Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

भारत की चाय ने एक विदेशी महिला को बना दिया अरबपति

अंग्रेज भारत पर राज करने आए तो चाय की लत लगा गए। जुड़वा बच्चों की मां ब्रुक एडी भारत घूमने आईं तो यहां चाय बनाना सीख कर अपने देश अमेरिका में इसकी खुदरा बिक्री करने लगीं। आज वह सवा दो सौ करोड़ की मालकिन हो चुकी हैं, वह भी मात्र एक दशक के भीतर।

ब्रुक एडी

ब्रुक एडी


 जीवन में कामयाबी उसे ही मिलती है, जो लीक से हटकर कुछ कर गुजरता है। अपने धंधे में ब्रुक ने भी वही मुहावरा गढ़ा है। वही जानी-पहचानी चाय, लेकिन कुछ अलग अंदाज में, अपने एक खास कारोबारी हुनर के साथ। 

ये तो अपनी-अपनी दृष्टि और हुनर, मेहनत और कामचोरी का कमाल है कि कोई दर-दर भटकता रहता है, चाय पीते-पीते खाली जेब कंगाल हो जाता है और कोई महिला चाय बेचकर अरबपति बन जाती है। ऐसी ही सफलता की इबारत लिखी है भारत से लौटी कोलोराडो (अमेरिका) की सफल बिजनेसमैन ब्रुक एडी ने। दरअसल, वर्ष 2002 में हिंदुस्तान घूमने के दिनो में अपने दो जुड़वा बच्चों की मां ब्रुक को चाय पीने का चस्का लग गया था। इंडिया से वह जब अपने वतन लौटीं, न घर में, न कहीं आसपास चाय मिल पाती। उनका दिमाग घूम गया। जैसे नशे की तलब पूरी न होने की बेचैनी। तरह-तरह की बातें मन में आने लग जाती थीं। उसी दौरान उन्होंने सोचा कि भारत की चाय तो बड़ी मजेदार होती थी। यदि यहां भी उस तरह की चाय बेची जाए तो एक अच्छा बिजनेस खड़ा किया जा सकता है। बस फिर क्या था, इस आइडिया ने ही ब्रुक के जीवन की दिशा बदल दी।

यह सब सोचने, विचारने में धीरे-धीरे उनके पांच साल बीत गए। उन्होंने सन् 2007 में अपनी लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी और कार से घूम-घूमकर चाय बेचने लगीं। उस दिन के बाद से उन्होंने आजतक कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है। अब तो अमेरिकी उनकी चाय के दीवाने बने डोलते हैं। चाय बेचकर वह दो सौ करोड़ की मालकिन बन चुकी हैं। कुछ इसी अंदाज में इंडिया में कभी 'चायोस' के संस्थापक नितिन सलूजा भी इस कारोबार में आए थे। जब उन्हें अमेरिका प्रवास के दौरान घर में बनी अदरक वाली चाय पीने को नहीं मिलती थी, मन मसोस कर रह जाते थे। उन्होंने सोचा कि हमारे देश के 33 हजार करोड़ के चाय बाजार में एक भी संगठित कंपनी नहीं है।

मुंबई से आईआईटी करने के बाद उन्होंने दिल्ली एनसीआर में अदरक वाली चाय की 'चायोस' नाम से चेन खोल दी। इसी तरह आईआईटी खडगपुर के स्नातक पंकज ने नोएडा और गुडग़ांव में 'चाय ठेला' नाम से सात आउटलेट की चेन चला दी, तो ऑनलाइन खुदरा कंपनी टीबॉक्स की नजर अब अमेरिका, चीन और जापान के अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर जा टिकी है। इसी तरह हावर्ड बिजनेस स्कूल के छात्र रहे अमलीक सिंह बिजराल मुंबई, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई में अपनी सौ करोड़ की चाय प्वाइंट योजना को परवान चढ़ा रहे हैं। फिलहाल, हम बात कर रहे हैं अमेरिकी चाय विक्रेता महिला की, जिसने अपनी सूझ और मशक्कत से अपनी जिंदगी का कायाकल्प कर लिया है। अब तो अमेरिकी भी उनकी सफलता पर हैरत करने लगे हैं।

