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वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!

यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।

इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।

अनाथ बच्चों की 'मसीहा' वकील

पौलोमी पावनी शुक्ला पेशे से एक वकील और लेखक होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। पौलोमी काफी समय से अनाथ बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। उनका प्रमुख उद्देश्य हमेशा से यह रहा है कि सभी अनाथ बच्चों को जरूरी शिक्षा प्राप्त हो सके।

पौलोमी पावनी शुक्ला (फोटो साभार: फोर्ब्स इंडिया के लिए विकास बाबू)

पौलोमी पावनी शुक्ला (फोटो साभार: फोर्ब्स इंडिया के लिए विकास बाबू)

पौलोमी को देश में अनाथ बच्चों की शिक्षा को लेकर किए गए उनके प्रयासों के चलते कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। अपने इन्हीं सामाजिक कार्यों के चलते पौलोमी को प्रतिष्ठित फोर्ब्स इंडिया पत्रिका ने साल 2021 में अपनी खास ‘30 अंडर 30’ सूची में जगह दी है।


मीडिया से बात करते हुए पौलोमी ने बताया है कि समाज सुधार को लेकर उनकी यात्रा साल 2001 में शुरू हुई थी जब वह महज 9 साल की थीं। पौलोमी बताती हैं कि उनकी माँ हरिद्वार में जिलाधिकारी पद पर तैनात थीं और तब ही भुज में भीषण भूकंप आया था, जिसके बाद बड़े स्तर पर तबाही का मंजर देखने को मिला था।


इस प्राकृतिक तबाही में बड़ी तादाद में बच्चे अनाथ हो गए थे, तब हरिद्वार की सामाजिक संस्थाओं ने उन बच्चों की मदद का काम शुरू किया था, जिसके चलते बड़ी संख्या में अनाथ बच्चे भुज से हरिद्वार आए थे। पौलोमी के अनुसार उनकी माँ तब उन्हे इन बच्चों से मिलाने एक ऐसे ही अनाथालय लेकर गई थीं। हम उम्र होने के चलते पौलोमी उन बच्चों के साथ घुल मिल गईं और इस तरह वे उनके साथ ही मिलते-जुलते बड़ी हुईं।


असल में अनाथ बच्चों प्रति पौलोमी के भीतर यह स्नेह यहीं से उभरा और उन्होने तभी ऐसे बच्चों की मदद करने का प्रण अपने मन में ले लिया था।

मुंबई के डॉक्टर दंपति का 'मेड्स फॉर मोर'

मुंबई के डॉक्टर मार्कस रन्नी और उनकी पत्नी ने कोरोना से रिकवर हो चुके लोगों से 10 दिनों में करीब 20 किलो बची हुई दवाईयां जमा की है और अब वे इन दवाओं को जरूरतमंद लोगों को बांट रहे हैं।

डॉ. मार्कस रन्नी और उनकी पत्नी डॉ. रैना ने ‘मेड्स फॉर मोर’ पहल की शुरूआत की है (फोटो साभार: ANI)

डॉ. मार्कस रन्नी और उनकी पत्नी डॉ. रैना ने ‘मेड्स फॉर मोर’ पहल की शुरूआत की है (फोटो साभार: ANI)

बीती 1 मई को, डॉ. मार्कस रन्नी और उनकी पत्नी डॉ. रैना ने मेड्स फॉर मोर (Meds For More) पहल की शुरूआत की, जो कि कोविड से रिकवर हो चुके लोगों से बची हुई दवाओं को इकट्ठा करने की एक नागरिक पहल है।


डॉ. मार्कस रन्नी ने समाचार ऐजेंसी ANI से बात करते हुए कहा, "हमने यह पहल 10 दिन पहले शुरू की थी। हम हाउसिंग सोसाइटियों से दवाइयाँ इकट्ठा करते हैं और उन लोगों को मुहैया कराते हैं, जो उन्हें खरीद नहीं सकते।"


