वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!
यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।
इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।
विनोद बागड़ा से सीखें खजूर की खेती करना, कमाएं बड़ा मुनाफा
विनोद बागड़ा को साल 2011 में सरकार के राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत अनुदान स्वरूप संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से खजूर के पौधे उपलब्ध करवाए गए थे। उन्होंने खजूर की दो किश्म (बरही व खुनेजी) के 150 पौधे लगाए थे। आज 10 साल बाद वे इसकी उपज से बड़ा मुनाफा कमा रहे हैं।
खजूर की खेती मुख्य रूप से अरब देशों, इज़रायल और अफ्रीका में की जाती है। ईरान खजूर का मुख्य उत्पादक और निर्यातक देश है। पिछले दशकों में भारत सरकार ने भी काफी प्रयास किए हैं, जिसके तहत खजूर की खेती के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है। भारत में राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडू और केरल खजूर के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
राजस्थान की जलवायु भी लगभग खाड़ी देशों के समान है, और इसी के मद्देनजर राज्य सरकार यहां खजूर की खेती को बढ़ावा दे रही है, लेकिन इसकी पौध लगाकर उससे उपज पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। खजूर की खेती मुश्किल होती है, परन्तु विनोद बागड़ा ने इसे कर दिखाया, और आज वे सालाना इसकी उपज से करीब 4 लाख रुपये का मुनाफा भी कमा रहे हैं।
राज्य के नागौर जिले के परबतसर शहर के रहने वाले विनोद बागड़ा पेशेवर वकील है। वे परबतसर न्यायालय में अपरलोक अभियोजक भी रहे हैं, और क्राइम के मामले देखते है। वे सुबह-शाम का समय खेती व गौ सेवा में देते है। दिलचस्प बात यह है कि विनोद स्नेक कैचर/रेस्क्यूअर (सांप पकड़ने वाले) भी है।
बुजुर्गों ने मिलकर शुरू किया खुद का पॉडकास्ट
इस खास पॉडकास्ट की शुरुआत कोरोना वायरस महामारी के चलते लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद हुई, जहां ये सभी वरिष्ठ नागरिक घर पर बैठे हुए बोर हो रहे थे।
ये सभी वरिष्ठ नागरिक कोयंबटूर के रहने वाले हैं, जिन्होने मिलकर ‘तपोवाणी पॉडकास्ट’ शुरू किया है। इस पहल की शुरुआत में वी श्रीधर ने अहम भूमिका निभाई है, जिन्हें ब्रॉडकास्टिंग के क्षेत्र में खासा अनुभव हासिल है। ये वरिष्ठ नागरिक दरअसल तपोवन सीनियर सिटिज़न फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं और श्रीधर भी इसी फाउंडेशन से कुछ समय पहले जुड़ गए थे।
‘तपोवाणी पॉडकास्ट’ के एपिसोड में संगीत के साथ ही स्टोरीटेलिंग और इंटरव्यू शामिल होते हैं। पॉडकास्ट टीम की सदस्य उमा अंतराम कृष्णन ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि कोरोना काल के दौरान सभी बुजुर्ग अपने घरों में कैद से हो गए थे और ऐसे में उनकी मनोस्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा था।
इसके बाद ही प्रोफेसर श्रीधर ‘तपोवाणी पॉडकास्ट’ शुरू करने का निर्णय लिया, जिसके बाद इन सभी बुजुर्गों को मानसिक रूप से भी काफी बेहतर अनुभव हासिल होने लगा। आज यह पॉडकास्ट इन बुजुर्गों को व्यस्त रखने और उनके मन को स्वस्थ रखने का अहम जरिया बन चुका है।
कोरोना काल में गांव के बच्चों को पढ़ा रही शिवानी राठौड़
ये कहानी भी एक गांव से निकली है और गांव के लिए निकली है। जहां राजस्थान के गांव की एक बेटी ने कोरोना काल में गांव का स्कूल बंद हो जाने पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और इतना ही नहीं, जो बच्चे कल तक घरों में रहकर अपनी आगे की पढ़ाई को लेकर चिंतित थे, वे आज फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे हैं।
शिवानी ने YourStory से बात करते हुए बताया कि वह हर रोज छात्रों को पढ़ाती है। कोरोना के दौरान स्कूलें बन्द हो जाने से उनकी पढ़ाई में कोई दिक्कत न आए, इसके लिए शिवानी ने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचते हुए यह निर्णय लेकर उनको पढ़ाना शुरू किया है।
इसकी शुरुआत उन्होंने 1 बच्चे को पढ़ाने से की थी, अभी 5 बैच में 50 बच्चे उनके पास पढ़ने के लिए आते हैं। शिवानी इन बच्चों को सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक पढ़ाती है। उन्होंने कोरोना गाइडलाइंस की पालना करते हुए 7-7 बच्चों के बैच बनाये हुए है।
पढ़ाई के साथ-साथ वह बच्चों के लिए पेंटिंग व अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाती है, जिससे कि बच्चों का मन पढ़ाई में पूरा लगा रहे।
