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अमन के मखाना स्टार्टअप 'वाल्श स्नैक्स' की अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर तक गूंज

अमन के मखाना स्टार्टअप 'वाल्श स्नैक्स' की अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर तक गूंज

Monday November 25, 2019 , 4 min Read

"पूर्णिया (बिहार) के अमन वर्णवाल ने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर मखाना का 'वाल्श स्नैक्स' नाम से स्टार्टअप शुरू किया है। फिलहाल, वह पटना, बेंगलुरु, सिंगापुर, जर्मनी और अमेरिका वाल्श स्नैक्स की सप्लाई कर रहे हैं। हाल ही में उनका प्रॉडक्ट टेस्टिंग फेज के लिए सिंगापुर, जर्मनी, अमेरिका में सेलेक्ट हुआ है।"

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बिहार के मखाने पूरी दुनिया में मशहूर है। पिछले कुछ वर्षों में मखाना उत्पादन और व्यवसाय का भी आश्चर्यजनक विस्तार हुआ है। पूर्णिया के युवा उद्यमी इंजीनियर अमन वर्णवाल ने तो अभी पिछले साल 2018 में अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर हरदा के मखाना के बिजनेस को ही 'वाल्श स्नैक्स' नाम से अपना स्टार्टअप बना लिया है। एक ताज़ा जानकारी के मुताबिक, अब पूर्णिया के मखाने का विश्व के कई देशों के लोग स्वाद लेंगे।


वर्णवाल के हेल्थी स्नैक्स के प्रपोजल को तीन देशों ने सलेक्ट किया है। इस समय 'वाल्श स्नैक्स' भारत के चुनिंदा 500 स्टार्टअप में शुमार है। वर्णवाल कॉर्नफ्लैक्स की तरह रेडी टू यूज के रूप में मखाना को पूरी दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं। उनका मानना है कि मखाना बिजनेस और खेती दोनों में बेहतरीन रोजगार के अवसर दे सकता है। 

हालांकि, बिहार में अभी भी परंपरागत खेती का चलन ज्यादा है। वर्णवाल अपनी अनूठी सोच से किसानों के मखाना समेत दूसरे प्रोडक्ट्स को भी बतौर स्नैक्स नेशनल और इंटरनेशनल प्लेटफार्म तक पहुंचाने की पहल कर रहे हैं। 'वाल्श स्नैक्स' स्टार्टअप कंपनी की ओर से फिलहाल, पटना, बेंगलुरु, सिंगापुर, जर्मनी और अमेरिका में मखाना प्रोडक्ट की सप्लाई हो रही है। वर्णवाल को अपना स्टार्ट अप चलाने में परिवार से भी पूरी मदद मिल रही है।


बेटे की कामयाबी से पिता विजयकर्ण वर्णवाल भी संतुष्ट और खुश हैं। वह कहते हैं कि अमन ने, शुरुआत में जब जॉब छोड़कर स्टार्ट अप की बात की थी, वह थोड़ा हिचके, लेकिन मेहनत रंग लाने लगी तो अब वह भी उसकी मेहनत और हुनर पर गर्व करते हैं। मखाना उत्पादक किसान प्रदीप कुमार साहा का कहना है कि वर्णवाल का स्टार्टअप विदेश में सेलेक्ट होने से पूरी दुनिया में बिहार का नाम रोशन हो रहा है। इस उनके क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी। 





देखने में सफेद फूलों जैसे बेहद लजीज और स्वाद में अनोखी नकदी फसल मखाने की सबसे ज्यादा खेती बिहार के सीमांचल मिथिला, कोसी परिक्षेत्र में हो रही है। इसकी खेती और तैयार फसल निकालने में किसानों को कठिन मेहनत करनी पड़ती है। हालांकि, इसकी बाजार में हाथोहाथ बिक्री हो जाती है।


वर्णवाल चाहते हैं कि मखाना किसी न किसी रूप में हर घर तक पहुंचे। वह इसी यकीन के साथ अपने स्टार्टअप को एक विश्वस्तरीय आयाम दे रहे हैं।


उन्होंने बताया कि हाल ही में मखाना और इससे जुड़े अन्य प्रोडक्ट के टेस्टिंग फेज के लिए प्रपोजल, सिंगापुर, जर्मनी और अमेरिका में सेलेक्ट हुआ है। वर्णवाल बताते हैं कि शुरू में लगी-लगाई इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर मखाना का स्टार्टअप शुरू करने पर उनके घर-परिवार वाले थोड़ा घबराए, लेकिन अब वे भी पूरी तरह उनके साथ खड़े हैं। 


बिहार में सबसे पहले मधुबनी में मखाना की खेती की शुरुआत हुई थी। वर्ष 1954 के बिहार गजेटियर में इसका जिक्र है। मखाना मधुबनी से ही निकलकर देश के अन्य स्थानों पर फैला है।



कृषि वैज्ञानिक मखाने को वेटलैंड फसल मानते हैं यानी नदी-नहरों के किनारे खाली पड़ी गीली जमीन पर एक एकड़ में 8 से 12 क्विंटल तक इसकी पैदावार होती है, जो इस समय 10,000 रुपए प्रति क्विंटल तक आराम से बाजार में बिक जा रही है।


किसानों को प्रति एकड़ करीब एक लाख रुपए की आमदनी हो रही है जबकि इसकी लागत केवल बीस-पचीस हजार रुपए है। गौरतलब है कि हमारे देश में, छत्तीसगढ़ में सबसे अच्छा मखाना उत्पादन हो रहा है।


फिलहाल प्रदेश के धमतरी जिले में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार हो रही है। इसी वजह से मखाना की मांग प्रदेश के अलावा बाहर भी बढ़ती जा रही है। लुधियाना और कोलकाता तक यहां के मखाने की भारी डिमांड रहती है। राज्य सरकार ने यहां पहला प्रोसेसिंग प्लांट लगाने का फैसला किया है।