप एक सनक है, और प्रशांत अपने दिमाग में Microsoft को छोड़ना नहीं चाहते थे।


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प्रशांत अपने शुरुआती दिनों में

शिफ्ट करने पर उन्हें क्या मिला, इस पर बोलते हुए, प्रशांत कहते हैं,

“फेसबुक पर मार्क जुकरबर्ग और कोर टीम से मिलने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि उनके पास जो सपना था वह काफी प्रभावी था। मार्क के साथ मुलाकात में जिस पहली चीज ने मुझे हिट किया वह यह थी कि वह काफी यंग था और यह उन युवाओं का यह झुंड था जो बड़े सपने देख रहे थे। वे फेसबुक के सर्वव्यापी होने और दुनिया में हर किसी के द्वारा इसके उपयोग किए जाने की बात कर रहे थे। पहले तो उन्हें सीरियस लेना मुश्किल था, लेकिन जब मैंने मार्क और अन्य लोगों से तार्किक रूप से बहस करना शुरू कर दिया, तो मुझे लगा कि ये लोग वास्तव में बड़े सपने देख रहे हैं, और इनके पास एक बड़ी तस्वीर है। मुझे बड़े सपने पसंद हैं, और इसी ने मुझे फेसबुक की ओर आकर्षित किया।”

स्टार्टअप के पास तब लगभग 100 मिलियन यूजर्स भी नहीं थे। हालांकि 2006 में एक स्टार्टअप से जुड़ना भी अपने आप में एक बड़ी बात थी। आईआईटी दिल्ली के प्रशांत के कई दोस्त शुरुआती दिनों में Google से जुड़ गए थे। और 2004 में, जब Google सार्वजनिक हुआ, तो उन्हें लगा कि उन्होंने गूगल में शामिल न होकर मौका गंवा दिया था। तब से वे "अगले सबसे हॉट स्टार्टअप" में प्रवेश करना चाहते थे।


एक बार जब उन्होंने फेसबुक ज्वाइन किया, तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका पहला काम सर्च सिस्टम का निर्माण करना था। यहां उन्हें उनकी ही डिवाइसेस के साथ छोड़ दिया गया। यहां कोड रिव्यू या चेकिंग जैसा कुछ नहीं था जैसा कि Microsoft में उनकी कोडिंग रिव्यू भी होती थी और चेक भी की जाती थी।


प्रशांत कहते हैं,

''मुझे दूसरों के कोड को भी रिव्यू करना होता था, और अचानक मैं नए सिरे से चीजों का निर्माण कर रहा था।"


बिग डेटा प्रॉब्लम

इसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि बहुत सारे प्रोजेक्ट थे जो डेटाबेस की कमी के कारण अटके हुए थे। और गूगल एकमात्र कंपनी थी, जिसका एक डेटाबेस था, जिसे बिगटेबल (BigTable) कहा जाता था, जो कि बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सकता था। उस समय तक, गूगल एकमात्र ऐसी कंपनी थी जो बिग डेटा से डील कर रही थी, लेकिन अब फेसबुक ने भी डेटा की मात्रा बढ़ाना शुरू कर दिया क्योंकि यह कंपनी भी तेजी से बढ़ रही थी। यह उस तरह का काम नहीं था जैसा कि प्रशांत Microsoft में करते थे। वह कहते हैं, सब कुछ योजनाबद्ध होता था और ग्रोथ के अलग-अलग फेज थे। लेकिन फेसबुक में कमाल की एनर्जी थी।


प्रशांत कहते हैं,

“2007 में मेरे शामिल होने के छह महीने के भीतर, हमने फेसबुक को दुनिया के लिए खोल दिया। ईमेल आईडी वाला कोई भी व्यक्ति अब फेसबुक से जुड़ सकता था। वे भी दिन थे जब हम हर दिन के अंत में 10 मिलियन नए यूजर्स देखते थे, और अगले दिन की शुरुआत 15 से 20 मिलियन यूजर्स के साथ करते थे। जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, लोग झुंड में फेसबुक से जुड़ रहे थे, सिस्टम ब्रेक हो रहे थे, और हमें हर छह घंटे में बार-बार बैचों का निर्माण करना पड़ता था।”

