तेलंगाना के ऐतिहासिक कालेश्वरम प्रोजेक्ट से ये तीन सबक सीख सकता है भारत
तेलंगाना के सिद्दीपेट जिला में एक गांव पड़ता है बयाराम। यहां के एक किसान आनंद रेड्डी के पास लगभग चार एकड़ जमीन है लेकिन प्यासी है। उनकी इस जमीन में बारह बोरहोल (borehole) हैं। जमीन को पानी देने के लिए परेशानी का सामना कर रहे आनंद को बारहवें बोरहोल में अंततः एक आशा की किरण दिखी। 1,000 फीट से अधिक नीचे इस बोरहोल में पानी के संकेत दिखाई दिए। लेकिन, पानी की खोज पर उनका 18 लाख रुपये का खर्च करना उनके लिए एक जोखिम भरा काम है क्योंकि उन्होंने सभी से ऋण ले रखा था, जिसमें साहूकार भी शामिल थे। कोई जरूरी नहीं है कि उनका कृषि उत्पादन उन्हें इन ऋणों को चुकाने के लिए पर्याप्त धन अर्जित करा पाए।
वह दिन दूर नहीं जब कर्ज चुकाने के लिए आनंद को अपनी जमीन का एक हिस्सा बेचना पड़े। आनंद ही नहीं बल्कि यह तेलंगाना राज्य में एक बहुत ही आम-सी कहानी है। फिलहाल तेलंगाना अपने ऐतिहासिक 'कालेश्वरम प्रोजेक्ट’(द प्रोजेक्ट) के लिए चर्चा में है। यह दुनिया की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई परियोजना है। इस परियोजना के कवरेज क्षेत्र में 100 गाँवों के छोटे किसानों के साथ हमारी बातचीत ने मुझे किसानों की आकांक्षाओं और भावनाओं को करीब से देखने का मौका दिया।
क्या सीख सकता है भारत इस परियोजना से?
सबक नंबर 1: शहरों की प्यास बुझाई जा सकती है
भारत में तेजी से पानी खत्म हो रहा है। थिंक टैंक नीती आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 40 प्रतिशत आबादी - जिसमें 21 शहर शामिल हैं - 2030 तक पीने के पानी से महरूम हो जाएगी। उम्मीद है कि यह परियोजना हैदराबाद की प्यास को बुझाएगी। इस प्रोजेक्ट के लिए आवंटित 200 टीएमसी फीट पानी में से 30 टीएमसी फीट पानी को हैदराबाद के लिए आवंटित किया गया है। नीती आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत के जो 21 शहर पानी से महरूम हो जाएंगे उनमें हैदराबाद भी शामिल है। अब ऐसे में इस लिस्ट से बाहर करने के लिए यह दृष्टिकोण देश के सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में से एक हैदराबाद के लिए आशा की एकमात्र किरण है। नीती आयोग द्वारा दी गई लिस्ट से बाहर रहने के लिए अन्य शहरों को अगले पांच वर्षों में इसी तरह के समाधानों को लागू करने का तरीका ढूंढना चाहिए ताकि बहुत देर न हो पाए।
सबक नंबर 2: धन का स्रोत समस्या-समाधान की आसानी तय करता है
पोलावरम आंध्र प्रदेश राज्य में एक प्रतिष्ठित सिंचाई परियोजना है। लेकिन अब तक, राज्य सरकार को इस परियोजना के लिए एक विश्वसनीय फाइनेंसर नहीं मिला है। धन की कमी के कारण पुनर्वास का काम रुक गया है। इसका बजट 2004 में 10,800 करोड़ रुपये से बढ़कर आज 58,000 रुपये हो गया। अगर तुलना करें तो पोलावरम, कालेश्वरम द्वारा कवर किए गए क्षेत्र का एक तिहाई कवर करता है। वहीं इसका बजट कालेश्वरम का लगभग 60 प्रतिशत है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, पोलावरम अभी भी कंपलीट होने से बहुत दूर है, जबकि कालेश्वरम का उद्घाटन हो चुका है। कालेश्वरम के पूरा होने का मुख्य कारण यह है कि यह पूरी तरह से राज्य द्वारा वित्त पोषित (फंडेड) है, जबकि पोलावरम परियोजना केंद्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से फंड पर चल रही है। महत्वपूर्ण परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए कई बाहरी एजेंसियों पर निर्भरता बढ़ने से समय और परिणाम भी आगे बढ़ सकते हैं और लागत में वृद्धि हो सकती है।