डॉ. मार्कस रन्नी ने आगे बताया, "हमारे पास अब 100 बिल्डिंग्स हैं जो हमें दवाइयां भेज रही हैं। हम आठ लोगों की टीम हैं और निश्चित रूप से, अलग-अलग बिल्डिंग्स में स्वयंसेवक हैं। पिछले सप्ताह हमने 20 किलोग्राम दवाइयां एकत्र कीं, जिन्हें पैक करके हमारे एनजीओ सहयोगियों को दे दिया गया है।"


मेड्स फॉर मोर ने सभी तरह की अप्रयुक्त दवाओं जैसे एंटीबायोटिक्स, फैबिफ्लू, पैन रिलिफ, स्टेरॉयड, इनहेलर, विटामिन, एंटासिड, आदि को एकत्र किया, जो कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए उपयोग की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त, वे पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर जैसे बेसिक मेडिकल उपकरण भी एकत्र कर रहे हैं।

अलीगढ़ के स्टार्टअप ने बनाया स्वदेशी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर

टेक स्टार्टअप, इंजीनियरिंग एंड एनवायरनमेंटल सॉल्यूशंस (E&E Solutions) की एक टीम ने एक स्वदेशी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर विकसित किया है। इसके प्रोटोटाइप का अलीगढ़ के एक सरकारी अस्पताल में परीक्षण भी हो चुका है।

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टीम का कहना है कि अब तक के परिणाम बहुत उत्साहजनक रहे हैं। वे अब इस डिवाइस को अधिक कुशल बनाने और जल्द ही बाजार में लॉन्च करने के लिए काम कर रहे हैं।


E&E के रिसर्च और डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के हेड सैयद अबु रेहान ने बताया, “हमने दिन-रात युद्धस्तर पर काम किया और उपकरणों का प्रोटोटाइप बनाया। हमारे प्रयासों को डिविजनल कमिश्नर गौरव दयाल ने भी सराहना की, जब वे अलीगढ़ में हमारे प्रोडक्शन फैसिलिटी का दौरा करने आए थे। उन्होंने जिला प्रशासन से सभी आवश्यक समर्थन का वादा किया।"


YourStory को दिए एक इंटरव्यू में, E&E की टीम ने बताया कि इस मशीन की कीमत काफी कम होगी और यह एक बार पूरी तरह से विकसित हो जाने के बाद, यह मशीन विदेशों से मंगाए गए महंगे ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के मुकाबले एक कम लागत वाला विकल्प होगी।


E&E की मशीनों की कीमत 40,000 रुपये प्रति यूनिट से कम होने की उम्मीद है। वहीं विदेशों से मंगाए गए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स की कीमत औसतन 65000-75000 रुपये प्रति यूनिट के बीच और कभी-कभी इससे भी अधिक होती है।


स्टार्टअप उन कंपनियों के साथ साझेदारी करना चाहता है जो कच्चे माल की व्यवस्था कर सकती हैं, खास तौर से मेडिकल ग्रेड जोलाइट का। बिजनेस स्ट्रेटजी के प्रमुख राहील अहमद कहते हैं कि वर्तमान उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 30-50 मशीनों तक सीमित है, लेकिन कंपनी द्वारा इस विशेष उपक्रम के लिए निवेशकों को लुभाने में सक्षम होने के बाद यह संख्या बढ़ाई जाएगी।

ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली भारत की पहली तलवारबाज़

ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज़ बनकर इतिहास रचने वाली तलवारबाज़ भवानी देवी ने कहा कि वह टोक्यो ओलंपिक-2021 में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने के लिए उत्सुक हैं।

भवानी देवी ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज़ हैं (फोटो साभार: The Bridge)

भवानी देवी ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज़ हैं (फोटो साभार: The Bridge)

उन्होंने कहा, "यह पहली बार होगा जब हमारे देश के ज्यादातर लोग तलवारबाजी देखेंगे और मुझे खेलते हुए देखेंगे, इसलिए मैं उनके सामने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दूंगी।"


इस वर्ष मार्च में बुडापेस्ट विश्व कप के बाद समायोजित आधिकारिक रैंकिंग (AOR) पद्धति के माध्यम से कोटा हासिल करने के बाद, चेन्नई की 27 वर्षीय भवानी ने एक लंबी यात्रा के बाद एक बड़ी सफलता हासिल की है।