उस समय, केवल MySQL था, जो कि उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा था। प्रशांत कहते हैं, मार्क (जुकरबर्ग) इस बात का जिक्र करते रहे कि बिगटेबल जैसी प्रणाली की जरूरत है, और उन्होंने एक समान आर्कीटेक्चर का निर्माण शुरू कर दिया। जल्द ही, प्रशांत को अविनाश लक्ष्मण ने ज्वाइन किया। अविनाश ने अमेजॉन में डायनामो प्रोजेक्ट पर काम किया था। हालांकि डायनामो प्रोजेक्ट प्रोडक्शन लेवल पर स्केल नहीं हुआ था वो केवल थ्योरेटिकली ही थी।


प्रशांत याद करते हैं,

“जब हम दोनों एक साथ आए, तो कुछ जादुई हुआ। हमने सोचा कि क्यों न डायनमो की जगह बिगटेबल को टॉप पर लिया जाए? और इससे कैसंड्रा के निर्माण की शुरुआत हुई। हमने इसका नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में एक दैवज्ञ (oracle) के नाम पर रखा था। हमने सोचा कि यह ओरेकल से भी बड़ा हो जाएगा। और मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कहीं और हम इस तरह के प्रोजेक्ट्स का निर्माण कर सकते हैं क्योंकि कोई भी दो लोगों पर भरोसा नहीं करेगा कि वे इस बड़े निर्माण के लिए जाएं। लेकिन फेसबुक के पास वो डीएनए था - लोगों को सुपर चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट देने का।”

विफलता के लिए कोड सीखना

माइक्रोसॉफ्ट में उनके प्रशिक्षण ने कैसंड्रा के निर्माण के दौरान बहुत मदद की। वह याद करते हुए कहते हैं, “माइक्रोसॉफ्ट में कोई भी क्रिटिकल रिव्यू डेव कटलर के साथ होगा। जब डेव जैसा कोई व्यक्ति आपके साथ काम करता है, तो आपको एहसास होता है कि आप तो कुछ भी नहीं, और आपको बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।”


वह कहते हैं,

“मैं आत्म-आलोचनात्मक था और सोचा था कि इस तरह के स्टेटमेंट्स का उपयोग करना अच्छा नहीं है। लेकिन मैंने सीखा कि मुझे हर बार प्रोग्राम राइट करने से पहले त्रुटियों के बारे में सोचना चाहिए। अपने प्रोग्राम को सही मानने की तुलना में सभी विफलता के बारे में सोचना और भी महत्वपूर्ण है। यह मेरे दिमाग में घुस गया, और यह एक मजबूत संदेश था। एक प्रोग्राम के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह असफल होने के बजाय करेक्ट हो जाए। आपको सभी प्रकार की विफलताओं के बारे में सोचना चाहिए, विशेष रूप से सिस्टम प्रोग्रामिंग और कोर कोड डेवलपमेंट में। इससे मुझे सबसे जटिल प्रोग्राम राइट करने में मदद मिली। जब आप डिस्ट्रीब्यूटेड प्रोग्राम राइट कर रहे होते हैं, तो वहां कोई वास्तविक मेथोडोलॉजी नहीं होती है क्योंकि यह बहुत जटिल होता है। और इस तरह की सोच आपको बहुत मदद करती है। डिस्ट्रीब्यूटेड प्रोग्राम्स का सार यह है कि जब आप कोड करते हैं तो आप सोचते हैं कि क्या गलत हो सकता है।”