जब ब्रुक भारत भ्रमण से अपने देश लौटीं, चाय की तलब ने उन्हें पल भर भी चैन नहीं लेने दिया। एक एक घूंट चाय के लिए वह कोलोराडो की खाक छानने लगीं। घर में तो चाय मिलने से रही। घूमघाम कर कमोबेश रोजाना ही वह अपने शहर के किसी न किसी कैफे पहुंच जाती चाय पीने, लेकिन वहां की चाय में इंडिया जैसी लज्जत कहां। उससे कभी उनका जी नहीं भरता था। मन की बेचैनी जस की तस बनी रहती थी। फिर क्या था, उन्होंने ठान ली, अब वह खुद ऐसी चाय बनाएंगी, जिसमें भारतीय चाय जैसी मिठास और स्वाद हो। शुरुआत में उन्हें चाय बनाने को लेकर कई तरह की परेशानी भी उठानी पड़ी क्योंकि उन्हें खुद तो चाय बनाने आता नहीं था। जैसे-तैसे वह भारतीय दुकानदारों की तरह चाय बनाना सीख गईं। दिनोदिन उनके यहां चाय पीने वाले देसी-विदेशी ग्राहकों की संख्या में इजाफा होने लगा। उन्होंने अपनी टी को 'भक्ति' चाय नाम से प्रमोट किया और अब, इस साल 2018 में, आज तक वह अपनी कमाई लगभग पचास करोड़ तक पहुंचा चुकी हैं।

चाय बिक्री से वह 2007 के बाद से कुल 233 करोड़ रुपए की कमाई कर चुकी हैं। जीवन में कामयाबी उसे ही मिलती है, जो लीक से हटकर कुछ कर गुजरता है। अपने धंधे में ब्रुक ने भी वही मुहावरा गढ़ा है। वही जानी-पहचानी चाय, लेकिन कुछ अलग अंदाज में, अपने एक खास कारोबारी हुनर के साथ। सन् 2006 के जिन दिनो में वह अपनी टी कंपनी खड़ी करने की माथापच्ची में जुटी हुई थीं, इसके लिए उन्हें कई मर्तबा भारत की यात्रा पर आना-जाना पड़ा। जब उन्होंने चाय बेचने की शुरुआत की, अपनी कार के पीछे वह अलग से एक चौपहिया स्टॉल लेकर चल पड़ीं। धीरे-धीरे राह चलते चाय पीने वालों को उनका इंतजार रहने लगा। जो भी उनकी चाय एक बार पी लेता, सोचता दोबारा कैसे मिले।

इस तरह कुछ ही वक्त में उनकी चाय पीने वालों की तादाद दिन दूनी, रात चौगुनी गति से बढ़ती चली गई। इसके बाद ब्रुक ने अपने दूसरे आइडिया को आजमाना शुरू किया। अभी चाय बेचते एक ही वर्ष गुजरे होंगे कि उन्होंने 'भक्ति धारा' नाम से अपना वेबसाइट लॉन्च कर दिया। साथ ही ‘GITA-Give, Inspire, Take Action’ नाम से अमेरिका के बेसहारा लोगों के लिए अपनी एक संस्था भी लॉन्च कर दी। अब तक वह उनके मददगार के रूप में भी तीन-चार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी हैं। अब वह 'भक्ति धारा' वेबसाइट के माध्यम से अपने ठिकाने पर बैठे-बैठे पूरे इलाके के घर-घर में पैठती चली गईं। उनका बिजनेस तेजी ग्रो करने लगा। अब खुद का कारोबार पार्ट टाइम तौर पर उनसे संभाले नहीं संभल पा रहा था तो उन्होंने अपना फ़ुलटाइम जॉब भी छोड़ दिया और पूरी तरह से अपने धंधे में डूब गईं।

दरअसल, चाय का नशा कुछ होता ही ऐसा है कि जिसे लत पड़ गई, सो पड़ गई। कुछ लोग तो एक-एक घंटे में कई कई कप चाय सुड़क जाते हैं। बार-बार पीते रहने से वैसे लोग खुद को रोक नहीं पाते हैं। वैसे भी दुनिया के ज्यादातर देशों में हर घर की सुबह चाय की चुस्कियों से शुरू होती है। अंग्रेजों की लगाई लत के मारे इंडिया का भी यही वो सामान्य गर्म पेय है, जिससे शायद ही कोई गांव-शहर अछूता रह गया हो। अब तो चाय के तमाम ब्रांड मार्केट में आ गए हैं। मॉर्निंग वॉक पर निकलिए तो पार्कों में रोजाना कोई न कोई नए ब्रॉंड के साथ चाय पिलाता मिल जाता हैं। वैसे भी चाय का बिजनेस एक बार चल पड़ा तो फिर कभी ठंडा होने का नाम नहीं लेता है।