जो बच्चे कल तक ठेठ मारवाड़ी बोला करते थे, जिनको हिन्दी बोलना भी ठीक से नहीं आता था, वे आज फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। शिवानी का कहना है कि इन बच्चों को अभी से अंग्रेजी भाषा का ज्ञान हो जायेगा तो यह अपने भविष्य में कहीं पर भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं। शिवानी इन बच्चों को एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की तरह पढ़ाई करवा रही है। साथ ही बच्चों को वर्तमान स्थिति के बारे में जागरूक कर रही है।
भाई-बहन की जोड़ी ने शुरू किया किड्सवियर ब्रांड
Cuddles for Cubs बच्चों के लिए मुंबई स्थित लिंग-तटस्थ यानी जेंडर-न्यूट्रल कपड़ों का ब्रांड है। बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप का औसत बास्केट साइज 1,200 रुपये है, और उसने 2.5 महीनों में 1,600 से अधिक ऑर्डर डिलीवर किए हैं।
जेंडर-न्यूट्रल फैशन धीरे-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन जब किड्स और बेबीवियर की बात आती है, तो खुदरा दुकानों में अभी भी पुरानी कहावत सच दिखाई पड़ती है कि - गुलाबी कलर लड़कियों के लिए और नीला लड़कों के लिए होता है।
इसे बदलने के लिए, अनुष्का झावर और अर्जुन दोशी की जोड़ी ने इस साल की शुरुआत में मुंबई से कडल्स फॉर कब्स शुरू किया। अनुष्का बताती हैं कि ब्रांड का उद्देश्य एक लिंग रहित और कल्पनाशील बचपन को प्रोत्साहित करना है जो 'लड़के' और 'लड़की' के बीच पुराने अंतर को मिटाता है और एक सशक्त, अबाधित भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।
अनुष्का ने YourStory को बताया,
“ब्रांड की पहचान इसके फनी होने और रंगों में निहित है, और हमारे कुछ प्रिंट पूरे देश में उपलब्ध किसी भी चीज के विपरीत हैं। वे वाइब्रेंस होने के साथ-साथ थोड़ा हटकर हैं, और विशेष रूप से देसी बाजार के लिए बनाए जाते हैं। हाल ही में, हमने अपने "आम सो क्यूट" पायजामा सेट को आम के पीक सीजन के दौरान बेचा, इसके अलावा हमने हमारे स्लीवलेस सेट को "हार्टी द हाथी" नाम दिया, जिसमें एक प्यारा एशियाई हाथी था। हम बच्चों के ऐसे पहले रिटेलर भी हैं जिन्होंने 'बुरी नजर वाले' थीम पर प्रिंट बनाए हैं।”
पूरी तरह से भारत में निर्मित, यह D2C ब्रांड उन भारतीय विक्रेताओं के साथ काम करता है जिनके पास दशकों का अनुभव है और बच्चों के लिए उपयुक्त सही कपड़े के बारे में जानते हैं। वर्तमान में D2C मॉडल पर काम करते हुए, ब्रांड सभी क्यूरेटेड मार्केटप्लेस पर सूचीबद्ध होने की क्षमता भी बना रहा है।
अमेरिका से नौकरी छोड़ गाँव लौटी भक्ति, सरपंच बन बदली गाँव की किस्मत
सरपंच भक्ति शर्मा आज राज्य के साथ ही पूरे देश में एक जाना-माना नाम बन चुकी हैं। भक्ति साल 2012 में पढ़ाई और अपने स्वर्णिम भविष्य का सपना लिए अमेरिका गई थीं, जहां उन्हें एक अच्छी-ख़ासी नौकरी भी मिली, लेकिन भक्ति शर्मा ने अपने भविष्य के लिए कुछ और ही रास्ता तय कर लिया था।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित गाँव बरखेड़ा को आज खासतौर पर उनकी सरपंच के लिए जाना जाता है। इस गाँव की सरपंच कभी अमेरिका में रहा करती थीं, लेकिन अपने गाँव के लोगों की भलाई और उनकी सेवा करने की चाह उन्हें वापस उनके गाँव खींच ले आई।
दरअसल भक्ति के पिता चाहते थे कि भक्ति वापस गाँव आ जाएँ और यहीं पर अपने गाँव वालों के साथ मिलकर कुछ काम करते हुए अपने गाँव का नाम रोशन करें। भक्ति ने पिता की इस इच्छा को ध्यान में रखते हुए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और फिर अमेरिका से अपने गाँव वापस आ गईं।
जब भक्ति वापस गाँव आईं तब उन्होने यहीं पर एक स्वयंसेवी संस्था की शुरुआत करने का निर्णय किया, जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करना था। इसी दौरान गाँव में सरपंच पद के चुनाव हुए और भक्ति ने भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। चुनाव में भक्ति को उनके गांव वालों का पूरा समर्थन मिला और वे चुनाव जीत गईं। भक्ति जब गाँव की सरपंच चुनी गईं तब उनकी उम्र महज 25 साल थी।
सरपंच भक्ति शर्मा आज राज्य के साथ ही पूरे देश में एक जाना-माना नाम बन चुकी हैं। भक्ति साल 2012 में पढ़ाई और अपने स्वर्णिम भविष्य का सपना लिए अमेरिका गई थीं, जहां उन्हें एक अच्छी-ख़ासी नौकरी भी मिली, लेकिन भक्ति शर्मा ने अपने भविष्य के लिए कुछ और ही रास्ता तय कर लिया था।
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