यह उनकी ट्रेनिंग थी जिसने उन्हें कैसंड्रा के निर्माण में सहायता प्रदान की। प्रशांत अपने ऑफिस में दिन बिताते थे, और रात में गलियों में अविनाश के साथ डिजाइन आइडियाज पर चर्चा करते थे। वे कहते हैं, “हम दीवारों पर कोड लिखते थे और वायरफ्रेम खींचते थे। आठ महीने से लेकर एक साल तक और कुछ मायने नहीं रखता था। यह एक प्रकार का मेडीटेशन था।” शुरुआत में, जब प्रशांत और अविनाश ने कैसंड्रा का निर्माण शुरू किया, तो वे इसे फेसबुक के इनबॉक्स सर्च के लिए बना रहे थे। यह एक बड़ी सफलता थी, और हर कोई खुश था कि कम बजट में वे कुछ ऐसा कर सकते हैं जो बड़े पैमाने पर हो सकता है। लेकिन लोगों को अभी भी संदेह था कि क्या ये बड़ी लोड झेल पाएगा! क्या यह डेटा के कई गीगाबाइट्स के पैमाने पर बढ़ सकता है। प्रशांत कहते हैं कि उन्हें भरोसा था कि यह काम करेगा।




प्रशांत कहते हैं,

"हमने हर संभव विफलता के बारे में सोचा था, हर खामी के लिए काम किया, कई डेटा केंद्रों, मशीनों और समूहों के बारे में सोचा। हमने उन चीजों के बारे में भी सोचा जो 13 साल पहले आम नहीं थीं, लेकिन फिर भी समस्या पैदा कर सकती थीं। हमने हर एक चीज के बारे में सोचा था, और इसने हमारी डिजाइन को सुंदर बनाने में अहम रोल निभाया।”

ओपन सोर्सिंग कैसंड्रा

कैसांड्रा 2008 में एक ओपन सोर्स्ड सिस्टम था, ऐसा करने वाला यह अपने आकार का पहला डेटाबेस सिस्टम था। प्रशांत कहते हैं, उनको कोई आभास नहीं था कि वह इतना लोकप्रिय हो जाएगा। दुनिया भर के डेवलपर्स ने जल्द ही कैसेंड्रा का उपयोग करना शुरू कर दिया क्योंकि सभी को बिग डेटा की समस्या का सामना करना शुरू हो गया था।


वे कहते हैं,

“आज, सिलिकॉन वैली में 70 से 80 प्रतिशत कंपनियां कैसेंड्रा का उपयोग करती हैं। नेटफ्लिक्स, ऐप्पल, वॉलमार्ट और इंस्टाग्राम कैसेंड्रा पर बने हैं।”

जल्द ही, VCs ने कैसंड्रा के आधार पर कंपनियों को खोलने के लिए प्रशांत से संपर्क करना शुरू कर दिया। लेकिन प्रशांत का कहना है कि वह फेसबुक के साथ खुश थे। कैसंड्रा के बाद, प्रशांत ने फेसबुक पर अगला बड़ा प्रोजेक्ट लिया - मैसेंजर प्लेटफॉर्म के पूरे बैकेंड सिस्टम का निर्माण। फेसबुक के पूरे ईमेल और मैसेज चार्ट को बैकएंड की जरूरत थी। यह फेसबुक की सबसे बड़ी टीमों में से एक थी। हालांकि टीम ने इसके सोर्स के बारे में खुलासा नहीं किया है लेकिन यह अभी भी सबसे बड़े डिस्ट्रीब्यूटेड सिस्टमों में से एक है और अरबों यूजर्स के लिए बढ़ा है।


प्रशांत कहते हैं,

“यह वह प्रणाली है जो आज भी उपयोग की जाती है, और हमने इसे तब बनाया था जब फेसबुक पर यूजर बेस 100 मिलियन था। आज, 2.2 बिलियन से अधिक फेसबुक यूजर्स हैं, और वे उसी सिस्टम का उपयोग करते हैं। यहां भी Microsoft में मेरी ट्रेनिंग और कैसंड्रा के निर्माण के दौरान जो मैंने सीखा उसने काम किया। एक सिस्टम को डिजाइन और आर्कीटेक्ट करते समय सबसे छोटी चीजों के बारे में सोचना महत्वपूर्ण होता है।"

