वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!
यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।
इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।
स्वास्थ्य सेवा के मसीहा डॉ सुनील कुमार हेब्बी
बेंगलुरु के डॉ सुनील कुमार हेब्बी ने अपनी कार को क्लिनिक में बदल दिया है और शहर भर में मरीजों का इलाज कर रहे हैं, जिनमें COVID-19 मामले भी शामिल हैं, जो उन्हें मदद के लिए व्हाट्सएप करते हैं। इसके अलावा वह रात में एक कोविड केयर सेंटर में भी काम करते हैं।
एक दशक से अधिक समय से, बेंगलुरु के मल्लेश्वरम के निवासी डॉ सुनील कुमार हेब्बी, मातृ सिरी फाउंडेशन (Matru Siri Foundation) नामक एक एनजीओ के माध्यम से गरीबों का मुफ्त इलाज करने के लिए एक मोबाइल क्लिनिक चला रहे हैं।
बीजापुर मेडिकल कॉलेज से स्नातक, 37 वर्षीय डॉक्टर का जन्म और पालन-पोषण विजयपुरा में हुआ था, और उन्होंने मोबाइल क्लिनिक पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए 2011 में नौकरी छोड़ने से पहले कई वर्षों तक बेंगलुरु के BGS Hospital में काम किया।
डॉ सुनील YourStory को बताते हैं, “एक छोटे से गाँव में पैदा होने के कारण, मुझे स्वास्थ्य सेवा न मिलने का दर्द पता है। मेरे माता-पिता, जो किसान हैं, और ग्रामीणों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने के लिए करीब 50 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी। इसने मुझे एक मोबाइल क्लिनिक शुरू करने के लिए प्रेरित किया।”
डॉ सुनील ने अपनी कार को एक मोबाइल क्लिनिक में बदल दिया है और एक ऑक्सीजन सिलेंडर और एक ईसीजी मशीन जैसे आपातकालीन दवाओं और उपकरणों को ढेर कर दिया है। उनके पास एक सहायक डॉक्टर और एक नर्स भी हैं जो उनके साथ स्वयंसेवा करते हैं।
वर्तमान में, वह बेंगलुरु और अपने गृहनगर, विजयपुरा दोनों में मोबाइल सेवा चलाते हैं, और हर दिन लगभग 80-100 रोगियों का इलाज करते हैं। अब तक, डॉ सुनील ने पूरे कर्नाटक में 785 मुफ्त चिकित्सा शिविर आयोजित किए हैं और 90,000 रोगियों को ठीक किया है और उनकी मदद की है।
कोई भी डॉक्टर शहर भर में अपनी कार-क्लिनिक चलाते हुए कोविड-19 रोगियों का इलाज कर सकता है जो व्हाट्सएप पर अपने स्वास्थ्य के मुद्दों को साझा करते हैं।
कॉप भी, सुपरमॉडल भी
सिक्किम से आने वाली इक्षा एक तेज़ तर्रार पुलिस अफसर हैं लेकिन इसी के साथ वे मॉडलिंग, बाइक राइडिंग और बॉक्सिंग में भी अपना लोहा मनवा चुकी हैं।
इक्षा केरुंग का चयन साल 2019 में सिक्किम पुलिस में हुआ था, हालांकि वे शुरू से ही मॉडलिंग की शौकीन रही हैं। इक्षा जब सिक्किम पुलिस में भर्ती हुईं उस समय उनकी उम्र महज 19 साल थी, हालांकि आज वे पुलिस सेवा के साथ ही मॉडलिंग के बीच बेहतरीन संतुलन बनाकर चल रही हैं।
सुपर मॉडल इक्षा एमटीवी के ‘सुपर मॉडल ऑफ द ईयर’ दूसरे सीजन में बतौर प्रतिभागी नज़र आई हैं।
इस प्रतियोगिता में इक्षा टॉप-4 में भी अपनी जगह बनाने में सफल रही हैं। पुलिस सेवा और मॉडलिंग के अलावा इक्षा राष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर भी रह चुकी हैं, जबकि इसी के साथ उन्हें बाइकिंग का भी जबरदस्त शौक है।
