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यूएन सर्वे: देश में गरीबों की संख्या 64 करोड़ से घटकर 37 करोड़ पहुंची

"पिछले एक दशक में भारत में गरीबों की संख्या 64 करोड़ से घटकर 37 करोड़ हो गई है, आर्थिक असमानता के नज़रिए से संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा 2019 के एक सर्वे  (वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक) में ऐसा दावा किया गया है।"



Poor people

मुफलिसी में भी मुस्कुराते चेहरे (फोटो: Shutterstock)


आबादी में आर्थिक असमानता की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा 2019 के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के मुताबिक, इस समय पूरी दुनिया में कुल 1.3 अरब गरीबों में से भारत में गरीबों की संख्या 64 करोड़ से घटकर अब 37 करोड़ रह गई है। विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के तहत दुनिया के 101 देशों पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र के इस ताज़ा अध्ययन में बताया गया है कि आय, स्वास्थ्य, काम की गुणवत्ता, संपत्ति, शिक्षा, शौचालय, पोषण, हिंसा आदि मापदंडों पर भारत में पिछले दस वर्षों के दौरान पिछड़े राज्य झारखंड में गरीबी 74.9 प्रतिशत से घटकर 46.5 प्रतिशत रह गई है।


आय की दृष्टि से इस रिपोर्ट में पेरू को उच्च मध्यमवर्गीय, बांग्लादेश, कंबोडिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, वियतनाम को निम्न मध्यमवर्गीय और कांगो, इथोपिया, हैती को निम्न आय वाला देश माना गया है। इसके साथ ही, सिक्के के दूसरे पहलू का सच ये भी है कि भारत में जनसंख्या का स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है। सन् 2027 के तक चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन सकता है। भारत की जनसंख्या में 2050 तक 27.3 करोड़ की वृद्धि हो सकती है।


पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) द्वारा तैयार इस वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2019 में भारत में पोषण, स्वच्छता, बाल मृत्यु दर, पेयजल, शिक्षा, बिजली, आवास, ईंधन, संपत्ति आदि के पैमाने पर देश के अन्य पिछड़े राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी गरीबी कम होने का दावा किया गया है।




संयुक्त राष्ट्र की इस ताज़ा दस वर्षीय स्टडी में बताया गया है कि भारत में कुपोषण 44.3 प्रतिशत से घटकर 21.2 प्रतिशत, शिशु मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 2.2 प्रतिशत, खाना पकाने के लिए ईंधन से वंचित लोगों की संख्या 53 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत, स्वच्छता से वंचितों की संख्या 50 प्रतिशत से घटकर 24 प्रतिशत, पेयजल से वंचित लोगों की संख्या 16 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत, आवासविहीनों की संख्या 45 से घटकर 23.6 प्रतिशत और संपत्तिविहीन लोगों की संख्या 37.6 प्रतिशत से घटकर 9.5 प्रतिशत रह गई है।


संयुक्त राष्ट्र की यह स्टडी आय की दृष्टि से उच्च आय वाले 02 देशों, मध्यम आय वाले 68 देशों और निम्न आय वाले 31 देशों पर फोकस रही है, जिनमें कुल 1.3 अरब लोग गरीब पाए गए हैं। सबसे ज्यादा करीब 84.5 प्रतिशत गरीब सब-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में रह रहे हैं। इनमें अठारह साल से कम उम्र के करीब 66 करोड़ युवा गरीबी में जी रहे हैं। करीब दो अरब की आबादी वाले दुनिया के जिन दस देशों में बीते वर्षों में गरीबी हटाने की कोशिशें हुई हैं, उनमें निम्न मध्यमवर्गीय आय वाला हमारा देश भारत भी शुमार है।


दुनिया में दस साल से कम उम्र के कुल बच्चों की संख्या 42 करोड़ है, जिनमें 85 प्रतिशत बच्चे दक्षिण एशिया और सब-सहारा अफ्रीका परिक्षेत्रों के हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, गरीबी तो सभी विकासशील देशों में है, लेकिन जहां असमानता अधिक है, वहां सबसे ज्यादा लोग गरीबी की चपेट में हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन देशों में तेजी से गरीबी घट रही है, वे हैं - भारत, कंबोडिया और बांग्लादेश। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की उस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन्स नेटवर्क वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2019 पर सबसे बड़ा सवाल, उसकी 'खुशहाली' की परिभाषा पर उठाया जा चुका है। कहा गया है कि उसमें स्पष्टतः मनोवैज्ञानिक लक्षणों की उपेक्षा की गई है। सच तो ये है कि खुशहाल देशों में से किसी की भी आबादी एक करोड़ से अधिक नहीं है।