बॉडीबिल्डिंग का चमकता सितारा बन रही है ये महिला दिहाड़ी मजदूर, हाल ही में जीता था गोल्ड मेडल
इसी साल 11 जनवरी को संगीता ने इंडियन फिटनेस फेडेरेशन द्वारा आयोजित की गई दक्षिण भारतीय बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। पुरुषों के वर्चस्व वाले इस खेल में संगीता दक्षिण भारत से इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली नौ महिला प्रतियोगियों में से एक थीं।
मन में लगन और अथक परिश्रम के बल पर किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है और एस संगीता इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पेशे से दिहाड़ी मजदूर संगीता आज बॉडीबिल्डिंग के क्षेत्र में तेजी से अपनी अलग पहचान स्थापित कर रही हैं। तिरुपति से आने वाली 35 वर्षीय संगीता दो बच्चों की माँ हैं और करीब पाँच साल पहले उन्होंने अपने पति को खो दिया था।
संगीता का दिन एक फैक्ट्री में भारी-भरकम माल उठाते हुए गुज़रता है और इसके बदले उन्हें दिहाड़ी के रूप में 200 रुपये मिलते हैं, लेकिन सगीता इन सब के बीच अपने सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।
माँ और बॉडीबिल्डर
पति के देहांत के बाद संगीता के सिर पर उनके दोनों बच्चों के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी आ गई और इसके चलते उन्होंने एक टेनरी में काम करना शुरू कर दिया। हालांकि अपने इस संघर्ष के बीच संगीता को जो बात सबसे अधिक खुश करती है वो यह है कि वे अब अपने क्षेत्र की पहली महिला बॉडीबिल्डिंग चैंपियन बन चुकी हैं।
इसी साल 11 जनवरी को संगीता ने इंडियन फिटनेस फेडेरेशन द्वारा आयोजित की गई दक्षिण भारतीय बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। पुरुषों के वर्चस्व वाले इस खेल में संगीता दक्षिण भारत से इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली नौ महिला प्रतियोगियों में से एक थीं।
यूट्यूब से सीखा वर्कआउट
पति की मौत के बाद अपने घर को संभालते हुए संगीता के मन में बॉडीबिल्डिंग को लेकर एक जुनून भी था। उन्होंने सबसे पहले यूट्यूब पर जाकर वीडियो देखते हुए वर्कआउट सीखना शुरू कर दिया। हालांकि इसके बाद जब उन्हें एक प्रशिक्षक की जरूरत महसूस हुई तब उन्होंने एक जिम भी जॉइन किया।
बॉडीबिल्डिंग को ध्यान में रखते हुए संगीता के लिए जरूरी पौष्टिक आहार का इंतजाम कर पाना मुश्किल था, क्योंकि उसके लिए उन्हें हर महीने करीब 2 हज़ार रुपयों की जरूरत थी, हालांकि संगीता ने महज 500 रुपये खर्च कर पौष्टिक आहार के जरिये जरूरी कैलोरी पाना शुरू कर दिया।
संगीता के अनुसार, यह रास्ता आसान नहीं है, इसमें सब कुछ त्यागना पड़ता है और अब उनके भीतर सफल होने की भावना है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने बताया है कि उनके पास ट्रेनिंग के लिए डंबल आदि उपकरण नहीं होते थे तब उन्होंने ईंटों और घर पर मौजूद लकड़ियों से काम चलाया है।
झेलने पड़े लोगों के ताने
संगीता के अनुसार अभी भी लोग उनपर टिप्पणी करते हुए उन्हें शर्ट और पैंट पहनने के लिए ताने देते हैं, हालांकि संगीता को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि उनका मानना है कि वे कुछ भी गलत या अनैतिक नहीं कर रही हैं। संगीता के अनुसार, जो लोग उन्हें कभी ताने दिया करते थे उनमें से अधिकतर अब उनके द्वारा स्वर्ण पदक जीतने पर उन्हें बधाई दे रहे हैं।
संगीता अब बड़े स्तर पर प्रदर्शन कर अपने राज्य का नाम रोशन करना चाहती हैं। इसी के साथ उन्हें उम्मीद है कि निकट भविष्य में बड़ी संख्या में महिलाएं भी इस क्षेत्र में आगे आएंगी और बेहतर प्रदर्शन करेंगी।
Edited by रविकांत पारीक