वह कहते हैं कि यह सोचना भी महत्वपूर्ण है कि क्या दो नोड्स (Nodes) गिर जाने के बाद भी सिस्टम काम कर सकता है और क्या होगा जब वो नोड्स वापस आ जाएं। इसने उन्हें हिंटेड हैंडऑफ (Hinted Handoff ) जैसा कुछ बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सोचा कि क्यों न तीन नोड हों - ए, बी, और सी, और यदि सी नोड डाउन होती है, तो सी में जा रहा सभी डेटा, ए और बी द्वारा कैप्चर कर लिया जाएगा और जब सी वापस आती है तब A और B उस डाटा को C को हैंडओवर कर देंगी।

द लिमिरोड जर्नी

2012 में, प्रशांत ने महसूस किया कि यह उनकी यात्रा के अगले चरण में जाने का समय है। वह भारत वापस आना चाहते थे, और कुछ अपना करना चाहते थे। वे कहते हैं,

"यह ह्यूमन नेचर है कि जैसे ही आप कुछ अचीव करना शुरू करते हैं तो और ज्यादा की भूख आपके अंदर बढ़ने लगती है। और Google में मेरे कुछ दोस्तों ने अपनी खुद की कंपनियां शुरू की थीं।"

प्रशांत के पास एक बॉट बनाने का आइडिया था, जिसमें AWS की सभी कार्यक्षमताएं हों, और जो लोगों को उनके निजी डेटा केंद्रों में AWS जैसी कार्यक्षमताओं को बनाने में मदद करे। उन्होंने इसे एग्जीक्यूट करना शुरू कर दिया, और फेसबुक के बाद, प्रशांत ने बहुत सारे स्टार्टअप में मदद और निवेश करना शुरू कर दिया। लेकिन भारत वापस जाने का आइडिया अमेरिका में स्टार्टअप शुरू करने से ज्यादा मजबूत था। वह 2013 में भारत लौट आए, लेकिन अभी भी निश्चित नहीं थे कि उन्हें क्या करना है।


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Limeroad टीम और फिल्म अभिनेत्री नेहा धूपिया के साथ प्रशांत

प्रशांत कहते हैं,

“मैं एक डीप टेक्नोलॉजी वाला इंसान था, और भारत में ज्यादातर चीजें तब ईकॉमर्स और उपभोक्ता पर बेस्ड थीं। सौभाग्य से, जब मैं फेसबुक में था, तब मुझे सोशल नेटवर्क्स पर मार्क जुकरबर्ग ने कुछ पेटेंट दिए गए थे, और मैं उस पर लाभ उठाना चाहता था। निवेशकों से बात करने के बाद, मुझे लिमिरोड (Limeroad ) के बारे में पता चला। लिमिरोड एक सोशल ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है।”

वह 2013 में सीएमओ और सह-संस्थापक के रूप में लिमेरोड में शामिल हुए। जल्द ही, प्रशांत ने लिमिरोड के लिए टेक टीम और पूरी बैकेंड तकनीक का निर्माण किया।


प्रशांत कहते हैं,

“सिलिकॉन वैली स्टार्टअप्स का केंद्र है, और मैं सौभाग्यशाली था कि फेसबुक जैसे सबसे हॉट स्टार्टअप में मैं था। जब मैंने अपनी टीम को मैसेजिंग के लिए बनाया, तो मुझे वहां Google जैसी कंपनी के लोग मिल सकते थे। लेकिन जब मैं भारत आया, तो मुझे महसूस हुआ कि एक टीम बनाना इतना आसान नहीं था। लोग बेंगलुरु में रहना चाहते थे और गुरुग्राम नहीं आ रहे थे। शुरुआत में, हमारी बेंगलुरु में एक टीम थी, और मैं गुरुग्राम आने के लिए सभी को समझाने में सक्षम था। मैं भाग्यशाली था कि बहुत सारे लोगों को मना पाया। हमने लिमिरोड में एक बेहतरीन टेक टीम बनाई।”

2013 की शुरुआत में, उन्होंने लिमिरोड में वेयरहाउसिंग के लिए ऑटोमैटेड मैसेजिंग सिस्टम का निर्माण किया। इसे मशीन लर्निंग के जरिए नोटिफिकेशन और मैसेज भेजने के लिए ट्रेन किया था। कोई एक्सटर्नल लाइब्रेरी नहीं थी, उन्होंने और उनकी टीम ने इंटर्नली पर्सनलाइजेशन पर फुल कंट्रोल रखने के लिए इसका निर्माण किया था।

