दुनिया के महान लेखकों की कतार में शामिल हुईं तमिलनाडु की ट्रांसविमन रेवती
तमिलनाडु के नमक्कल जिले के दुरईसामी में जनमीं ए. रेवती को अपना नाम कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मुख्यद्वार पर विश्व के महान लेखकों के साथ लिखे जाने की सूचना अपनी दोस्त से मिली। बेंगलुरु की संगम लाइब्रेरी की तमाम किताबें पढ़ चुकीं रेवती की ट्रांस वुमन पर लिखी पुस्तक है - 'उनरवम उरुवमम'।
अपनी बेमिसाल काबिलियत से भारतीय ट्रांसविमन अब विश्व पटल पर अपना शानदार मुकाम बनाने लगी हैं, उन्ही में एक नया नाम शामिल हुआ है, ए. रेवती। अपनी आत्मकथा ‘द ट्रुथ अबाउट मी : अ हिजड़ा लाइफ स्टोरी’ लिखकर तमिलनाडु की ट्रांसवुमन लेखिका ए. रेवती दुनिया के महान लेखकों की कतार में पहुंच गई हैं। हमेशा से ये कहा जाता रहा है कि तमिल साहित्य की दुनिया में मर्दों को औरतों से ज्यादा महत्व दिया जाता रहा है।
तमिल साहित्य में जो पद-सम्मान और प्रतिष्ठा पुरुष लेखकों को मिली है, महिला लेखकों को कभी भी नहीं मिली लेकिन रेवती ने इस क्षेत्र में अपना अलग मुकाम बनाते हुए वह प्रतिष्ठा हासिल की है, जो इसके पहले तमिल साहित्य में किसी को प्राप्त नहीं हो सकी है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में उनका नाम माया एंगलो, टोनी मॉरिसन, मारमॉन सिल्को और शांजे जैसे मशहूर लेखकों के नाम के साथ लिखा गया है।
स्वयं रेवती को पहली बार यह सूचना अपनी कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रही एक दोस्त से मिली। कोलंबिया की बटलर लाइब्रेरी के प्रवेश द्वार पर आठ नाम, जिसमें अरस्तू, प्लेटो, होमर, डेमोस्थेनेस और सिसेरो जैसे महान लेखक शामिल हैं, लिखा हुआ है, अब उसमें ए. रेवती का भी नाम शामिल हो गया है। इसमें महिला लेखकों के नाम शामिल न होने को लेकर विवाद उठ चुका है। साल 1989 में कुछ अज्ञात छात्रों ने महिला लेखकों के नाम पुरुष लेखकों के नाम के ऊपर लिख दिए थे। हालांकि इन नामों को कुछ ही दिनों में मिटा दिया गया था। 30 साल बाद, महिलाओं के विरोध को देखते हुए एक बैनर, जिस पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महिला लेखकों के नाम लिखे हुए हैं, उसे यहां प्रदर्शित किया गया है। खास बात यह है कि इन महिलाओ में ए. रेवती का नाम भी शामिल है।
तमिलनाडु के नमक्कल जिले के दुरईसामी में जनमीं रेवती जब पांचवीं कक्षा में थीं, तब उन्हें खुद में कुछ लैंगिक बदलाव महसूस हुए। इसके बाद वर्ष 1999 में वे बेंगलुरु में संगम ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ गईं। रेवती ने अपनी पहली किताब 'उनरवम उरुवमम' साल 2004 में लिखी थी। यह किसी ट्रांसवुमन पर किसी ट्रांसवुमन द्वारा लिखी गई पहली किताब है। रेवती कहती हैं कि अगर यह पुस्तक सीधे तमिल भाषा में प्रकाशित होती तो एक हद तक संभव था, बहुत से लोग असहज हो जाते, इसलिए उन्होंने इसे पहले अंग्रेजी में ही प्रकाशित किया। विडंबना तो यह है कि उन्हे खुद अंग्रेजी नहीं आती है। वह चाहती हैं कि अब वह खुद कोलंबिया जाकर वहां अपनी आंखों से अपना दर्ज नाम देखें।
रेवती बताती हैं कि उन्हे अपने भीतर खुद को खोजने में एक लंबा संघर्ष करना पड़ा है। उनको अपने माता-पिता और भाई से भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इसीलि उन्होंने अपना घर-परिवार छोड़ दिया। उसके बाद वह कभी दिल्ली तो कभी मुंबई रहने लगीं। वह हर उस तक़लीफ़ से गुज़रीं, जिससे ज्यादातर ट्रांसजेंडर का सामना होता है।
रेवती की जिंदगी को तो बेंगलुरु की संगम स्थित लाइब्रेरी ने तराशा है। उस लाइब्रेरी ने उनको पढ़ने-लिखने से जुड़ा एक अद्भुत अनुभव दिया। वह इस लाइब्रेरी की ज्यादातर किताबें पढ़ चुकी हैं मगर उन्हे वहां ऐसी कोई किताब नहीं मिली, जिसमें भारतीय ट्रांसजेंडर के दर्द को उकेरा गया हो। इसी प्रश्न ने सबसे पहले उनको लिखने के लिए विचलित और प्रेरित किया। उसी दौरान लेखिका बामा से उन्हे प्रोत्साहन मिला। उसके बाद उन्होंने 'उनरवम उरुवमम' का सृजन किया।
अंग्रेज़ी में किताब प्रकाशित होने के बाद बहुत से लोगों ने रेवती को प्रोत्साहित किया कि वे उसको तमिल में भी प्रकाशित कराएं। इसके बाद उनकी आत्मकथा तमिल भाषा में 'वेल्लाई मोझी' नाम से आई है। वह कहती हैं कि पेरुमल मुरुगन ने उनके लेखन को परिष्कृत करने में मदद की है।