खुद के पैसों से एक लाख कुत्तों को नया जीवन दे चुकी हैं नोएडा की अनुराधा
कहते हैं कि कुत्ते इंसानों के सबसे सच्चे और वफादार मित्र होते हैं, लेकिन आज इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे जानवरों का ख्याल कहां आता है। कुछ लोगों को कुत्तों से प्रेम होता है तो वे अपने घर में पाल लेते हैं, लेकिन सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों की परवाह किसी को नहीं होती। ऐसे कुत्तों की देखभाल कर रही हैं नोएडा में रहने वाली अनुराधा मिश्रा। कुत्तों की सेवा करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
38 वर्षीय अनुराधा इस काम को 20 साल से भी ज्यादा वक्त से कर रही हैं। उन्होंने अब तक एक लाख से भी ज्यादा कुत्तों को बचाया है। वे दुर्घटना में घायल कुत्तों को अपने शेल्टर में ले आती हैं और वहां उनकी देखभाल करती हैं। उनके शेल्टर का नाम 'होप फॉर स्पीचलेस सोल्स' (Hope 4 Speechless Souls) है। अनुराधा का कुत्तों के साथ प्रेम तब से है जब वे महज 16 साल की थीं। उसके बाद से अब तक वे न जाने कितने कुत्तों को नया जीवन दे चुकी हैं।
वे कहती हैं, 'मैं कई ऐसे कु्त्तों को देखती थी जो या तो अंधे पैदा होते थे या दुर्घटना के शिकार होकर लकवाग्रस्त हो जाते थे। डॉग शेल्टर में उन्हें इंजेक्शन देकर मार देना बेहतर समझा जाता था, ताकि उन्हें दर्द और संघर्ष से छुटकारा मिल सके। लेकिन इससे मुझे काफी पीड़ा होती थी।' अनुराधा ने इसके बाद नोएडा के एक पशु अस्पताल में पशु चिकित्सा की पढ़ाई की। उन्होंने एक फ्लैट भी ले लिया ताकि घायल कुत्तों का इलाज कर सकें। ये सारा काम वे अकेले करती थीं।
कुत्तों की संख्या बढ़ती गई और इस वजह से फ्लैट छोटा पड़ गया। इसके अलावा उनके पड़ोसियों को भी कुत्तों से दिक्कत होने लगी। उन्होंने अनुराधा को उनके कुत्तों के साथ फ्लैट से बाहर निकलवा दिया। लेकिन फिर भी अनुराधा का हौसला नहीं डिगा। बाद में 2014 में उन्होंने नोएडा के बाहरी इलाके में एक जमीन ली और वहां पर नया शेल्टर बनाया। इस शेल्टर का नाम रखा गया 'होप फॉर स्पीचलेस सोल्स'।
लेकिन आवारा जानवरों की देखभाल करना काफी खर्चीला और महंगा होता है। अनुराधा कहती हैं, 'जानवरों का इलाज करने के लिए काफी फंड्स की जरूरत होती है। मैं अपने दोस्तों और परिवार पर इसके लिए निर्भर हूं।। पहले कुत्ते सिर्फ डॉग फूड पर निर्भर रहते थे। लेकिन उसकी लागत काफी होती थी इसलिए हमने चावल, अंडे, सोयाबीन्स और कुछ डॉग फूड का इस्तेमाल शुरू किया। इसके साथ ही अब लोग हमारे संगठन को जानने लगे हैं और हमारे काम को भी सराहने लगे हैं। इसलिए मदद बढ़ रही है। हमारे संगठन को दवाइयों और खाने की जरूरत है।'
एक वाकये को याद करते हुए अनुराधा बताती हैं कि दिल्ली में कुछ बदमाश मीट के लिए कुत्तों को काट रहे थे। अनुराधा ने एक कुत्ते को रेस्क्यू किया था जिसके सिर पर चोट लगी थी। सर्द रात में ठिठुर कर उस कुत्ते की मौत हो जाती, लेकिन अनुराधा ने रात-रात जागकर उस कुत्ते की देखभाल की और वो बच गया। वे कहती हैं, 'मुझे लगता है कि कुत्तों के साथ इंसानों को सिर्फ इसलिए दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योंकि वे हमसे बात नहीं कर सकते। अगर ईश्वर ने उन्हें यह शक्ति दी होती तो क्या हम उनके साथ ऐसा ही करते। हमारा कोई हक नहीं है उन्हें मारने का।' अनुराधा कहती हैं कि ताउम्र इन कुत्तों की देखभाल करती रहेंगी।