निवेशक यात्रा

प्रशांत ने कई कंपनियों में भी निवेश करना शुरू किया। आज, वह Zomato सहित कई स्टार्टअप्स को सलाह देते हैं, और UrbanClap, और कुछ अन्य स्टार्टअप में उन्होंने निवेश किया है। प्रशांत शैडोफैक्स के लिए चेक देने वाले पहले व्यक्ति हैं। अपने फेसबुक के कार्यकाल के बाद, प्रशांत कहते हैं कि उन्हें फिर से गहरी तकनीक में आने की आवश्यकता महसूस हुई।


वे कहते हैं,

“मैंने सोचा कि क्यों न कंपनियों में निवेश किया जाए और उन्हें सलाह दी जाए। मैंने लिमिरोड से एक ब्रेक लिया, और यह वह है जो मैं अभी पिछले एक साल से कर रहा हूं। मैं सिंगापुर और इजरायल की यात्रा करता हूं जहां मुझे गहरी तकनीक वाली कंपनियां मिल सकती हैं। मैंने सात इजरायली कंपनियों में निवेश किया है और कुछ अन्य को एडवाइस दे रहा हूं।"


प्रशांत कहते हैं,

"यह मुझे गहरी तकनीक और पैमाने के लिए मेरी लालसा को पूरा करने में भी मदद करता है, और मुझे अलग-अलग विचारों के साथ खेलने की स्वतंत्रता भी देता है।"


तकनीकी विशेषज्ञ को हायर करना और एडवाइस देना

आज, भारत में डीप टेक स्टार्टअप बढ़ रहे हैं। प्रशांत कहते हैं कि डीप टेक और उपभोक्ता कंपनियों के बीच एक बड़ा अंतर है। वह कहते हैं कि उपभोक्ता कंपनियां उन उत्पादों के निर्माण के बारे में हैं जो उपभोक्ता के साथ जुड़े हो सकते हैं, और डीप टेक कंपनियों के लिए, उस क्षेत्र में अनुभव हासिल करना और फिर स्टार्टअप शुरू करना एक अच्छा आइडिया है।


प्रशांत बताते हैं,

"अगर मैं माइक्रोसॉफ्ट में ट्रेनिंग नहीं लेता तो मैं कैसंड्रा जैसी चीज का निर्माण नहीं कर सकता था। डीप टेक के लिए क्षेत्र में अनुभव मायने रखता है। टेक स्टार्टअप के संस्थापकों को मेरी सलाह है कि वे- एरिया में अनुभव हासिल करें और फिर समस्या पर अटैक करें।"

प्रशांत का कहना है कि लोगों को हायर करने के लिए वे लोगों की योग्यता से ज्यादा उनके जुनून को देखते हैं। वे कहते हैं,

“मैं हमेशा से एक कर्ता रहा हूँ, और मैं वास्तव में ऐसे लोगों का सम्मान करता हूँ जिन्होंने अच्छे सिस्टम बनाए हैं और उनके पास आर्कीटेक्टेड स्टफ हैं।"

सभी नए तकनीकी विशेषज्ञों को सलाह देते हुए, प्रशांत कहते हैं:

“आज हर कोई जो स्नातक कर रहा है वह एक स्टार्टअप का निर्माण करना चाहता है। हालांकि यह पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सकारात्मक है, लेकिन इसमें कूदने से पहले, एक स्टार्टअप को अच्छे से जान लें। एक स्टार्टअप के लिए काम करें, कल्चर को महसूस करें और डीएनए में घुसें, और फिर उस डीएनए को विकसित करें। स्टार्टअप्स को बिल्ड करना कठिन होता है, कई उतार-चढ़ाव आते हैं, और कई बार ऐसा समय आता है जब आप इसे पूरा करना चाहते हैं। अगर आपने एक स्टार्टअप के लिए काम किया है और उसका हिस्सा रहे हैं, तो आप रास्ता निकाल लेंगे और चीजों को संभालने के लिए बेहतर तरीके से काम करेंगे।”