चाय की खेती हमारे देश के कई हिस्सों में होती है। आसाम और दार्जिंलग की चाय सबसे अच्छी चाय मानी जाती है. इसकी डिमांड भारत ही नहीं विदेशों में भी है। हमारे देश में बंगाल, असम, मेघालय जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में खुली चाय पत्ती की अनेक दुकानें होने की वजह से लोग महंगी ब्रांडेड चाय पीने की बजाएं खुली चाय पीना पसंद करते हैं। अब तो बाबा रामदेव की चाय अलग ही गजब ढा रही है। भक्तगण कहते हैं, हाय रे हाय मेरो बाबा की चाय। सदियों पूर्व के अतीत पर नजर डालें तो पता चलता है कि सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया था, जिसकी पत्तियां स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाशने के लिए एक समिति का गठन किया। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए।

बताते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के घर में गर्म पानी के प्याले में कुछ सूखी पत्तियाँ आकर गिरीं, जिनसे पानी में रंग आ गया। जब उन्होंने उसकी चुस्कियां लीं तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू हो गया था चाय का सफ़र। ये बात ईसा से 2737 साल पहले की बताई जाती है। सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया। भारत को तो ये लत अंग्रेज लगा गए थे, जो आज अरबों, खरबों का धंधा बन चुका है। ब्रुक ने अमेरिका में अपना धंधा शुरू करने से पहले इस कारोबार की नब्ज ठीक से टोह ली थी। इसका भूत-भविष्य-वर्तमान पढ़-परख लिया था। चाय बनाना तो उन्होंने भारत यात्रा के दौरान ही सीख लिया था।

ब्रुक बताती हैं कि 'सन् 2002 में जब मैं कॉलेज में थी, तब मुझे एक प्रोजेक्‍ट पर भारत भेजा गया था। मैंने सोशल पॉलिसी में ग्रेजुएशन किया है और इसी से जुड़े एक विषय पर मुझे प्रोजेक्‍ट तैयार करना था, जिसके लिए मैं भारत आई। भारत में मुझे कई गांव, कस्‍बे और शहर घूमने पड़े। इतनी सारी जगह घूमने पर मैंने हर जगह एक चीज एक सी पाई और वो थी चाय। यहां के लोगों को चाय इतनी पसंद है, यह मुझे यहीं आकर पता चला। हालाकि मैंने चाय के बारे में सुन रखा था मगर लोग इसे थकान मिटाने, फ्रेश फील करने और लोगों का स्‍वागत करने के लिए इस्‍तेमाल करते हैं, यह बात मुझे यहीं आकर पता चली। मैं खुद भी जितने दिन रही, चाय की चुस्कियां लेती रही। मुझे यह ड्रिंक बेहद पसंद आया। इस ड्रिंक की सबसे अनोखी बात तो यह थी कि इसका टेस्‍ट हर जगह अलग था। कहीं इसमें अदरक डाली जाती थी, तो कहीं पर काली मिर्च, इलाइची और मसाले। चाय की इतनी वैराइटी देख कर मुझे लगा कि क्‍यों न मैं अमेरिका में भी लोगों को इसका स्‍वाद चखाऊं।'

बाद में ब्रुक ने चाय के अपने अलग से कई एक कॉम्‍बीनेशन तैयार किए। अपनी टी कंपनी खोलने की अनुमति तो उन्हें अभी इसी साल 2018 में मिली है। माल की आपूर्ति वह बाहरी देशों से करती हैं, मसलन, पत्ती भारत से, अदरक पेरू से और उसमें डिफरेंट टेस्ट डालने के लिए चॉक्‍लेट स्विटजरलैंड से। अब तो उनकी कार के पीछे घिसटता रहा ठेला एक बड़ी कंपनी का रूप ले चुका है। चाय हमारे देश का अघोषित राष्ट्रीय पेय होने के बावजूद किसी के चाय बेचकर अरबपति बन जाने की बात पर यकीन करना मुश्किल हो सकता है लेकिन ये सच है। ब्रुक की कामयाबी आज पूरी दुनिया की सुर्खियों में है। ब्रुक की 'भक्तिधारा' चाय ने अमेरिकी कॉफी को कड़ी टक्कर दी है। ब्रुक का नाम अब तो एक पत्रिका की टॉप- 5 लिस्ट में भी आ चुका है। वाह, गजब का लाइफस्टाइल ब्रांड 'भक्तिधारा'।

यह भी पढ़ें: बिहार के गरीब बच्चों की 'साइकिल दीदी' सुधा वर्गीज