फुटबॉल टीम की कप्तान अपनी अकैडमी से लड़कियों को कर रही हैं सशक्त
हमारे समाज में लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव इतना ज्यादा है कि इस खाई को पाटने में अभी काफी वक्त लग जाएगा। अगर हम खेल की बात करें तो जैसी आजादी लड़कों को दी जाती है वैसी लड़कियों को नहीं मिलती। को-एड स्कूलों में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को खेल में ज्यादा बढ़ावा मिलता है, घर और परिवार में अगर कोई लड़की बाहर खेलने निकल जाए तो उस पर कमेंट होने लगते हैं, कुल मिलाकर हर तरह से लड़कियों को खेल में जाने के लिए हतोत्साहित किया जाता है। इस स्थिति को बदलने के लिए भारतीय महिला फुटबॉल टीम की कप्तान अदिति चौहान एक ट्रेनिंग अकैडमी चला रही हैं जिसका नाम है- शी किक्स फुटबॉल अकैडमी (She Kicks Football Academy).
अदिति अपने सपनों के पीछे भागने वाली लड़कियों को प्रोत्साहित कर रही हैं। 2014 में अदिति यूके में स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में एमएससी कर रही थीं। उस वक्त उन्होंने लड़कियों के लिए फुटबॉल अकैडमी खोलने का सपना देखा था। उस वक्त उन्हें इंग्लिश फुटबॉल क्लब- वेस्ट हैम यूनाइटेड लेडीज एफसी में खेलने का मौका मिला। किसी भी इंग्लिश क्लब के लिए खेलने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं। 2018 में वे यूके से लौटकर भारत आईं। तब तक उन्हें फुटबॉल का अच्छा खासा अनुभव हो गया था। यहां आकर उन्होंने लड़कियों को खेलों में पेशेवर तरीके से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने का फैसला किया।
13 नवंबर, 2018 को दिल्ली के द्वारका में शी किक्स फुटबॉल अकादमी का पहला सेंटर शुरू हुआ। यह अकैडमी पूरी तरह से स्व वित्तपोषित है। इसमें अदिति और उनकी मां डॉक्टर शिवानी ने पूरा निवेश किया है। अब इस अकैडमी के गुड़गांव में दो सेंटर खुल चुके हैं जिसमें 10 कोच हैं और 40 ट्रेनी हैं। अधिकांश अंडर -15 श्रेणी के हैं। इस अकैडमी को इस उद्देश्य से शुरू किया गया है जिससे कि लड़कियों को खुद को साबित करने का मौका मिल सके और खेल के क्षेत्र में वे नया मुकाम बना सकें।
अकैडमी लड़कियों के समावेशी औऱ समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए सुरक्षित वातावरण में ज्ञान प्रदान करने और स्वास्थ्य और पोषण के महत्व पर भी जोर देती है। अदिति कहती हैं, 'हमारे यहां कुछ लड़कियां ऐसी भी होती हैं जो कि काफी पिछड़ी पृष्ठभूमि से आती हैं और वे काफी दूर से भी आती हैं। उन्हें ट्रेनिंग ग्राउंड तक आने और जाने में दो घंटे लग जाते हैं। इसलिए हम उ्हें मुफ्त में ट्रेनिंग और खेल सामग्री उपलब्ध कराते हैं क्योंकि हम उनके जुनून को समझ सकते हैं।'
अकैडमी में पूर्णकालिक सत्रों के अलावा फिटनेस सेशन, बच्चों और वयस्कों के लिए मनोरंजक गतिविधियां और भारत मं महिला फुटबॉल के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए वर्कशॉप्स भी आयोजित की जाती हैं।
पूर्वाग्रह पर काबू पाने का प्रयास
हालांकि भारत में खेल में करियर बनाने वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन अभी भी कई लोग पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, जिनमें माता-पिता भी शामिल हैं जो अपनी बेटियों को खेल में जाने की अनुमति नहीं देते हैं। अदिति का कहना है कि वक्त बदल रहा है। लेकिन आज भी माता-पिता को खेल में करियर बनाने के लिए राजी करना किसी चुनौती से कम नहीं है। लोगों को समझना चाहिए और भारत में तो फुटबॉल अभी तरक्की कर रहा है इसलिए इसमें मौके भी पर्याप्त मिलेंगें।
वे आगे कहती हैं, 'जिसका जिस फील्ड में मन लगता है वो उसी में बेहतर कर सकता है। बच्चों को खेल मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाने में मदद करता है। खेल से हम कई सारी चीजें खेलते हैं और ये हमें सशक्त बनाता है।' जब मीडिया कवरेज की बात आती है, तो अदिति कहती है कि भारत में महिला फुटबॉल के बारे में लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही है। राष्ट्रीय टीम ने हाल ही में SAFF चैंपियनशिप जीती, और ओलंपिक क्वॉलिफायर के लिए म्यांमार के खिलाफ कड़ी टक्कर दी लेकिन दुर्भाग्य से, भारतीय टीम 3-3 के स्कोर की बराबरी ही कर पाई।
अदिति को उम्मीद है कि भारत में महिला फुटबॉल के विकास के लिए सरकार, अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) और निजी क्षेत्र का समर्थन मिलता रहेगा। अदिति को लगता है कि स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में रेवेन्यू, स्पॉन्सर्स और व्यूवरशिप काफी मायने रखती हैं। खासतौर पर पुरुषों को इसमें फायदा मिल जाता है। लेकिन महिला खिलाड़ियों के साथ भेदभाव होता है। हालांकि यह इंडस्ट्री लगातार बढ़ रही है, लेकिन अभी भी काफी कुछ किया जाना अभी बाकी है।
शुरुआत के दिन
अदिति की हमेशा से खेल में गहरी रुचि थी। उन्होंने कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल किया है और दिल्ली के लिए इंटर डिस्ट्रिक्ट लेवल पर बास्केटबॉल भी खेला है। अदिति बचपन से ही फुटबॉल खेलने लगी थीं, लेकिन वे सिर्फ अपने पड़ोसियों के साथ इसे यूं ही खेलती थीं। बाद में उन्हें आगे खेलने का मौका मिला और उनका चयन दिल्ली की अंडर -19 राज्य टीम के लिए बैकअप गोलकीपर के रूप में हुआ। इसके बाद तो अदिति को फुटबॉल से प्यार हो गया। इसके बाद फिर कभी अदिति ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अदिति के पिता पूर्व टेनिस खिलाड़ी रह चुके हैं। हालांकि अदिति का मन सिर्फ खेल में ही लगता था लेकिन उनके पिता शुरू में थोड़ा आशंकित थे। वे चाहते थे कि अदिति उनके नक्शेकदम पर चले। लेकिन जब अदिति ने भारतीय टीम की तरफ से खेला तो उनका भी नजरिया बदल गया। इसके बाद से उन्होंने हमेशा से अदिति को सपोर्ट किया और दीवार की तरह अदिति के साथ खड़े रहे।
अदिति कहती हैं, 'फुटबॉल खेलना शुरू करने से पहले, मुझे यह भी पता नहीं था कि भारत में एक राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम है। मुझे नहीं पता था कि मैं इसमें करियर बनाऊंगी। लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी।' अदिति अपनी अकैडमी को नया विस्तार देना चाहती हैं। उनकी ख्वाहिश है कि इस अकैडमी से अच्छे खिलाड़ी निकलें।