सबक नंबर 3: राजनेताओं को परियोजना प्रबंधन विशेषज्ञता को फैलाने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है
इस तरह की ऐतिहासिक परियोजनाओं के लिए प्रेरक नेतृत्व और राज्य कौशल आवश्यक है। कलवकुंतला चंद्रशेखर राव ने महाराष्ट्र सरकार के साथ पुराने विवादों को हल करके पानी के संकट को हल करने के अपने इरादे को दिखाया। वहीं उनके तत्कालीन सिंचाई मंत्री हरीश राव कठोर ने परियोजना प्रबंधन के साथ अभूतपूर्व काम किया।
हालांकि अक्सर सरकारी परियोजनाओं में ये सब गायब रहता है लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। करीब 45-50 लाख एकड़ जमीन तक सिंचाई जल पहुंचाने की क्षमता रखने वाली कालेश्वरम परियोजना को सिर्फ तीन साल के भीतर पूरा करना देश के सिंचाई क्षेत्र में एक दुर्लभ रिकार्ड माना जा रहा है। राजनेताओं को राजनीतिक वादे करने के लिए अपनी जॉब को सीमित नहीं करना चाहिए बल्कि ईमानदारी से इरादे के साथ उन्हें प्रतिबद्ध रहने के लिए कौशल का निर्माण करना चाहिए।
तेलंगाना सरकार को और किन-किन चीज़ों को बढ़ावा देना चाहिए?
इस परियोजना से कमांड क्षेत्र सहित लगभग 50 लाख एकड़ में सिंचाई प्रदान करने की उम्मीद है। यह असाधारण है। उम्मीद है कि लगभग 20 से 25 लाख किसान परिवारों को पानी मिल रहा होगा। यह किसानों के लिए एक सपने के सच होने से कहीं ज्यादा है। लेकिन, यह स्थायी आधार पर लाभ तभी देगा जब ऐसे किसानों को पानी के विवेकपूर्ण उपयोग को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा।
कहा जाता है कि महान राष्ट्र बिना असफलताओं के नहीं बनते। तेलंगाना राष्ट्र समिति सरकार ने अच्छी मंशा के साथ किसानों को 24 घंटे मुफ्त बिजली देने की घोषणा की ताकि किसानों को पानी के लिए संघर्ष न करना पड़े। लेकिन जब बारिश कम हुई तो लोग फ्री बिजली के चलते बोरवेल से जमकर सिंचाई करने लगे। परिणामस्वरूप बोरवेल सूखने लगे। वही किसान जो पहले 24 घंटे बिजली आपूर्ति की सराहना करते थे, अब उन्हें पानी के दोहन के परिणामों का पता नहीं होने का अफसोस है।
कलेश्वरम जैसी परियोजना तेलंगाना के किसानों के इतिहास में केवल एक बार हो सकती है। राज्य के लिए खेती जीवन रेखा है। राज्य की सरकार को छोटे किसानों के लिए ग्रीनहाउस खेती जैसी तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करना चाहिए। उन्हें सूक्ष्म सिंचाई और अन्य जलवायु-स्मार्ट कृषि तकनीकों के बारे में बताना चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पानी एक मुक्त संसाधन नहीं बल्कि एक मूल्यवान संसाधन है। पानी के मीटर लगाने और किसानों को पानी के किफायती उपयोग को लेकर प्रशिक्षण करना होगा ताकि आनंदा रेड्डी जैसे किसानों को स्थायी खुशी मिल सकती है। हालांकि, हम जानते हैं कि किसानों के जीवन में इस परिवर्तनशील संसाधन को प्राप्त करने में कितना पैसा और मेहनत लग रही है।
(यह लेख अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद है।)