वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!
यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।
इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।
पटना की आकांक्षा ने बनाया रोबोट
कोविड-19 रोगियों के इलाज में जुटे डॉक्टर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स की सहायता करने के उद्देश्य से, बिहार की राजधानी पटना की एक इंजीनियरिंग की छात्रा ने एक "रोबोट" बनाया है जो रोगियों की बुनियादी जांच में सहायता करता है।
आकांक्षा ने कहा, "मेरे पिता योगेश कुमार के साथ हमने इस 'मेडी-रोबोट' को तैयार किया और आशा है कि यह कई डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों के जीवन को बचा सकता है।"
यह रोबोट किसी भी संक्रमित मरीज, लाचार व्यक्ति का बेसिक मेडिकल जांच प्रामाणिकता के साथ दूर से और रियल टाइम डाटा और डेटाबेस के साथ जांच करता है। साथ ही इस रोबोट की मदद से रक्त में ग्लूकोस की मात्रा, रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा, हृदय गति, तापमान, ब्लड प्रेशर, वजन, ई.सी.जी., वायरलेस स्टेथेस्कोप से फेफड़ा, हृदय इत्यादि की जांच की जा सकती है।
20 वर्षीय इंजीनियरिंग की छात्रा ने इस रोबोट को डेवलप करने के पीछे उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहा, "कोरोनावायरस से लड़ने के लिए कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। साथ ही इस अवधि के दौरान लोगों को अस्पतालों में कोविड रोधी टीके भी लगाए जा रहे हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि देश और राज्य में बड़ी संख्या में डॉक्टर और अस्पताल कर्मियों की कमी है। ऐसे में ये रोबोट बेहद मददगार साबित हो सकता है।"
मछ्ली पालन से हर सीजन 10 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहा है ये इंजीनियर
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में जन्मे प्रखर प्रताप के पिता किसान मूल रूप से किसान हैं। प्रखर की दिलचस्पी यूं तो किसानी में शुरुआत से ही थी लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वो सिविल इंजीनियर बनें। शुरुआती शिक्षा अपने गाँव में ही पूरी करने के बाद अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए प्रखर ने प्रयागराज आकर सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
इंजीनियरिंग पूरी करने के साथ ही प्रखर को पश्चिम बंगाल की एक कंपनी में नौकरी मिल गई। अपनी नौकरी के दौरान प्रखर को कई बार यात्रा भी करनी पड़ती थी और इन्ही यात्राओं के दौरान प्रखर के भीतर पश्चिम बंगाल में परंपरागत तौर पर होने वाली मछली की खेती को लेकर रुचि पैदा होना शुरू हो गई।
इसके बाद प्रखर ने उत्तर प्रदेश के मेजा में स्थित एक मछली पालन विशेषज्ञ से संपर्क किया और उन्हेे अपने गाँव बुलाया। विशेषज्ञ ने चार दिन गाँव में रुकने के साथ ही प्रखर को उर्वरक और अन्य तकनीकों को लेकर जानकारी मुहैया कराई जिसके बाद प्रखर को मत्स्य पालन में तेजी के साथ आगे बढ़ने में काफी मदद मिली।
विशेषज्ञ से मिली जानकारी को प्रखर ने मत्स्य पालन में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और जल्द ही उन्हेे इसका फायदा भी मिलना शुरू हो गया। अपने दूसरे साल के दूसरे सीजन में प्रखर ने मछली पालन में सारी लागत को निकालते हुए 10 लाख रुपये का बेहतरीन मुनाफा भी कमाया।
इस मुनाफे ने प्रखर को एक आत्मविश्वास दिलाया और इसी के साथ मछली पालन में पूरी तरह आगे बढ़ने के उद्देश्य के साथ उन्होंने अपनी सिविल इंजीनियरिंग की नौकरी भी छोड़ दी।
आज प्रखर ने न सिर्फ अपना मछली पालन व्यवसाय पूरी तरह स्थापित किया है, बल्कि अब वह क्षेत्र के अन्य किसानों को परंपरागत खेती के साथ-साथ मछली पालन को भी शुरू करने में मदद कर रहे हैं।
राजस्थानी प्रवासी ने मुंबई में शुरुआत कर खड़ा किया सफल ज्वैलरी ब्रांड
60 और 70 के दशक में राजमल पारेख का परिवार राजस्थान में किराना का कारोबार करता था। लेकिन राजमल की बड़ी योजनाएं थीं और वह अपने गृह राज्य को छोड़कर मुंबई जाने का सपना देखते थे।
मुंबई की चहल-पहल के आकर्षण ने राजमल को 1972 में वहां शिफ्ट होने और कई व्यावसायिक उद्यमों में हाथ आजमाने के लिए प्रेरित किया।
एक छोटे स्टील ट्रेडिंग उद्यम के साथ शुरुआत करते हुए, उन्होंने ज्वैलरी का व्यापार किया - एक ऐसा व्यवसाय जिसने उन्हें अच्छा मार्जिन दिया और उन्हें बड़ी संख्या में लोगों के साथ नेटवर्क बनाने की अनुमति दी।
