भारतीय अमीरों के, और अमीर हो जाने की वजह है संपत्ति और आय का अनुपात
अमेरिका में कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऋषभ कुमार ने अपनी एक ताज़ा स्टडी में भारत के अमीरों के और अधिक अमीर हो जाने के रहस्य का पता लगा लिया है। प्रो. कुमार के रिसर्च से हटकर भी, हम इस रहस्य को जानना चाहें तो भारत के आधुनिक अमीरों की एक जैसी कुछ चुनिंदा आदतों पर नजर डाल लेनी चाहिए।
कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के असिस्टेंट प्रो. ऋषभ कुमार ने अपने ताज़ा रिसर्च में, भारत के अमीरों के और अधिक अमीर हो जाने की वजहों का रहस्योद्घाटन किया है। प्रो. कुमार की स्टडी पर नज़र डालते हुए मुझे एक बड़े मीडिया हाउस में सीनियर चेयरपर्सन के साथ काम करने के दिन याद आ गए। उनके साथ काम करने के दिनो में मैंने बहुत करीब से देखा कि कैसे वह शख्स कंपनी के अन्य सभी कर्मचारियों से ज्यादा मेहनत और समय खर्च करता है। इसीलिए जब उस मीडिया हाउस के मालिकान में आपसी मतभेद पैदा हुआ, उन्हे कंपनी से अलग कर दिया गया को तो हिस्सेदारी में मिले पैसे से उन्होंने अपने बूते अपनी एक नई मीडिया कंपनी खड़ी कर ली।
ऐसा वही चेयरमैन कर सकता है, जिसमें अपने कर्मचारियों से ज्यादा मेहनत करने का बूता और विवेक होगा। इसलिए अमीरों को कोसने की बजाए उनकी आदतों पर नजर डालें तो पता चलता है कि उनके और अमीर बन जाने का रहस्य क्या है। वे काम को कभी कल पर नहीं टालते हैं। वे कमाई के एक से ज्यादा जरिए बनाकर चलते हैं, जिससे उनके बिजनेस डूबने का रिस्क कम हो जाता है। वह अपने एक-एक पैसे जोड़कर अपना पूरा हिसाब रखता है। विलासिता के लिए भी वह पूरी कंजूसी के साथ अपने हिसाब-किताब से समझौता नहीं करता है।
वह एक-एक पैसे का खूब समझदारी से निवेश करता है। समय के साथ खुद को भी बदलते जाने के लिए नई तकनीक और कार्यशैली अपनाता रहता है। सफलता के लिए वह नकल नहीं, दुनिया की परवाह न करते हुए दृढ संकल्प के साथ अपनी मंजिल तक जाने की राह खुद बनाता रहता है और जल्दी हिम्मत नहीं हारता है। ज्यादातर आधुनिक अमीर धीरूभाई अंबानी की इस बात से मुतमईन हो सकते हैं कि 'अगर आप खुद अपने सपनों का निर्माण नहीं करेंगे तो कोई दूसरा आपका उपयोग खुद के सपनों को पूरा करने के लिए कर लेगा।' यानी मुनाफे पैसा नौकरी करने वाला नहीं, कराने वाला जोड़ता है।
भारत के आधुनिक अमीरों पर फोकस अपनी ताजा स्टडी में प्रो. ऋषभ कुमार पहला सवाल करते हैं कि वह कौन सा आर्थिक आंकड़ा है, जो आजादी से पहले के स्तर के करीब पहुंच गया है? फिर वह उसका जवाब भी देते हैं कि संपत्ति और आय का अनुपात वह आर्थिक आकड़ा है। उस आंकड़े से पता चलता है कि ऐसे लोग, जिनके पास अच्छी संपत्ति या अच्छी बचत है, उनके पैसे बढ़ने की रफ्तार बाकी आबादी के मुकाबले कम है या ज्यादा। यह अनुपात जितना ज्यादा होगा, अमीर और गरीब के बीच की खाई उतनी ज्यादा होगी। इसी क्रम में प्रो. कुमार एक दिलचस्प बात बताते हैं कि आजादी के बाद से करीब तीन दशकों में आय में अच्छी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन अमीरों के पैसे बढ़ने की रफ्तार इसके मुकाबले ज्यादा रही है।
प्रो. कुमार बताते हैं कि भारत में संपत्ति और आय का अनुपात आजादी से पहले के छह-सात सौ फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। पिछले 20 साल में राष्ट्रीय आय के मुकाबले राष्ट्रीय संपत्ति की वैल्यू बढ़ने की रफ्तार तेज रही है। वर्ष 2012 तक आय के मुकाबले संपत्ति का मूल्य 550 से 600 फीसदी था, जबकि 19वीं शताब्दी के अंत में यह आंकड़ा 350 से 400 फीसदी के बीच था। न सिर्फ भारत बल्कि कई देशों में आर्थिक वृद्धि के मुकाबले संपत्ति के बढ़ने की रफ्तार काफी तेज है। ऐसे देशों में चीन, अमेरिका, यूरोप, जापान और रूस भी शामिल हैं।
प्रो. कुमार को बचत, संपत्ति की कीमत और शुरुआती संपत्ति की स्टडी से पता चला कि संपत्ति में होने वाली वृद्धि में एसेट खासकर जमीन की कीमतों की मुद्रास्फीति का भी कुछ योगदान है। इसका मतलब है कि जिन लोगों के पास पहले से संपत्ति है, वे दूसरे लोगों के मुकाबले तेजी से अमीर बन रहे हैं। अंग्रेजी शासन के अंतिम वर्षों में संपत्ति का आकार छह-सात साल की राष्ट्रीय आय जितना था। वर्ष 1950 और 1980 के बीच संपत्ति घटकर तीन से चार साल की आय जितनी रह गई। आज वह फिर से करीब छह साल के आय की तरफ बढ़ रही है। प्रो. कुमार बताते हैं कि 1950 से 19809 के योजनाबद्ध चरण में देखे गए थोड़े विचलन को छोड़ दें तो भारत की राष्ट्रीय संपत्ति और आय का अनुपात काफी हद तक निजी संपत्ति और राष्ट्रीय आय के अनुपात जैसा रहा है।