दिल्ली में मेट्रो पुल के नीचे 49 वर्षीय इस शख्स के स्कूल में हर दिन पढ़ते हैं 300 वंचित बच्चे
भारत में बहुत सारे बच्चों के पास अभी भी शिक्षा तक पहुंच नहीं है। बच्चों को स्कूल में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के कई प्रयासों के बावजूद, ऐसे कई कारक होते हैं जिनके चलते उन बच्चों को शिक्षा को आगे बढ़ाने में मुश्किल होती है।
हालांकि इसके बावजूद, प्रयास जारी हैं। राजेश कुमार शर्मा बच्चों की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि बच्चों को वह बुनियादी शिक्षा मिले जो उन्हें उनके जीवन को आगे बढ़ने के लिए चाहिए। पिछले 13 वर्षों से, राजेश दिल्ली में यमुना नदी के तट के पास मेट्रो पुल के नीचे 300 वंचित बच्चों को पढ़ा रहे हैं। 'द फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ नाम का ये स्कूल दो शिफ्ट में चलता है, पहली शिफ्ट होती है सुबह 9 से 11 बजे जिसमें 120 लड़के पढ़ते हैं और दूसरी शिफ्ट होती है दोपहर 2 से 4: 30 बजे जिसमें 180 लड़कियां पढ़ती हैं। स्कूल में सात शिक्षक भी हैं जो अपने खाली समय में चार से चौदह वर्ष की आयु के इन छात्रों को पढ़ाने के लिए आते हैं।
अन्य स्कूलों के विपरीत, इस ओपन स्कूल में पुल के नीचे कोई स्ट्रक्चर नहीं है, इनके पास केवल पांच ब्लैकबोर्ड हैं। ये ब्लैकबोर्ड दीवार पर पेंटिंग से बने हैं। शिक्षकों की सहायता के लिए, स्कूल के पास चाक, डस्टर, पेन और पेंसिल जैसी बुनियादी स्टेशनरी है। छात्र अपनी नोटबुक लाते हैं और उस जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं। जमीन को कार्पेट से ढका हुआ है। स्कूल में लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा है, इसके अलावा छात्रों को बुनियादी स्वच्छता और सफाई के बारे में भी पढ़ाया जाता है।
लोगों से मिले समर्थन के बारे में न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए राजेश ने कहा,
“शुरुआत में, कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने मुझसे संपर्क किया और उन्होंने मेकशिफ्ट स्कूल के साथ जुड़ने की कोशिश की, लेकिन मैंने उन्हें कभी भी अलॉव नहीं किया क्योंकि वे सभी संदिग्ध दिखते थे। उनमें से कोई भी बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य के बारे में गंभीर नहीं था। वे कुछ दिखाकर कुछ और का दावा करते और पैसा कमाने में रुचि रखते थे। मैंने उनके कामकाज के तरीके को मंजूरी नहीं दी, जिसमें कई खामियां थीं और विसंगतियां थीं।”
अधिकांश छात्र कचरा बीनने वाले, रिक्शा चालक, और भिखारियों के बच्चे हैं जो अपने बच्चों के लिए बुनियादी शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं।
इंडिया टुडे के अनुसार, कुछ दुकानदार पीने का पानी भी दान करते हैं, जो गर्मी के मौसम में सबसे अधिक जरूरी होता है। स्कूल शुरू करने का मकसद एक मुद्दे को संबोधित करना था, जिसका राजेश ने खुद अपने युवा दिनों के दौरान सामना किया। अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण, वह अपनी बीएससी की डिग्री पूरी नहीं कर सके। इसलिए वे जानते हैं कि बच्चों के लिए शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है।
पांच सदस्यीय राजेश के परिवार में वे इकलौते कमाने वाले हैं। अपने परिवार को पालने के लिए वे उसी इलाके में एक किराने की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। अब उनके पास लक्ष्मी चंद्र, श्याम महतो, रेखा, सुनीता, मनीषा, चेतन शर्मा और सर्वेश जैसे शिक्षक हैं, जो उन्हें स्कूल चलाने में मदद करते हैं।
जब हिंदुस्तान टाइम्स ने उनसे स्कूल में लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में पूछा, तो राजेश ने कहा,
“कुछ लोग कभी-कभार स्कूल आते हैं और बिस्किट के पैकेट, फल, पानी की बोतलें और डिब्बाबंद भोजन वितरित करते हैं। कुछ युवा बच्चों के साथ अपना जन्मदिन मनाते हैं, केक काटते हैं, और पुल के नीचे बैठकर भोजन करते हैं। इस तरह के अवसरों से बच्चों को लगता है कि वे भी समाज का हिस्सा हैं, चाहे वे किसी भी स्थान पर हों या वे किस पृष्ठभूमि के हैं।”
राजेश अपने छात्रों पर नजर रखने के लिए एक अटेंडेंस रिकॉर्ड भी रखते हैं, और अगर कोई लंबे समय तक स्कूल नहीं आता है, तो वह इसका कारण जानने के लिए उस बच्चे के माता-पिता से संपर्क करते हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल की एक छात्रा छह वर्षीय सुनीता ने कहा,
“मैं अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल करना चाहती हूं और इसीलिए मैं हर दोपहर यहां आती हूं। कभी-कभी खराब मौसम, तेज बारिश या गरज के कारण स्कूल बंद हो जाता है, लेकिन पढ़ाई के प्रति मेरा जुनून कभी कमजोर नहीं होता।"