प्लास्टिक कचरे को हाइड्रोपोनिक प्लांट होल्डर में बदल रहे हैं ये छात्र, प्रदूषण को घटाने के लिए उठाया अनूठा कदम
लगातार बढ़ रहे प्लास्टिक कचरे के निदान के लिए अब कुछ छात्रों ने एक अनूठा तरीका खोज निकाला है।
"साल 2019 में सामने आई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज़ करीब 4,059 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जबकि एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर हर मिनट 10 लाख से अधिक प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं।"
प्लास्टिक कचरा हमारे पर्यावरण को लगातार बुरी तरह प्रभावित कर रहा है और तमाम सरकारी-गैर सरकारी कोशिशों के बावजूद प्लास्टिक कचरे पर अभी भी पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकी है। साल 2019 में सामने आई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज़ करीब 4,059 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जबकि एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर हर मिनट 10 लाख से अधिक प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं।
लगातार बढ़ रहे प्लास्टिक कचरे के निदान के लिए अब कुछ छात्रों ने एक अनूठा तरीका खोज निकाला है। मुंबई के यूनिवर्सल बिजनेस स्कूल में मैनेजमेंट के 10 छात्रों ने ‘प्रोजेक्ट रूप’ पर काम करते हुए प्लास्टिक बोतलों को हाइड्रोपोनिक खेती के लिए तैयार करने का काम किया है।
छात्रों द्वारा तैयार किए गए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे को कम करने के साथ ही खेती के लिए मिट्टी के उपयोग में भी कमी लाना भी है। मालूम हो कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के जरिये किसान अपनी फसलों को मिट्टी के बजाय पानी में उगाते हैं, जोकि पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
बनाया प्रोटोटाइप
ये सभी छात्र सामाजिक उद्यम ENACTUS के सदय हैं, जिसकी दुनिया भर के शैक्षिक संस्थानों में इकाइयां हैं। छात्रों ने इसके लिए एक प्रोटोटाइप विकसित किया है, जिसे एक लीटर वाली पानी की बोतल को आधा काटते हुए उसमें एक पाइप को फिट किया गया है। ये पाइप ही बोतल में लगातार पोषक तत्वों को पहुंचाने का काम करता है और इसी के साथ इसके जरिये अन्य बोतलों को भी जोड़ा जा सकता है।
मीडिया से बात करते हुए छात्रों ने बताया है कि हाइड्रोपोनिक खेती इस समय दुनिया भर में प्रचलित हो रही है, जबकि भारत में इसे अभी उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। आमतौर पर इसके लिए पीवीसी पाइप आदि का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यहाँ छात्रों ने इस उद्देशय को पूरा करने के लिए प्लास्टिक बोतलों का ही सहारा लेने का फैसला किया है।
ऐसे जुटाया जरूरी फंड
अपने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए छात्रों को फंड की आवश्यकता थी, तो इसके लिए छात्रों ने ‘रिडिजाइन टू रीयूज’ नाम के एक इवेंट का आयोजन किया, जहां सभी प्रतिभागियों से पंजीकरण शुल्क के रूप में 50 रुपये लिए गए और फिर इवेंट के विजेता को नकद पुरस्कार दिये जाने के बाद बची हुई राशि को प्रोजेक्ट के संचालन के लिए अलग कर लिया गया।
अपने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए छात्रों को तमाम प्लसस्टिक बोतलों की आवश्यकता थी, जो एक लीटर से अधिक बढ़ी हों। ऐसे में इन छात्रों ने अपने घरों और सोसाइटी से ही इन बोतलों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। इसी उद्देश्य के साथ इस खास ड्राइव का संचालन मुंबई के कुछ सार्वजनिक स्थानों पर भी किया गया और इस तरह छात्रों ने कुछ ही दिनों में लगभग 30 किलो प्लास्टिक बोतलें इकट्ठी कर लीं।
ग्रामीण महिलाओं को मिलेंगे मौके
छात्रों ने अपने इस प्रोजेक्ट के लिए ‘लाइट ऑफ लाइफ’ ट्रस्ट के साथ हाथ मिलाया है, जिसके जरिये इस उत्पाद के निर्माण की प्रक्रिया को ग्रामीण महिलाओं को सिखाया जा सकेगा और उनके लिए आय के नए श्रोत खोलने का काम किया जाएगा।
टीम ने अपने इस उत्पाद को बाज़ार में बेंचने का भी मन बनाया है, इसी के साथ टीम अब अन्य इको-फ्रेंडली उत्पादों के निर्माण की दिशा में खुद को आगे ले जाने की तैयारी कर रही है।
Edited by Ranjana Tripathi