वास्तुशास्त्र: हर दिशा में अलग होता है बेडरूम का प्रभाव, यहां जानिए बेडरूम का वास्तु
घर में बेडरूम का अहम स्थान है, हम दिन के करीब आठ घंटे यानी एक तिहाई समय बेडरूम में गुजारते हैं। जबकि महिलाएं तो इससे भी ज्यादा समय बेडरूम में गुजारती हैं क्यूंकि कई काम वे बेडरूम में बैठ कर करती हैं। गृह-स्वामी के बेडरूम के अलावा बच्चों का बेडरूम और वृद्ध माता-पिता का बेडरूम भी महत्वपूर्ण है। आइए इस लेख में इन सभी बेडरूम के वास्तु के बारे में जानते हैं।
हर दिशा में बेडरूम के प्रभाव को जानने से पहले कुछ सामान्य वास्तु नियमों को समझते हैं। एक आदर्श बेडरूम के कुछ सरल नियम हैं, जब आप सोते हैं तो आपका सिर उत्तर दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। ऐसी कोशिश करें की पश्चिम की ओर भी न रहे। हाँ अगर और कोई विकल्प नहीं है तो पश्चिम की ओर कर सकते हैं।
सबसे उपयुक्त है दक्षिण या पूर्व की और सिर करना। बेड के पीछे ठोस दीवार होनी चाहिए और खिड़की नहीं होनी चाहिए। बेड के किसी भी हिस्से का प्रतिबिम्ब किसी शीशे पर नहीं पड़ना चाहिए। पलंग के ऊपर छत की कोई बीम भी नहीं होनी चाहिए और पलंग में कोई बॉक्स नहीं होना चाहिए न ही पलंग के नीचे जूते-चप्पल रखना चाहिए।
शयन कक्ष का उपयोग हम निद्रा और स्वउपचार के लिए करते हैं। अच्छी गहरी निद्रा और निद्रा के समय होने वाली हीलिंग ऊपर दिए हुए मूल वास्तु नियमों का पालन करने से मिलती है।
वास्तुशास्त्र में अलग-अलग दिशाओं में शयनकक्ष के प्रभाव के बारे में वर्णन है। सबसे पहले आप घर के मध्य में खड़े होकर मोबाइल के कंपास से दिशाओं का निर्धारण कर लें। ख़ास तौर से उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशाएं चिन्हित कर लें।
उत्तर पूर्व का बेडरूम, पंद्रह वर्ष से छोटे बेटे के लिए बताया गया है। इस दिशा के शयनकक्ष में विवाहित जोड़े को नहीं सोना चाहिए। यहाँ अगर विवाहित जोड़ा सोता है तो तलाक या जुदाई के योग बनते हैं और नौकरी जाने का खतरा भी बढ़ जाता है। यहाँ सोने से जीवन में निराशा की संभावना बढ़ जाती है। बेटे के अतिरिक्त यहाँ बुजुर्गों के सोने का स्थान भी बनाया जा सकता है।
दक्षिण पूर्व जिसे वास्तु में अग्नि-कोण कहते हैं, यहाँ घर की बेटी का शयन कक्ष बनाया जा सकता है। विवाहित दम्पति, जो प्रजनन की इच्छा रखते हैं, अग्नि-कोण के कमरे में अपना शयन कक्ष न बनाएं।
दक्षिण-पश्चिम का कमरा घर के स्वामी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। वास्तु अनुसार दक्षिण-पश्चिम, पृथ्वी का स्थान है और गृह-स्वामी जब इस कमरे में सोता है तो स्वतः उसके जीवन में स्थिरता आने लगती है। इस कोने में पॉवर, प्लानिंग, दूरदर्शिता और समस्याओं का सामना करने वाली शक्ति की उर्जा है।
उत्तर-पश्चिम का कमरा या तो अतिथिकक्ष के रूप में उपयोग करें या फिर घर की बेटी का कमरा बनाएं। इसके अतिरिक्त पूर्व या दक्षिण दिशा का शयनकक्ष सभी के लिए उपयुक्त है। अगर गृहस्वामी व्यापारी है तो वो पश्चिम दिशा के शयनकक्ष का भी चयन कर सकता है।
शयन कक्ष का द्वार ऐसा हो कि पलंग पर लेटे हुए व्यक्ति को दरवाजा सामने दिखे। यह गहरी-निद्रा के लिए सहायक है।
कभी भी बेडरूम में पूजा का स्थान नहीं रखें। घर में पूजागृह न होना बेहतर है पर बेडरूम में कभी भी नहीं होना चाहिए।
शयनकक्ष में लैवेंडर जैसे अरोमा आयल को डिफ्यूज करना जिससे उसकी हल्की-हल्की सुगंध कमरे में व्याप्त रहे अच्छी निद्रा और विश्राम में सहायक होती है।
आचार्य मनोज श्रीवास्तव ऐसे वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी हैं जिनको बीस साल से ज्यादा का कॉर्पोरेट लीडरशिप का अनुभव है। वे पूर्व में एयरटेल, रिलायंस और एमटीएस जैसे बड़े कॉर्पोरेट हाउस में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। आजकल वे पूर्ण रूप से एक वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
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