‘सुपर मॉडल ऑफ द ईयर’ शो के दौरान वहाँ मौजूद शो के पैनलिस्ट ने भी उन्हें खड़े होकर सैल्यूट किया था और उन्हें महिला सशक्तिकरण का उत्कृष्ट उदाहरण बताया था। इक्षा का सपना है कि वे अपने काम के जरिये दुनिया को यह बता सकें कि ऐसा कोई भी काम नहीं है जो महिलाएं नहीं कर सकती हैं। आज इक्षा अपने काम के जरिये दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक प्रेरणाश्रोत बन चुकी हैं।
साल 2000 में जन्मी इक्षा सिक्किम के सोमबारिया गाँव की निवासी हैं और शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होने अपनी उच्च शिक्षा गंगटोक से पूरी की है। 19 साल की उम्र में 14 महीने की कठिन ट्रेनिंग के बाद इक्षा ने सिक्किम पुलिस के दंगा रोधी बल को जॉइन किया था।
शुरुआत से ही मॉडलिंग और एक्टिंग की शौकीन रहीं इक्षा अपने बचपन के दिनों में तमाम प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया करती थीं और उस दौरान उन्होने तमाम प्रतियोगिताएं जीती भी हैं। साल 2018 में उमके लिए बड़ा मौका तब आया जब उन्होने राज्य स्तर पर ‘मिस सिक्किम’ प्रतियोगिता जीती थी।
केरल में स्वदेशी समुदायों को आजीविका देने वाली इकोलॉजिकल रिसर्चर
डॉ मंजू वासुदेवन और उनकी टीम ने 2017 में आदिवासी समुदायों के लिए उनके ज्ञान पर आजीविका के अवसर पैदा करने के लिए Forest Post की शुरुआत की।
इकोलॉजिकल रिसर्चर डॉ मंजू वासुदेवन के लिए, जो लगातार समुदाय के सदस्यों के साथ बातचीत करती थी, इन स्वदेशी समुदायों के ज्ञान और ज्ञान के आधार पर आजीविका के अवसर पैदा करने का एक सतत प्रश्न था। कादर, मलयार और मुथुवर जनजातियों के साथ जुड़कर, मंजू और उनकी टीम ने 2017 की शुरुआत में Forest Post की स्थापना की, और तब से यह एक कठिन यात्रा रही है।
Forest Post लघु वन उपज हार्वेस्टर का एक नेटवर्क है और मोम, तेल, बांस की टोकरियाँ और कपड़े के बैग सहित हस्तनिर्मित सामान बनाने वाले हैं।
परागण पारिस्थितिकी (Pollination Ecology) में पीएच.डी. कर चुकी मंजू, नदी अनुसंधान केंद्र, केरल में संरक्षण और आजीविका कार्यक्रम का भी नेतृत्व करती हैं। उन्होंने नदी अधिकार आंदोलन पर डॉ लता अनंता के साथ काम किया है, जो एक नदी अधिकार कार्यकर्ता हैं।
मंजू कहती हैं, "यह आजीविका कार्यक्रम विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund) के साथ वन अधिकारों पर किए जा रहे कुछ कामों की एक शाखा के रूप में शुरू हुआ था।"
वाझाचल वन के आसपास का क्षेत्र दक्षिण भारत में Community Forest Rights प्राप्त करने वाला पहला क्षेत्र था। इसके तहत, गांवों को उनकी परंपरागत रूप से आयोजित वन भूमि को मान्यता मिल सकती है और यह उन्हें संसाधनों की रक्षा, संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार देता है।
Forst Post ने अपनी वेबसाइट भी शुरू की जहां से लोग सीधे सामान खरीद सकते थे। टीम ने स्थानीय जैविक दुकानों में बिक्री करके और कुदुम्बश्री (Kudumbashree), केरल की महिला सशक्तिकरण पहल जैसे मौजूदा कार्यक्रमों से जुड़कर अवसरों का पता लगाया।
छोटे भारतीय शहरों के लिए वित्तीय सेवाओं का 'Meesho' बना रहा है यह स्टार्टअप
WeRize एक सामाजिक रूप से फैला हुआ फाइनेंस सर्विस प्लेटफॉर्म है, जो भारत में छोटे शहरों में रहने वाले यूजर्स को कस्टमाइज क्रेडिट, ग्रुप इंश्योरेंस और सेविंग प्रोडक्ट्स ऑफर करता है।
बैंगलोर स्थित फिनटेक स्टार्टअप WeRize, 2019 में लेंडिंगकार्ट के पूर्व एक्जीक्यूटिव विशाल चोपड़ा और हिमांशु गुप्ता द्वारा स्थापित एक सामाजिक रूप से फैला हुआ फाइनेंस सर्विस प्लेटफॉर्म है, जो भारत में छोटे शहरों में रहने वाले यूजर्स को कस्टमाइज क्रेडिट, ग्रुप इंश्योरेंस और सेविंग प्रोडक्ट्स ऑफर करता है।