उन्होंने बांस के डंडे से प्रशिक्षण लेकर अपने करियर की शुरुआत की थी। ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली तलवारबाज़ बनने पर उत्साह का भाव भवानी ने नहीं खोया है।

भवानी देवी के दिवंगत पिता एक पुजारी थे और माँ एक गृहिणी हैं। भवानी हर कदम पर अपने माता-पिता से मिले समर्थन के लिए आभारी हैं। उन्होंने बुधवार को भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित मीडिया से बातचीत में कहा, "केवल अपने माता-पिता की वजह से, मैं कठिनाइयों को दूर कर आगे बढ़ने में सफल हुई हूँ।"


भवानी देवी ने कहा, “मेरी माँ ने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया। वह मुझसे हमेशा कहती हैं, "अगर आज अच्छा नहीं है, तो कल ज़रूर बेहतर होगा। यदि आप 100 प्रतिशत देते हैं, तो आप निश्चित रूप से उसके परिणाम प्राप्त करेंगे।"

IAS एस्पीरेंट्स ने बनाया UPSC कैंडिडेट्स के लिए एग्जाम रोड मैप प्लेटफॉर्म

इलाहाबाद स्थित गियरट्रॉन टेक्नोलॉजीज (Geartron Technologies) ने टेस्ट प्रिपरेशन प्लेटफॉर्म Examarly बनाया है। यह एक सेल्फ-स्टडी प्लेटफॉर्म है जो हायर एजुकेशन और परीक्षा की तैयारी के लिए आउटकम-बेस्ड लर्निंग पर केंद्रित है।

Examarly

Examarly के को-फाउंडर्स

को-फाउंडर निशांत शुक्ला ने महामारी के ठीक बीच में फाउंडर्स सुशांत शुक्ला, इशान मालवीय और थ्रिभुवन एचएल के साथ कंपनी की शुरुआत की। सिविल सेवा के इच्छुक होने के नाते, भाइयों निशांत और सुशांत ने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के पीछे के मुद्दों को समझा।


Examarly के जरिए, दस इंटर्न के साथ चार फाउंडर्स, पर्सनलाइज्ड प्लान बनाकर परीक्षा की पूरी यात्रा के माध्यम से यूपीएससी के उम्मीदवारों को संभालते हैं जो उन्हें उपलब्ध विशाल सामग्री को नेविगेट करने में मदद करते हैं। यह छात्रों का 50 प्रतिशत या अधिक तैयारी के समय की बचत करता है। 24 वर्षीय सुशांत शुक्ला कहते हैं, "हम यूपीएससी की तैयारी के लिए प्लेटफॉर्म को 'गूगल मैप' बनाना चाहते हैं, जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी सेल्फ स्टडी के लिए रीयल-टाइम नेविगेशन पा सकते हैं।"


Examarly एक सब्सक्रिप्शन-बेस्ड प्लेटफ़ॉर्म है जो 500 रुपये मासिक शुल्क लेता है, और छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार पर्सनलाइज्ड सब्सक्रिप्शन प्लान बनाता है। निशांत कहते हैं, “उम्मीदवारों के लिए समय की बचत हमारा मुख्य लक्ष्य है। वर्तमान में, प्रतियोगी परीक्षा देने वाले सभी उम्मीदवारों की योजना और रणनीति बनाने में हर साल इतना समय बर्बाद होता है जिनमें ज्यादातर काम नहीं करते हैं।”


इशान बताते हैं, “हमारा ध्यान अभी हमारी टेक्नोलॉजी को बढ़ाने और हमारे प्रोडक्ट को और अधिक मजबूत बनाने पर है ताकि हम ऐसी योजनाओं को डिजाइन कर सकें जो अधिक व्यक्तिगत और अधिक विशिष्ट हैं। यह लक्ष्य 50 प्रतिशत से अधिक आकांक्षी समय को बचाने के लिए होगा, जिसमें योजना, पढ़ने और रिविजन में खर्च किया जाएगा। हम वित्तीय वर्ष 22 के अंत तक 5000-10,000 पेड यूजर्स को टारगेट कर रहे हैं।“