उन्होंने जल्दी से आभूषण उद्योग के लिए अपने अंदर एक जुनून जगाया और पारेख ऑर्नामेंट्स (Parekh Ornaments) ब्रांड नाम के तहत आभूषण बनाना शुरू कर दिया, जिसे 1983 में शुरू किया गया था।
रौनक पारेख, जो पारेख ऑर्नामेंट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, YourStory को बताते हैं:
"मेरे दादाजी के पास हमेशा से व्यापार को लेकर अच्छी समझ थी। पांच किलो सोने और अपने आसपास के लोगों से लिए गए कर्ज के साथ, उन्होंने पारंपरिक निर्माण शिल्प कौशल के साथ डिजाइन के एक विकसित पैलेट का संयोजन शुरू किया।"
पारेख ऑर्नामेंट्स अब एक पारिवारिक व्यवसाय बन गया है। यह सोने, हीरे, अनकट पोल्की, कीमती और अर्ध-कीमती स्टोन्स, चांदी के सिक्कों आदि से आभूषण बनाता है।
हालांकि रौनक बिजनेस की सेल्स के बारे में खुलासा नहीं करते हैं, लेकिन इसके बजाय, वह दावा करते हैं कि उनके दुनिया भर में 14,000 से अधिक ग्राहक हैं और मुंबई में शीर्ष 15 ज्वैलर्स में से एक हैं।
महामारी से लड़ाई में अहम भूमिका निभा रही ये महिला सरपंच
दो दशकों से अधिक समय तक अध्यापिका रहीं कृष्णा गुप्ता सितंबर 2020 में राजस्थान की राजधानी जयपुर में तुंगा तहसील की सरपंच बनीं। वह अपने क्षेत्र में महामारी का सामना करने के प्रयासों का नेतृत्व कर रही हैं।
तुंगा की प्रसिद्धि का हालिया दावा तब था जब हिंदी फिल्म, जोधा अकबर के कुछ हिस्सों को इस क्षेत्र में शूट किया गया था।
तुंगा तहसील की सरपंच कृष्णा गुप्ता हैं। डबल एमए और बीएड के साथ, उन्होंने पंचायत चुनाव लड़ने और सरपंच बनने से पहले दो दशक से अधिक समय तक एक अध्यापिका के रूप में काम किया।
“जब मैं अध्यापिका थी, मेरे पास अपने बच्चों की शिक्षा, छात्रवृत्ति सहित कई मामलों पर मार्गदर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग आते थे। वे मेरे विचारों का सम्मान करते थे और उन्हें महत्व देते थे,” वह कहती हैं।
दो दशक के शिक्षण करियर के बाद, उन्होंने सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उन्होंने सितंबर 2020 में निर्णायक रूप से चुनाव जीता।
वह कहती हैं, "मुझे यह सुनिश्चित करना था कि लोग चुनाव के दिन भी सरकार द्वारा निर्धारित कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे।"
वह कहती हैं, “हमारे पास स्वयं सहायता समूह नाम का एक व्हाट्सएप ग्रुप भी है जहां पूरे गांव की महिलाओं को जोड़ा जाता है। महिलाएं वह संदेशवाहक हैं जिनके माध्यम से हम उनके परिवारों और अन्य लोगों को सुरक्षा और स्वच्छता का संदेश दे सकते हैं।”
रचनात्मक खेलों के जरिए बच्चों में डिजाइन थिंकिंग विकसित कर रहा है यह स्टार्टअप
Roundumbrella Co एक एड-डिजाइन स्टार्टअप है, जो खिलौनों और शारिरिक गेम्स के जरिए 12वीं कक्षा तक के बच्चों में डिजाइन थिकिंग विकसित करने के मिशन पर है।
इस स्टार्टअप को शिवानी और मोहित सैनी ने मिलकर 2018 में शुरू किया था। राउंडमब्रेला कंपनी, अहमदाबाद स्थित एक एड-डिजाइन स्टार्टअप है जो खिलौनों और शारीरिक खेलों के जरिए 12वीं कक्षा तक के बच्चों में डिजाइन थिकिंग विकसित करने के मिशन पर है।
इसने 'बुल्बी फॉर किड्स' नाम से एक गेम बनाया है। यह एक 'धूप और छाया' खेल है, जो नए-नए तत्वों का मिश्रण बनाने के मूल सिद्धांतों के आधार पर रचनात्मक आत्मविश्वास को बढ़ाता है। संस्थापक बताते हैं कि यह इनडोर और आउटडोर दोनों तरह का खेल है, जहां बच्चे दो अलग-अलग वस्तुओं, अवधारणाओं और परिदृश्यों को जोड़ना सीख सकते हैं, जिससे कुछ बिल्कुल नया पैदा हो सके।
शिवानी कहती हैं, ''हम अपने खेल से 'कैसे' का जवाब देते हैं।" खेल के पीछे की अवधारणा को समझाते हुए वह कहती हैं कि शिक्षा के तीन स्तंभ हैं- बच्चे, शिक्षक, और सीखना, और पिछले दशक में हुए अधिकतर इनोवेशन और प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के केंद्र में 'सीखने' वाले हिस्से में सुधार करना रहा है। इसमें 'स्टैंडर्ड वीडियो लेक्चरों' के जरिए शिक्षकों की भूमिका को मानकीकृत करना, 'बड़े पैमाने पर ऑनलाइन कंटेंट', और इसे सुलभ बनाना आदि शामिल है।
राउंडम्ब्रेला के अहम गेम 'बुल्बी फॉर किड्स' में तीन साल का रिसर्च एंड डेवलपमेंट लगा। सात लोगों की टीम के साथ, स्टार्टअप अब दुनिया भर में अपने 100 बॉक्स के पहले बैच को भेजने के लिए तैयार है।
कंपनी ने 5 लाख रुपये की सीड कैपिटल के साथ शुरुआत की थी। वह कहती हैं, "हमने एक क्राउडफंडिंग अभियान पूरा कर लिया है और यूएसए, यूके, कनाडा और भारत के 51 समर्थकों से 3000 डॉलर जुटाए हैं।"