सूरज से चलने वाली मशीन का इस्तेमाल कर कई टन खाने की बर्बादी रोक रहा है किसान का यह बेटा
हर साल लाखों टन ताजा फल और सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं, और संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, भारत में उत्पादित खाद्य पदार्थों का 40 प्रतिशत या तो नष्ट हो जाता है या बर्बाद हो जाता है। हालांकि वैभव टिडके के पास खाने की बर्बादी को रोकने के लिए एक शानदार सलूशन है।
32 वर्षीय वैभव ने अपने दोस्त गणेश भेरे, तुषार गावरे, शीतल सोमानी, अश्विन पावडे, निधि पंत और स्वप्निल कोकाटे के साथ 2014 में औरंगाबाद में कंपनियों को सब्जियां, फल, और मांस जैसे ड्राई प्रोडक्ट बेचने के लिए S4S टेक्नोलॉजीज नामक एक फूड स्टार्टअप शुरू किया। स्टार्टअप के पास एक पेटेंट टेक्नोलॉजी 'सोलर ड्रायर' है। वे इसका उपयोग करते हुए, प्रिजर्वेटिव्स और केमिकल के उपयोग के बिना खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की शेल्फ लाइफ को एक वर्ष तक बढ़ा देते हैं।
उदाहरण के लिए, S4S किसी खास कंडीशन्स में ताजे प्याज को एक साल तक केमिकल मुक्त शेल्फ लाइफ में डिहाइड्रेटेड करता है।
S4S टेक्नोलॉजीज के सीईओ और सह-संस्थापक वैभव बताते हैं,
“इस प्याज को दैनिक घरेलू खाना पकाने के साथ-साथ क्लाउड किचन में मौजूद ताजे प्याज से रिप्लेस कर सकते हैं। S4S प्याज, खाना पकाने के समय का 80 प्रतिशत से अधिक बचाता है, सहूलियत प्रदान करता है, और पैसे बचाता है साथ ही S4S सभी बिचौलियों से भी दूर रखता है।”
स्टार्टअप मारिको, भारतीय रेलवे, सोडेक्सो इत्यादि सहित 250 से अधिक बी 2 बी ग्राहकों को ड्राई फूड बेचता है। S4S को हाल ही में बी 2 सी सेगमेंट में उतारा गया और अब विभिन्न ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म पर देसीविदेसी (DesiVidesi) ब्रांड के तहत बीटरूट्स चिप्स जैसे स्नैक्स भी बेचता है।
परिवर्तन के बीज बोना
महाराष्ट्र के बीड जिले के अंबजोगाई नामक एक कस्बे में एक किसान परिवार में जन्मे वैभव ने कृषि क्षेत्र में आने वाली बाधाओं को करीब से देखा। इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (आईसीटी) से सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी में पीएचडी करने के बाद, वैभव किसानों के लाभ के लिए अपने ज्ञान और विशेषज्ञता का उपयोग करना चाहते थे।
2011 में अपने पीएचडी के हिस्से के रूप में, उन्होंने एक सोलर ड्रायर का आविष्कार किया, जो कि प्रिजर्वेटिव्स का उपयोग किए बिना मसालों, सब्जियों, फलों और मांस के शेल्फ लाइफ को लगभग छह महीने तक बढ़ाता है। इस प्रक्रिया के दौरान जिन दोस्तों ने उनकी मदद की, वे अब S4S टेक्नोलॉजीज के सह-संस्थापक हैं।
सोलर ड्रायर 6X6ft का है और इसे इकट्ठा भी किया जा सकता है और फैलाया भी जा सकता है। छत या आंगन जैसे किसी भी खुले क्षेत्र में इसे रखा जा सकता है। वैभव कहते हैं,
"चूंकि ड्रायर ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत पर काम करता है, इसलिए उसे बिजली की आपूर्ति और अन्य रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है।"
वे कहते हैं कि ड्रायर S4S को औद्योगिक मानदंडों की तुलना में 40 प्रतिशत कम लागत पर खाद्य संरक्षण करने की अनुमति देता है। इस आविष्कार के चलते टीम को काफी वाहवाही मिली है, जैसे कि 2012 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार।
कृषि व्यवसायियों को बढ़ावा देना
मशीन को और विकसित करने के बाद, वैभव ने आविष्कार को कमर्शियल यूज में लाने का फैसला किया और 2014 में S4S टेक्नोलॉजीज (S4S technologies) को शुरू किया। टेक्नोलॉजीज को भुनाने के साथ-साथ, वैभव भारत में किसानों की मदद करना चाहते थे, क्योंकि भारत की आजीविका का लगभग 60 प्रतिशत कृषि पर निर्भर करता है।
इसलिए, स्टार्टअप ने किसानों में उद्यमी बनाने का फैसला किया। वैभव बताते हैं,