प्लेटफॉर्म ने स्थानीय फ्रीलांस फाइनेंशियल कंसल्टेंट्स / एजेंटों का एक नेटवर्क बनाया है जो स्टार्टअप द्वारा तैयार किए गए प्रोडक्ट्स को अपने सामाजिक दायरे में, इन-हाउस और साझेदारी दोनों में डिस्ट्रीब्यूट करते हैं।
दो वर्षों में, WeRize लगभग 1,000 शहरों में 5 लाख से अधिक ग्राहकों से जुड़ने का दावा करता है। अब इसकी योजना अगले दो वर्षों में अपने सोशल डिस्ट्रीब्यूशन "सोशल शॉपिफाई ऑफ फाइनेंस" टेक प्लेटफॉर्म के माध्यम से 3,000 और शहरों तक पहुंचने की है। स्टार्टअप के पास पूरे भारत में 10,000 से अधिक फ्रीलांस फाइनेंशियल कंसल्टेंट्स का नेटवर्क है।
स्टार्टअप जल्द ही बचत-आधारित उत्पादों की पेशकश करेगा। डॉक्यूमेंटेशन और वेरिफिकेशन सहित पूरी प्रक्रिया को डिजीटल किया गया है और ऐप के माध्यम से किया जाता है। स्टार्टअप ने एजेंटों के लिए एक अलग ऐप तैयार किया है जिससे वे कामकाज को मैनेज करते हैं। रेवेन्यू मॉडल के संदर्भ में, फ्रीलांसर हर कन्वर्जन के लिए एक कमीशन कमाते हैं।
माइक्रो-एंटरप्रेन्योर का नेटवर्क होना स्टार्टअप की यूएसपी है, जो सोशल ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म मीशो (Meesho) से निकली है। दरअसल Meesho ने अपने सामाजिक दायरे में लोगों को उत्पाद बेचने के लिए फ्रीलांसरों (होममेकर्स) की एक सेना बनाई है।
ज़ीरो-वेस्ट कुकिंग करने वाली भारतीय शेफ
एक भारतीय शेफ इन दोनों ज़ीरो-वेस्ट कुकिंग तरीकों का इस्तेमाल करते हुए खाना बना रही है जिससे खाना बनाते समय खाद्य सामग्री की बर्बादी शून्य होती है।
शेफ अनाहिता ढोंडी आज पारसी खाने को रीइनवेंट कर लोगों के साथ ज़ीरो-वेस्ट के साथ स्वादिष्ट खाना परोस रही हैं। खाने को पकाने के लिए अक्सर शेफ अनाहिता केले के पत्ते आदि का भी इस्तेमाल करती हैं।
औरंगाबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट से पढ़ाई करने वाली अनाहिता को महज 23 साल की उम्र में ही एक रेस्टोरेंट में मैनेजर पद की ज़िम्मेदारी मिल गई थी। 30 साल की अनाहिता गुड़गाँव स्थित साइबरहब में हेड शेफ और पार्टनर भी रह चुकी हैं।
अनाहिता ने लंदन के ले कार्डन ब्लू से पढ़ाई की है और वहीं पर उन्होने पेस्ट्री और बेकिंग की ट्रेनिंग भी हासिल की है। हालांकि इस दौरान अनाहिता के लिए भारतीय खाने के लिए लगाव भी कम नहीं हुआ। अनाहिता के अनुसार भारतीय व्यंजन पकाने में उन्हें अधिक सुख मिलता है।अनाहिता शुरुआत से ही अपनी माँ की तरह स्वादिष्ट पारसी खाना और खास तौर पर पारसी कुकीज़ पकाना चाहती थीं।
आज अनाहिता एक सेलेब्रिटी शेफ हैं और वे तमाम युवा शेफ के लिए लगातार मेंटर की भूमिका भी अदा करती रहती हैं। अनाहिता की मानें तो एक बेहतरीन शेफ बनने के लिए किसी को भी हर दिन सीखते रहने की जरूरत है और इसी के साथ उन्हें अपनी सीख को अन्य लोगों के साथ लगातार साझा भी करते रहना चाहिए।
ज़ीरो-वेस्ट कुकिंग के संबंध में बात करते हुए अपने एक इंटरव्यू में अनाहिता कहती हैं कि जीरो वेस्ट कुकिंग भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। पारसी समुदाय में पार एडु नामक एक व्यंजन है जहां अंडे को किसी पकवान में तोड़ दिया जाता है और फिर उसे बेक किया जाता है। अनाहिता की दादी के घर पर बचे हुए सभी व्यंजन ऐसे ही खाए जाते थे।