''हम उन किसानों के साथ काम करते हैं जो गाँव में सब्जियाँ, फल, मसाले आदि उगाते हैं, और उन्हें हम अपना सोलर डिहाइड्रेशन सेटअप प्रदान करते हैं, जो उन्हें उनकी उपज को डिहाइड्रेशन करने की अनुमति देता है।"
सोलर डिहाइड्रेशन की लागत 80,000 रुपये है, और S4S कृषि व्यवसायी इन मशीनों को बैंक की मदद से खरीदते हैं, और S4S किसान को प्रसंस्करण के लिए और बैंक EMI का भुगतान करने के लिए भुगतान करता है। वैभव कहते हैं,
''हम प्रति किलो कच्चे माल के लिए किसानों को अलग-अलग भुगतान करते हैं और हम उन्हें प्रसंस्करण शुल्क (उत्पादों को डिहाइड्रेट करने के लिए) 4,000 रुपये से लेकर 8,000 रुपये तक प्रति माह देते हैं।"
वर्तमान में, स्टार्टअप 1,000 किसानों से नए उत्पाद खरीदता है, और महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 13 गांवों के 200 कृषि व्यवसायी (एग्रीप्रेन्योर) हैं, जो एस 4 एस के लिए डिहाइड्रेटेड फूड की प्रोसेसिंग अर्थात प्रसंस्करण कर रहे हैं।
किसानों से खरीदे गए सूखे फल और सब्जियां आखिरकार आगे की प्रक्रियाओं और वितरण के लिए औरंगाबाद में S4S के कारखाने में इकट्ठी की जाती हैं। मैरिको इनोवेशन फाउंडेशन और नेस्ले स्टार्टअप को गुणवत्ता की जांच में बनाए रखने में मदद करते हैं। S4S में प्रति वर्ष 5,000 टन उत्पादों के उत्पादन की क्षमता है।
एग्रीटेक कंपनियां
कृषि क्षेत्र में प्रवाह अधिक है। नैसकॉम के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि भारत वर्तमान में एग्रीटेक क्षेत्र में 450 से अधिक स्टार्टअप की मेजबानी करता है, और दुनिया में हर नौवां एग्रीटेक स्टार्टअप भारत से है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि 2020 तक एग्रीटेक सेक्टर इनोवेशन के सेंट्रल स्टेज पर होगा और समग्र परिवर्तन की दिशा में भारत की यात्रा का नेतृत्व करेगा।
रिपोर्ट में पाया गया कि जून 2019 तक, सेक्टर को 248 मिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि मिली है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 300 प्रतिशत की वृद्धि है। सरकार ने एग्रीटेक के क्षेत्र में भी रुचि दिखानी शुरू कर दी है। महाराष्ट्र ने कृषि प्रबंधन को डिजिटल रूप से ट्रैक करने के लिए 'एग्रीटेक’ (Agritech) योजना शुरू की, वहीं कर्नाटक ने कम से कम 21 स्टार्टअप को टारगेट करने के उद्देश्य से 2.5 मिलियन डॉलर का एग्रीटेक फंड स्थापित किया।
नीती आयोग ने सात राज्यों के 10 जिलों में एआई का उपयोग करके सटीक कृषि पर एक पायलट परियोजना शुरू की है, और तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र ने कृषि में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए एक कृषि मुक्त डेटा पोर्टल शुरू किया है। तमाम एग्रीटेक फर्मों के बीच, एस4एस सबसे अलग खड़ा है, वैभव कहते हैं, यह एक फुल-स्टैक फूड कंपनी है।
वे कहते हैं,
"S4S इकोसिस्टम प्लेयर है जो सभी बिचौलियों को खत्म करता है, रसद, भंडारण लागत और अब भोजन की सेवा को सरल बनाता है।"
इसके टारगेट ऑडियंस में होटल, रेस्तरां, क्लाउड किचन, कैटरर्स और अब स्नैक्स के उपभोक्ता शामिल हैं। वैभव कहते हैं,
''आज भारत में रेलवे, फ्लाइट, होटल, कॉरपोरेट और घरों के लिए S4S प्याज का उपयोग करके 200,000 से अधिक भोजन बनाए जाते हैं।"
फंडिंग और योजनाएं
स्टार्टअप को पिछले दिसंबर में अमेरिका स्थित एंजेल इन्वेस्टर्स फैक्टरई वेंचर्स (FactorE Ventures) से अन डिसक्लोज्ड सीड फंडिंग मिली थी।
वैभव ने बताया,
"S4S ने शुरू में कृषि स्तर पर तकनीक को ठीक करने और आईएसओ-ग्रेड फूड फैक्ट्री बनाने और 2016 और 2018 के बीच ग्राहक परीक्षण करने में समय लिया। लेकिन सीड इनवेस्टमेंट के बाद हम महीने दर महीने 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं।"
स्टार्टअप मार्च 2020 तक फंड जुटाना चाहता है ताकि 1,200 किसानों से बढ़कर 10,000 से अधिक किसानों तक अपनी कृषि आपूर्ति श्रृंखला का विस्तार किया जा सके और उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 70,000 टन प्रति वर्ष किया जा सके।